बैंक गारंटी पर नियामकीय सीमा से पूर्ण और आंशिक तौर पर वित्त पोषित, दोनों फिक्स्ड डिपोजिट रिसीप्ट्स (एफडीआर) के लिए मांग बढ़ गई है। मौजूदा समय में क्लियरिंग कॉरपोरेशंस (सीसी) मार्जिन मुहैया कराने के लिए परिसंपत्तियों के तौर पर नकदी, एफडीआर, बैंक गारंटी (बीजी) और कुछ खास प्रतिभूतियां स्वीकार करते हैं।
कुछ वर्ष पहले तक बैंक गारंटी बेहद लोकप्रिय थीं। हालांकि एक्सचेंजों ने सख्त सीमाएं लगाईं और इनका इस्तेमाल सीमित होगया। कुछ ब्रोकरों के मामले में यह सीमा महज 50 करोड़ रुपये है। इसके अलावा बैंकों में भी बीजी के निर्गम पर सीमाएं हैं।
उद्योग की कंपनियों का कहना है कि एफडीआर का इस्तेमाल बीजी पर सीमाओं की वजह से बढ़ा है। इससे एफडीआर (खासकर आंशिक रूप से वित्त पोषित) पर निर्भरता बढ़ी है, जिस पर बाजार नियामक सेबी और आरबीआई दोनों की नजर बनी हुई है। सूत्रों का कहना है कि दोनों नियामकों ने बकाया नॉन-फंडेड एफडीआर की मात्रा पर सीसी से रिपोर्ट मांगी हैं जिससे कि यह पता लगाया जा सके कि कोई व्यवस्थागत जोखिम तो नहीं है। इंडियानिवेश और एडलवाइस के बीच विवाद की वजह से एफडीआर की लोकप्रियता बढ़ी है। इंडियानिवेश ने एचडीएफसी बैंक द्वारा जारी एफडीआर को कॉलेटरल के तौर पर रखा था। एडलवाइस ने इंडियानिवेश के इस निर्णय का विरोध किया। अप्रैल में अपना ब्रोकिंग परिचालन बंद कर चुकी इंडियानिवेश बकाया के निपटान को लेकर बंबई उच्च न्यायालय में चली गई। कहा जा रहा है कि एचडीएफसी बैंक ने एफडीआर भुनाने के एडलवाइस के अनुरोध को ठुकरा दिया है।
केएस लीगल ऐंड एसोसिएट्स में मैनेजिंग पार्टनर सोनम चांदवानी ने कहा, ‘ऐसे कई उदाहरण आए हैं जिनमें ब्रोकरों ने एफडीआर के लिए बैंकों से रकम उधार ली और कॉलेटरल के तौर पर इन्हें पेश किया, जैसा कि इंडियानिवेश के मामले में देखने को मिला। आंशिक रूप से वित्त पोषित एफडीआर के साथ ब्रोकर अग्रिम तौर पर रकम बचा सकते हैं लेकिन यह दूरगामी खतरे के साथ प्रणालीगत समस्या का संकेत है।’ बाजार कारोबारियों का कहना है कि एफडीआर के लिए बढ़ रही मांग ने बैंकों को इसमें बदलाव लाने के लिए प्रोत्साहित किया है। हाल में सेबी ने सीसी और एक्सचेंजों से कहा था कि सिर्फ एफडीआर का वित्त पोषित हिस्सा ही मार्जिन की गणना के लिए शामिल किया जाना चाहिए। पिछले कुछ महीनों में, ब्रोकरों और बैंकों को कई अवसरों पर समस्याओं का सामना करना पड़ा। एफडीआर के अलावा, बैंकों को उन ब्रोकरों को शेयरों पर ऋण मुहैया कराने के बाद समस्या से जूझना पड़ा जिन्होंने अपने ग्राहकों से संबंधित शेयर कॉलेटरल के तौर पर गिरवी रख दिए थे।
ऐक्टिस की हुई एक्मे की सौर परियोजना
ब्रिटेन के निजी क्षेत्र के निवेशक ऐक्टिस ने एक्मे सोलर होल्डिंग्स लिमिटेड की 400 मेगावॉट सौर बिजली परियोजनाओं का अधिग्रहण किया है। ये परियोजनाएं आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में हैं। एक्मे और ऐक्टिस दोनों ने सौदे के आकार का खुलासा नहीं किया है लेकिन बाजार विशेषज्ञों के अनुसार इस सौदे का आकार करीब 2,000 करोड़ रुपये हो सकता है।
ऐक्टिस ने एक बयान में कहा है कि ऐक्टिस लॉन्ग लाइफ इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड (एएलएलआईएफ) और ऐक्टिस एनर्जी फंड्स के जरिये भारत के नवीकरणीय क्षेत्र में निवेश किया गया है। कंपनी ने कहा है कि एएलएलआईएफ की निवेश रणनीति लंबी अवधि के लिए बड़ी नवीकरणीय परिसंपत्तियों को लक्ष्य करती है जो मूल्य सृजन के जरिये प्रतिफल को अधिकतम बनाती है। बीएस