अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा प्रमुख मानक ब्याज दर में 75 आधार अंक (बीपीएस) की बढ़ोतरी किए जाने के बाद भारत को चालू वित्त वर्ष में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर और चालू खाते के घाटे (सीएडी) के मोर्चे पर कुछ राहत मिल सकती है।
इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, ‘अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा की गई सख्ती से जिंसों के दाम गिरते हैं तो इससे घरेलू महंगाई कम हो सकती है और यह एमपीसी (मौद्रिक नीति समिति) की ओर से तय सीमा के भीतर आ सकती है।’
खुदरा महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा तय 4 प्रतिशत लक्ष्य (जिसमें 2 प्रतिशत की घट-बढ़ हो सकती है) के ऊपर चल रही है। जून में लगातार छठे महीने में खुदरा महंगाई 6 प्रतिशत से ऊपर रही है, हालांकि यह मई के 7.04 प्रतिशत की तुलना में जून में थोड़ा घटकर 7.01 प्रतिशत रही है।
नायर ने कहा कि जिंसों के दाम कम होने से मासिक व्यापार घाटे के आंकड़ों पर दबाव भी कम होगा। जून में भारत का व्यापार घाटा अब तक के सर्वोच्च स्तर पर 26.18 अरब डॉलर रहा है, जो इसके पहले महीने में 24.29 अरब डॉलर था। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में व्यापार घाटा बढ़कर 70.8 अरब डॉलर हो गया, जो एक साल पहले के 31.42 अरब डॉलर की तुलना में दोगुने से ज्यादा है। इससे चालू खाते का घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का कम से कम 3 प्रतिशत हो सकता है, जो एक साल पहले 1.2 प्रतिशत था।
बैंक आफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि संकेत यह हैं कि यह अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा की गई आखिरी बढ़ोतरी नहीं है और इस तरह से और आक्रामक कदमों के लिए तैयार रहना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब यह है कि एफपीआई (विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों) की वापसी साल के शेष महीनों में भी और इससे भुगतान अवशेष पर दबाव बढ़ेगा।’ सबनवीस ने कहा, ‘धीरे धीरे हम वृद्धि में सुस्ती देख सकते हैं, जिससे जिंस के दाम कम होंगे। एक मायने में यह व्यापार के लिए लाभदायक होगा।’
एचडीएफसी बैंक में प्रधान अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता ने कहा कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने कुछ ऐसा फैसला किया है, जो पर्याप्त तेज तर्रार है, लेकिन बहुत आक्रामक नहीं, इससे अमेरिका में गहरी मंदी का कुछ भय कम हुआ है। उन्होंने कहा, ‘इससे कम अवधि के हिसाब से रुपये के स्थिर होने में मदद मिल सकती है, क्योंकि अमेरिकी प्रतिफल और डॉलर नीतिगत घोषणा के बाद कुछ कमजोर हुआ है।’
मौद्रिक नीति समिति
अगले सप्ताह एमपीसी की बैठक प्रस्तावित है। विश्लेषकों का कहना है कि यह अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले की तुलना में घरेलू महंगाई दर-वृद्धि की गणित से ज्यादा प्रभावित हो सकती है, भले ही इस कदम से अमेरिका और भारत के बीच ब्याज दरों का अंतर कम हुआ है।
नायर ने कहा, ‘हमारे विचार से एमपीसी अमेरिकी फेड की दरों में बढ़ोतरी के आकार के बजाय घरेलू स्तर पर महंगाई दर और वृद्धि के परिदृश्य से ज्यादा संचालित होगी।’ गुप्ता ने कहा, ‘जुलाई में घरेलू महंगाई दर गिरकर 7 प्रतिशत से नीचे आ सकती है। इससे रिजर्व बैंक को कुछ राहत मिलेगी। हम उम्मीद करते हैं कि अगले सप्ताह रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में 35 से 50 बीपीएस की बढ़ोतरी कर सकता है।’ सबनवीस यह उम्मीद नहीं कर रहे हैं कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए एमपीसी कोई बुरा झटका देगा। उन्होंने कहा, ‘वह फेड के कदमों की ओर देखेगी, लेकिन घरेलू महंगाई से ज्यादा संचालित रहेगी, जो 7 प्रतिशत के स्तर पर स्थिर नजर आ रही है।’