बैंक अधिकारियों का कहना है कि न्यूनतम पूंजी जरूरत पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा हाल में दिशा-निर्देशों से बैंकों को कुछ खास व्यावसायिक गतिविधियों के प्रबंधन में ज्यादा स्वायत्तता मिलेगी, लेकिन बाजार जोखिम के लिए ऋणदाताओं को 15-20 प्रतिशत ज्यादा पूंजी की जरूरत हो सकती है।
17 फरवरी को, आरबीआई ने बेसेल-3 मानकों पर आधारित बाजार जोखिम के लिए न्यूनतम पूंजी जरूरत के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किया। इसमें हितधारकों से 15 अप्रैल तक सुझाव मांगे गए हैं।
दिशा-निर्देशों में ट्रेडिंग बुक और बैंकिंग बुक में कारोबार से जुड़े सौदों के बीच स्पष्ट सीमांकन पर जोर दिया गया है।
एक बैंक में बाजार जोखिम विभाग के अधिकारी ने कहा, ‘आरबीआई का सर्कुलर बेसेल के एफआरटीबी (फंडामेंटल रिव्यू ऑफ ट्रेडिंग बुक) दिशा-निर्देशों पर आधारित है। जब वर्ष 2019 में सर्कुलर आया था, तो सभी बैंकों ने संशोधित दिशा-निर्देशों के आधार पर गणना की थी और पूरे बैंकिंग उद्योग में प्रभावी पूंजी अधिभार बैंकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली पूंजी के मुकाबले 50 से 100 प्रतिशत तक ज्यादा था।’
फरवरी 2019 में, बेसेल कमेटी ऑन बैंकिंग सुपरविजन ने बाजार जोखिम के लिए न्यूनतम पूंजी जरूरत के लिए संशोधित दिशा-निर्देश जारी किए थे। मानकों में ट्रेडिंग बुक और बैंकिंग बुक के बीच स्पष्ट सीमांकन निर्धारित किया गया और न्यूनतम पूंजी के लिए पिछली शर्तों को बदला गया था।
बैंकिंग बुक और ट्रेडिंग बुक की पिछली परिभाषा काफी हद तक सामान्य थी- ट्रेडिंग बुक में अवेलेबल फॉर सेल (एएफएस) और हेल्ड फॉर ट्रेडिंग (एचएफटी) पोर्टफोलियो शामिल थे।
नए मानकों के साथ पूरे बाजार जोखिम पूंजी शुल्क को प्रभावी किए जाने से बैंक बदलावों की गणना पोर्टफोलियो पुन: वर्गीकरण के तौर पर कर रहे हैं।
अधिकारी ने कहा कि आरबीआई के सर्कुलर में सेकंडरी बाजार की ट्रेडिंग, 90 दिन के अंदर कारोबार, और सौदे पर ब्याज दर के जोखिम समेत कई अन्य बातों को भी शामिल किया गया है।
सर्कुलर में आरबीआई ने कहा है कि गैर-सूचीबद्ध इक्विटी और सहायक इकाइयों में इक्विटी निवेश जैसे मामलों को बैंकिग बुक में शामिल किया जा सकेगा। साथ ही ऐसे जोखिमों की पहचान के लिए ऐसे अन्य कारकों पर भी जोर दिया गया है जो बेसेल-3 पूंजी मानकों में पहले शामिल नहीं थे।