भारतीय रिजर्व बैंक ने निजी क्षेत्र के बंधन बैंक के प्रबंध निदेशक व मुख्य कार्याधिकारी चंद्र शेखर घोष के वेतन पैकेज बढ़ोतरी पर लगी रोक हटा दी है। बैंक की प्रवर्तक बंधन फाइनैंशियल होल्डिंग्स की तरफ से इस महीने 21 फीसदी हिस्सेदारी घटाकर 40 फीसदी पर लाए जाने के बाद आरबीआई ने यह कदम उठाया है।
निजी बैंक ने एक्सचेंजों को भेजी सूचना में कहा, आरबीआई ने 17 अगस्त के संदेश में नियामकीय पाबंदी हदा दी है, जिसमें बैंक के एमडी व सीईओ की वेतन बढ़ोतरी पर पाबंदी हटााना शामिल है। बैंक ने कहा, आरबीआई की तरक से 19 सितंबर, 2018 को लगाई गई नियामकीय पाबंदी भी अब हटा ली गई है।
आरबीआई ने सितंबर 2018 में बैंक पर दो पाबंदी लगाई थी – नए बैंकिंग आउटलेट खोलने से पहले मंजूरी लेना और एमडी व सीईओ का वेतन मौजूदा स्तर पर बनाए रखना क्योंकि बैंक के प्रवर्तक बैंक में अपनी हिस्सेदारी घटाने की लाइसेंस की अनिवार्यता का अनुपालन करने में नाकाम रहे।
बैंक की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, घोष का वेतन वित्त वर्ष 2019-20 में 2.10 करोड़ रुपये था। तब से आरबीआई ने उनके वेतन बढ़ोतरी को मौजूदा स्तर पर ही बरकरार रखा है यानी वेतन बढ़ोतरी की मंजूरी नहीं दी है। वित्त वर्ष 2019-20 में उनके वेतन में बढ़ोतरी नहीं हुई और न ही उन्हें प्रदर्शन से जुड़ाव रखने वाला प्रोत्साहन दिया गया।
आरबीआई के लाइसेंसिंग नियम के मुताबिक, सार्वभौम सेवा देने वाले बैंकों के प्रवर्तकों को परिचालन के तीन साल के भीतर अपनी हिस्सेदारी घटाकर 40 फीसदी लाना अनिवार्य है। साल 2018 में जब बैंक सूचीबद्ध हुआ तो प्रवर्तक हिस्सेदारी 82.3 फीसदी था। तब से बैंक प्रवर्तक हिस्सेदारी बेचने के लिए विभिन्न विकल्पों की तलाश कर रहा था ताकि नियामकीय अनिवार्यता पूरी हो। तय समय में प्रवर्तक हिस्सेदारी न घटाने पर केंद्रीय बैंक ने उस पर प्रतिबंध लगाया।
केंद्रीय बैंक ने इस साल फरवरी में शाखा खोलने पर लगी पाबंदी हटा दी थी जब बैंक की तरफ से प्रवर्तक हिस्सेदारी बेचने पर प्रगति देखने को मिली।
केंद्रीय बैंक ने इस साल फरवरी में शाखा खोलने पर लगी पाबंदी हटा दी थी जब बैंक की तरफ से प्रवर्तक हिस्सेदारी बेचने पर प्रगति देखने को मिली।
इस महीने प्रवर्तक बंधन फाइनैंशियल होल्डिंग्स ने करीब 33.74 करोड़ शेयर 311 रुपये के भाव पर बेचकर 10,500 करोड़ रुपये जुटाए। हिस्सेदारी बिक्री कई ब्लॉक डील के जरिए एक्सचेंज के प्लेटफॉर्म पर हुए। हिस्सेदारी बिक्री के बाद प्रवर्तक हिस्सेदारी 60.96 फीसदी से घटकर 40 फीसदी रह गई है।
