भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति इस सप्ताह जब वित्त वर्ष 2023 की अंतिम बैठक करेगी तो वह नीतिगत दरों पर भी निर्णय लेगी। केंद्रीय बजट हाल ही में पेश किया गया है और चार वैश्विक केंद्रीय बैंकों ने पिछले पखवाड़े दरों को लेकर कदम उठाए हैं।
बैंक ऑफ कनाडा ने अपनी मानक ब्याज दर को एक बार फिर बढ़ाकर 4.5 फीसदी कर दिया है। यह अनुमान के अनुरूप ही है क्योंकि वह रिकॉर्ड महंगाई से निरंतर जूझ रहा है। एक वर्ष से भी कम समय में यह आठवां इजाफा है लेकिन मार्च के बाद से यह सबसे कम वृद्धि है जिससे संकेत मिलता है कि बैंक ऑफ कनाडा अब शायद दरों में इजाफा करने से परहेज करे।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने भी 25 आधार अंकों की मामूली वृद्धि की जिससे वह 4.50 से 4.75 फीसदी पहुंची। वर्तमान चक्र में फेड ने दरों में अब तक 450 आधार अंक का इजाफा किया है। यहां भी वृद्धि बाजार अनुमानों के अनुरूप है क्योंकि मुद्रास्फीति में धीमापन आया है और मौद्रिक सख्ती के चक्र का पूरा असर अर्थव्यवस्था में महसूस नहीं किया गया।
दरों में इजाफे की गति धीमी हुई है लेकिन नीतिगत वक्तव्यों और संवाददाता सम्मेलनों में दरों में निरंतर इजाफे की बात कही गई। भविष्य में आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए ही निर्णय लिया जाएगा और फेड आंकड़ों के आधार पर मौद्रिक सख्ती की व्यवस्था को बेहतर बनाएगा।
बैंक ऑफ इंगलैंड ने संकेत दिया है कि दरों में लगातार 10 बार इजाफा करने के बाद मुद्रास्फीति के खिलाफ उसकी लड़ाई में अब बदलाव आ रहा है। बैंक ऑफ इंगलैंड की दरें तय करने वालों ने 7-2 के अनुपात से निर्णय लेते हुए 50 आधार अंक बढ़ाकर दरें 4 फीसदी कर दीं जो 2008 के बाद का उच्चतम स्तर है।
बैंक ऑफ इंगलैंड के गवर्नर एंड्रयू बैली ने कहा, ‘हमें मुद्रास्फीति में बदलाव के पहले संकेत दिख चुके हैं लेकिन अभी जीत की घोषणा करना जल्दबाजी होगी। मुद्रास्फीति का दबाव बरकरार है।’ आगे की नीति मुद्रास्फीति को देखते हुए तय की जाएगी।
यूरोपियन केंद्रीय बैंक यानी ईसीबी ने भी ब्याज दरों में 50 आधार अंक का इजाफा किया और कहा कि अगले महीने इतना ही इजाफा और हो सकता है। यानी वह मुद्रास्फीति से निपटने की कोशिश में लगा रहेगा। विश्लेषकों का कहना है कि वहां भी दरें बढ़ाने का सिलसिला अंत की ओर बढ़ रहा है। हालांकि ईसीबी प्रेसिडेंट क्रिस्टीन लेगार्ड का नजरिया अलग है।
उन्होंने मुद्रास्फीति से निपटने की कोशिशें जारी रखने के बारे में कहा, ‘नहीं। हमें पता है कि अभी काफी काम करना है, अभी काम पूरा नहीं हुआ है।’
कुल मिलाकर ईसीबी से इतर फेड और बैंक ऑफ इंगलैंड के आंकड़ों के आधार पर निर्णय लेंगे जबकि बैंक ऑफ कनाडा फिलहाल दरों में इजाफा करना रोक सकता है।
आरबीआई से क्या है उम्मीद?
बजट राजकोषीय सुदृढ़ीकरण तक सीमित है और केंद्रीय बैंक से आशा की जाती है कि वह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का प्रयास करेगा।
लगातार 10 महीने तक मुद्रास्फीति के लचीले लक्ष्य के 4 फीसदी (दो फीसदी ऊपर या नीचे) के ऊपरी दायरे का उल्लंघन करने के बाद नवंबर में खुदरा मुद्रास्फीति 5.88 फीसदी और दिसंबर में 5.77 फीसदी रही। अप्रैल 2022 में यह 7.79 फीसदी के साथ उच्चतम स्तर पर थी। विश्लेषकों का अनुमान है कि जनवरी और फरवरी में यह 6 फीसदी के आसपास रहेगी लेकिन मार्च में यह 5 फीसदी या उससे कम रह सकती है और वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही से यह पुन: बढ़ सकती है।
दिसंबर की नीति में आरबीआई ने कहा था कि वित्त वर्ष 2023 में खुदरा मुद्रास्फीति 6.7 रह सकती है। उसने कहा कि तीसरी और चौथी तिमाही में यह क्रमश: 6.6 फीसदी रहेगी। वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में इसके 5 फीसदी और मॉनसून सामान्य रहने की प्रत्याशा में दूसरी में 5.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया।
क्या अब आरबीआई को दरों में इजाफा रोकना चाहिए? कुछ विश्लेषक ऐसा कह रहे हैं। मौद्रिक नीति समिति की दिसंबर बैठक, जिसमें रीपो दर में 35 आधार अंक का इजाफा किया गया था उसमें एक सदस्य जे आर वर्मा ने इजाफे के खिलाफ मतदान किया था। उनके साथ एक अन्य सदस्य आशिमा गोयल ने भी समिति के रुख से असहमति जताई थी।
मेरा मानना है कि देश में मुद्रास्फीति से निपटने के लिए दरों में इजाफे का जो चक्र मई 2022 में आरंभ हुआ वह अब तक समाप्त नहीं हुआ है। तब से अब तक दरें 4 फीसदी से बढ़कर 6.25 फीसदी हो चुकी हैं। हम खुश हो सकते हैं कि मुद्रास्फीति की दर 6 फीसदी से नीचे आ रही है और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे कम मुद्रास्फीति वाला देश है लेकिन फिर भी हम 4 फीसदी के लक्ष्य से दूर हैं।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास इससे अवगत हैं। दिसंबर में नीति प्रस्तुत करने के बाद उन्होंने कहा था कि एमपीसी का मानना था कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के लिए सही आकलन के साथ मौद्रिक नीति संबंधी कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि मूल मुद्रास्फीति में मी आ सके और दूसरे दौर के प्रभावों को नियंत्रित किया जा सके। इन कदमों से अर्थव्यवस्था मध्यम अवधि में बेहतर वृद्धि हासिल कर सकेगी।
उन्होंने कहा था, ‘भारत में जीडीपी वृद्धि मजबूत है और मुद्रास्फीति के कम होने की आशा है लेकिन लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। मूल मुद्रास्फीति तथा खाद्य मुद्रास्फीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय कारकों और मौसम के असर तक अभी कई मुश्किलें हैं। हमें मौद्रिक नीति के पहले उठाए गए कदमों को लेकर सतर्क रहना होगा और साथ ही हम मुद्रास्फीति बदलते परिदृश्य पर भी नजर रखेंगे तथा जरूरत के मुताबिक कदम उठाने को तैयार रहेंगे।’
दिक्कत यह है कि मूल मुद्रास्फीति में कमी के कोई संकेत नहीं नजर आ रहे हैं।
दिसंबर की नीति में यह स्पष्ट कर दिया गया था कि भविष्य के कदम नए आंकड़ों और अर्थव्यवस्था के उभरते हालात तथा अतीत में उठाए गए कदमों पर भी विचार किया जाएगा।
दास ने हाल ही में दुबई में एक कार्यक्रम में कहा था कि दुनिया भर के केंद्रीय बैंक कम मुद्रास्फीति के स्पष्ट संकेत चाहते रहे हैं और मुद्रास्फीति और वृद्धि के पूर्वानुमान में जहां सुधार हुआ है वहीं बेहतर यही है कि सभी विकल्प खुले रखे जाएं।