केंद्र सरकार भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) को कानूनी अधिकार प्रदान करने पर काम कर रही है। इसके तहत वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के मुनाफाखोरी-रोधी नियमन के कुछ प्रावधानों में संशोधन किया जाएगा और दोनों नियामकों के विलय का रास्ता तैयार किया जाएगा। सरकार के इस कदम को अहम माना जा रहा है क्योंकि राष्ट्रीय मुनाफाखोरी-रोधी
प्राधिकरण (एनएए) का कार्यकाल नवंबर में समाप्त हो रहा है और इसके सेवा-विस्तार की कोई योजना नहीं बनाई गई है। केंद्र ने इस साल की शुरुआत में जीएसटी मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण एनएए का सीसीआई में विलय करने का निर्णय किया था।
हालांकि नियमन में प्रासंगिक बदलाव नवंबर अंत तक पूरा नहीं किया जाता है तो विलय में देरी हो सकती है। वर्तमान में सीसीआई के मौजूदा ढांचे में कानूनी अधिकार और वस्तु एवं सेवा कर संबंधित अपराधों से निपटने की पात्रता नहीं है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘एनएए को सीसीआई के साथ विलय करने के लिए जीएसटी कानून में कुछ संशोधन करने की जरूरत है। हम कम से कम दो मौजूदा प्रावधानों को हटाने और सदस्यों की नियुक्ति के संबंध में एक प्रावधान को संशोधित करने का प्रस्ताव कर सकते हैं।’ प्रस्तावित संशोधन के लिए जीएसटी परिषद की मंजूरी लेनी होगी और उसके बाद ही उसे संसद में मंजूरी के लिए पेश किया जा सकता है।
घटनाक्रम के जानकार सूत्रों ने कहा कि मंत्रालय वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) से संबंधित मामलों को एनएए के पास भेजे जाने और ‘समयसीमा’ वाले प्रावधानों में संशोधन कर सकता है। वर्तमान में जीएसटी कानून के मुताबिक संबंधित मामलों को एनएए के पास भेजने का प्रावधान है। साथ ही मामले के जानकार एक अन्य अधिकारी ने जानकारी दी कि सीसीआई के साथ एनएए के विलय के लिए इस प्रावधान को हटाया भी जा सकता है या इसे सीसीआई के साथ बदला जा सकता है।
इसके साथ ही समय सीमा से संबंधित प्रावधान को पूरी तरह से हटाना होगा। मंत्रालय चेयरमैन के अलावा चार तकनीकी सदस्यों की अनिवार्यता की शर्तों में भी बदलाव पर काम कर रहा है। एनएए का गठन शुरुआत में नवंबर 2019 तक दो साल के लिए किया गया था। इसका मकसद वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति पर कर की दरों में किसी तरह की कमी या इनपुट कर क्रेडिट का लाभ कीमतों में कमी करके ग्राहकों को देना सुनिश्चित करना है।
हालांकि बाद में इसका कार्यकाल 30 नवंबर, 2022 तक के लिए बढ़ा दिया गया था डेलॉयट में पार्टनर एमएस मणि ने कहा, ‘इनपुट कर क्रेडिट का मामला आगे चलकर बाजार पर छोड़ देना चाहिए। ऐसे में जीएसटी से संबंधित मुनाफाखोरी के मामले के निपटारे के लिए एक स्थायी और परिभाषित ढांचा होना चाहिए।’ सीसीआई गैर-प्रतिस्पर्धी व्यवहार का विनियमन करता है ताकि कोई बाजार में अपने दबदबे का इस्तेमाल कर प्रतिस्पर्धा को दबाने का प्रयास न कर सके।
एनएए ने सीमेंट, टायर, जहाजरानी और डिजिटल अर्थव्यवस्था सहित विभिन्न उद्योगों से संबंधित मामलों की जांच की है। एनएए के आदेश के खिलाफ आपूर्तिकर्ताओं की ओर से करीब 150 रिट याचिका दायर की गई हैं जो विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। एक अधिकारी ने बताया कि सभी लंबित मामलों का निपटारा नवंबर तक करने की जरूरत होगी और जो बचे रह जाएंगे उन्हें सीसीआई के पास भेजा जा सकता है।