वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही में पंजीकृत 14 लाख कारों और स्पोर्ट्स यूटिलिटी वाहनों में से 5,40,000 वाहन पांच सबसे अमीर राज्यों दिल्ली, कर्नाटक, हरियाणा, तेलंगाना और गुजरात में थे। इनकी कुल हिस्सेदारी 37.8 फीसदी थी। पांच सबसे गरीब राज्यों ओडिशा, असम, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार की हिस्सेदारी 18.9 फीसदी थी, जो 2020-21 में 20.4 फीसदी के सर्वोच्च स्तर से नीचे थी।
वाहन डैशबोर्ड के आंकड़ों के अनुसार पांच सबसे गरीब राज्यों की तुलना में पांच सबसे अमीर राज्यों में दोगुना यात्री वाहनों का पंजीकरण हुआ हैं जो वर्ष 2020-21 में 1.74 के अनुपात से काफी अधिक है। यह यात्री वाहनों की खपत में ‘के’ आकृति के सुधार को इंगित करता है। सुधार की ठीक वैसी ही प्रवृत्ति देखी जा रही है, जैसा कि औपचारिक नौकरियों (इस श्रृंखला के पहले भाग में शामिल) के क्षेत्र में देखी गई थी।
सबसे अमीर और सबसे गरीब राज्यों की रैंकिंग प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर की जाती है, जो कि जनसंख्या से विभाजित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य है। उपभोग का अधिकतर भाग कारों और एसयूवी है। हालांकि अभी भी 54 फीसदी भारतीय परिवारों के पास स्कूटर हैं। लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के आंकड़ों के अनुसार यात्री वाहनों के मालिकाना हक में वृद्धि हुई है। वर्ष 2005-06 में 2.5 फीसदी परिवारों के पास चार पहिया गाड़ी थी जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 8 फीसदी हो गई है। वाहन ऋण बकाया सभी व्यक्तिगत ऋणों का 12 फीसदी है। यह परिवारों में खपत बढ़ने की प्रवृत्ति के स्पष्ट संकेतक के रूप में देखा जा सकता है। यदि राज्यों के बीच खपत के रुझान अलग-अलग होते हैं, तो कुछ राज्यों को अन्य की तुलना में खपत आधारित सुधार का बड़ा लाभ मिलेगा।
यात्री वाहनों के पंजीकरण में सबसे अमीर राज्यों की हिस्सेदारी 31 मार्च, 2020 तक घट रही थी। सबसे गरीब राज्य महामारी के आने तक पकड़ बना रहे थे। वर्ष 2017-18 में यात्री वाहनों के पंजीकरण में पांच सबसे अमीर राज्यों की हिस्सेदारी 36.8 फीसदी थी। लेकिन 31 मार्च 2020 में इनकी हिस्सेदारी घटकर 35.5 फीसदी रह गई थी। मगर अमीर राज्य सुधार के चरण में पीछे हट गए हैं।
