मई 2010 में कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड (जायडस कैडिला) देश के पहले स्वदेशी एच1एन1 (स्वाइन फ्लू) टीके की बिक्री के लिए नियामक की मंजूरी हासिल करने वाली पहली भारतीय कंपनी बनी थी।
निवारक दवाओं पर ध्यान केंद्रित करने वाली समूह की इकाई वैक्सीकेयर द्वारा वैक्सीफ्लू-एस ब्रांड नाम के तहत स्वाइन फ्लू के टीके का विपणन किया गया था। वह टीका अंडा आधारित, निष्क्रिय किया हुआ और पारंपरिक तकनीक पर आधारित था जिससे बैक्टीरिया, वायरस और प्रोटोजोआ संबंधी संक्रमण के लिए टीका विकसित करने का व्यापक मार्ग प्रशस्त हुआ। करीब एक दशक पहले किया गया यह उल्लेखनीय कार्य था जिससे गुजरात के इस समूह को कोविड-19 के लिए एक स्वदेशी टीका विकसित करने में मदद मिली। कंपनी खुद एच1एन1 टीके की सफलता के दौरान स्थापित क्षमताओं एवं उपयुक्त बुनियादी ढांचे को लेकर उत्साहित है। इसी बुनियाद पर कंपनी ने कोविड-19 के लिए अपने संभावित टीके जायकोव-डी का विकास शुरू किया।
ऐसी कई चीजें हैं जो डायडस कैडिला और इसके संभावित टीके जायकोव-डी को कोविड टीके की दौड़ में स्वदेशी कंपनियों के बीच अलग रखती हैं। करीब एक दशक पहले एच1एन1 टीके के विकास में कंपनी को मिली सफलता और अनुभव उसे दूसरों से अलग करता है।
जायडस कैडिला के प्रबंध निदेशक डॉ. शार्विल पटेल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा, ‘साल 2010 में स्वान फ्लू के लिए महज नौ महीने में पहला स्वदेशी टीका विकसित करने से हमें इस वैश्विक महमारी के लिए भी टीका विकसित करने में काफी विश्वास मिला। हमारे पास पर्याप्त क्षमता एवं उपयुक्त बुनियादी ढांचा उपलब्ध है और इसलिए हमें अपनी पिछली सफलता से मदद मिली है।’
एच1एन1 टीके के लिए मिली सफलता से कंपनी को न केवल उपयुक्त बुनियादी ढांचा हासिल हुआ बल्कि फैक्टरिंग म्यूटेशन जैसी एक महत्त्वपूर्ण सीख भी मिली। डॉ. पटेल ने कहा, ‘यह जानते हुए कि वायरस म्यूटेट कर सकता है, हमें एक ऐसा टीका प्लेटफॉर्म विकसित करना है जो म्यूटेशन होने पर वायरस की नई किस्म पर भी असरदार साबित हो। यह काफी महत्त्वपूर्ण है। जायकोव-डी के लिए विकसित प्लाजमिड डीएनए प्लेटफॉर्म यह संभावना सुनिश्चित करता है।’ टीका को बाजार में उतारने की जल्दबाजी के विपरीत जायडस कैडिला ने जायकोव-डी की प्रभावकारिता सुनिश्चित करने और टीके की स्थिरता में सुधार लाने पर लगातार ध्यान केंद्रित किया है। इसका मतलब साफ है कि बाजार में लॉन्च होने पर जायकोव-डी के लिए कम कोल्ड चेन की जरूरत होगी और उसे सामान्य कमरे की तापमान पर भी रखा जा सकेगा।
डॉ. पटेल ने कहा, ‘जायकोव-डी के साथ कंपनी ने देश में डीएनए टीका प्लेटफॉर्म की सफलतापूर्वक स्थापना की है। इस प्लेटफॉर्म को टीके की बेहतर स्थिरता दिखाने के लिए भी जाना जाता है। इस प्रकार हमें कोल्ड चेन की कम आवश्यकता होती है। यह टीका को देश के दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए आदर्श बनाता है। इसके अलावा यह प्लेटफॉर्म न्यूनतम जैव सुरक्षा आवश्यकताओं (बीएसएल-1) के साथ टीके के विनिर्माण को आसान बनाता है।’
कोविड-19 की एक नई किस्म के मद्देनजर ब्रिटेन एवं अन्य देशों में नए सिरे से लॉकडाउन करना पड़ा है और भारत में भी उसके कई मामले सामने आए हैं। ऐसे में जायडस का प्लाज्मिड डीएनए प्लेटफॉर्म इस वायरस के म्यूटेशन को रोक सकता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि यह टीका अब भी असरदार है।
कंपनी ने जायकोव-डी के लिए स्थिरता का भी दावा किया है क्योंकि कुछ राज्यों में सामूहिक टीकाकरण कार्यक्रम का ड्राइ रन चल रहा है। पटेल ने कहा, ‘यह टीका कमरे के तापमान पर भी स्थिर रहता है और इसे अधिक समय तक रखने के लिए 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान को बनाए रखना होगा। टीके की स्थिरता इस प्लेटफॉर्म का एक सबसे बड़ा फायदा है क्योंकि इससे हमें टीकाकरण कार्यक्रम के दौरान इसके परिवहन आदि में मदद मिलती है।’ जायडस कैडिला ने निवारक दवा क्षेत्र में अपने काम को आगे बढ़ाते हुए अनुसंधान एवं विनिर्माण क्षमताओं को भी बेहतर किया है। इससे उसे जायकोव-डी के उत्पादन में आसानी होगी। फिलहाल 300 वैज्ञानिकों की एक टीम कोविड-19 के टीके पर अनुसंधान कर रही है। कुल मिलाकर, कंपनी के पास 1,400 अनुसंधानकर्ता हैं जो विभिन्न कार्यक्रमों पर काम कर रहे हैं।
कंपनी अपने गुजरात संयंत्र में टीके की 12 करोड़ खुराक के साथ उत्पादन शुरू करने के लिए तैयार है। कंपनी मांग के आधार पर अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा भी सकती है। इसके अलीावा कंपनी 5 से 7 करोड़ अतिरिक्त खुराक के लिए अनुबंध आधारित उत्पादन करने के लिए किसी साझेदार को तलाश रही है।
हालांकि भारत खुद एक बड़ा बाजार है लेकिन जायडस अन्य एशियाई एवं अफ्रीकी बाजारों को भी भुनाने की योजना बना रही है। फिलहाल कंपनी यह सुनिश्चित करती दिख रही है कि उस इस टीके को बाजार में उतारने तक उसका हरेक कदम सही हो।
