मतदान अधिकारों के संबंध में डिश टीवी इंडिया के साथ येस बैंक के कानूनी विवाद से सर्वोच्च न्यायालय में न केवल कंपनी के भाग्य का फैसला होगा, बल्कि उन कई अन्य मामलों को भी प्रभावित करेगा जिनमें बैंक गिरवी पर नियंत्रण पाने के लिए चूककर्ताओं के साथ लड़ रहे हैं।
प्रवर्तकों द्वारा अपना कर्ज चुकाने में विफल रहने और गिरवी रखे गए शेयरों को बैंकों द्वारा लिए जाने के बाद येस बैंक ने डिश टीवी में 24.5 प्रतिशत हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया था। पिछले साल सितंबर में एस्सेल समूह के संस्थापक सुभाष चंद्रा ने बैंक और राणा कपूर के नेतृत्व वाले पूर्व प्रबंधन के खिलाफ वीडियोकॉन डी2एच और डिश टीवी इंडिया के बीच विलय के लेनदेन की दलाली करके धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए एक पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस द्वारा मामले की जांच की जा रही है।
सर्वोच्च न्यायालय सोमवार को येस बैंक की याचिका पर सुनवाई करेगा। चंद्रा की ओर से उत्तर प्रदेश पुलिस के पास दायर की गई प्राथमिकी को रद्द कराने के लिए अपनी याचिका गुरुवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा खारिज किए जाने के बाद ऋणदाता ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था।
गौतम बौद्ध नगर पुलिस की अपराध शाखा ने अपनी जांच के तहत डिश टीवी इंडिया में येस बैंक की हिस्सेदारी के संंबंध में मतदान के अधिकार पर रोक लगा दी है। वकीलों का कहना है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मतदान के अधिकार को बहाल नहीं किया जाता है, तो येस बैंक मंगलवार को होने वाली कंपनी के शेयरधारकों की बैठक में मतदान नहीं कर पाएगा। एक वकील ने कहा ‘सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से उन कई अन्य मामलों पर भी असर पड़ेगा, जिनमें बैंक कर्जदारों के साथ उनकी गिरवी के संबंध में लड़ रहे हैं।’
येस बैंक डिश टीवी के मौजूदा बोर्ड के स्थान पर अपने स्वयं के नामांकित व्यक्तियों को रखना चाहता है, क्योंकि इस ऋणदाता की राय है कि बोर्ड चंद्र परिवार के साथ है, जिनकी कंपनी में हिस्सेदारी घटकर छह प्रतिशत रह गई है। येस बैंक और डिश टीवी इंडिया ने इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की।
उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में येस बैंक ने इस साल 4 नवंबर को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बैंक और नैशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी को डिश टीवी के संबंध में अपने मतदान अधिकारों पर रोक लगाने के लिए जारी किए गए नोटिसों को भी चुनौती दी थी।
याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा था कि राहत के लिए मौजूदा कानूनों के अंतर्गत बैंक के पास मजिस्ट्रेट कोर्ट के पास जाने का वैधानिक उपाय है। उच्च न्यायालय ने कहा था कि हमारी राय है कि विधि सम्मत जांच को बाधित करने के लिए याचिका के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यह बात भलीभांति निर्धारित है कि ऐसे मामलों में जहां पूरे तथ्य अधूरे और अस्पष्ट हों, वहां उच्च न्यायालय को सामान्य रूप से प्रथम दृष्टया निर्णय देने से बचना चाहिए, खास तौर पर जब सबूत एकत्र नहीं किए गए हों और उन्हें अदालत के सामने पेश न किया गया हो।
अदालत ने कहा कि संबंधित मुद्दे चाहे तथ्यात्मक हों या कानूनी, उनका महत्त्व होता है और पर्याप्त जानकारी के बिना उन्हें उनके वास्तविक परिप्रेक्ष्य में नहीं देखा जा सकता है। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में हमारे पास पर्याप्त जानकारी की कमी है। इसलिए हमारी राय है कि विवादित तथ्यों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत नहीं परखा जा सकती है और अगर याचिकाकर्ता के पास इस नोटिस के खिलाफ प्रभावी वैधानिक उपाय उपलब्ध है, तो हम अपने विवेकाधीन क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से इनकार करते हैं।
