चेन्नई की एफएमसीजी कंपनी केविनकेयर ने अपने कारोबार को पुनर्गठित करने की घोषणा की है। कंपनी का कहना है कि आगे चलकर वह ई-कॉमर्स और विदेश में विस्तार जैसे क्षेत्रों पर बड़ा दांव लगाएगी। कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी और एफएमसीजी कारोबार के इंचार्ज वेंकटेश विजयराघवन ने शाइन जैकब से बातचीत में मूल्य निर्धारण संबंधी दबाव, कच्चे माल के क्षेत्र में गुटबंदी जैसी समस्याओं और आगे की योजनाओं के बारे में विस्तृत बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश:
मौजूदा पुनर्गठन के प्रमुख फायदे क्या हैं?
हमारी नजर अगले तीन वर्षों में 5,000 करोड़ रुपये के कारोबार पर है। इसे विस्तार की क्षमता एवं लाभप्रद श्रेणियों में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के साथ-साथ घरेलू एवं विदेशी बाजारों में विस्तार के जरिये हासिल किया जा सकता है। हम बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में अपनी भौतिक मौजूदगी बढ़ाने के अलावा 40 से अधिक देशों को निर्यात बढ़ाना चाहते हैं। हम अपने कुल कारोबार में विदेशी बाजारों के योगदान को मौजूदा करीब 4 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी करना चाहते हैं। भविष्य का कारोबार प्रौद्योगिकी आधारित और एनालिटिक्स आधारित अंतर्दृष्टि पर केंद्रित होगा।
मुख्य तौर पर एफएमसीजी कारोबार पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा अगले कुछ समय में हम सहायक कारोबार में भी विस्तार करेंगे। इसके अलावा हम सीके बेकरी एवं संचू एनिमल हॉस्पिटल जैसी श्रेणियों में भी आक्रामक होंगे। हम अपनी मौजूदा स्थिति के मुकाबले कहीं अधिक दमदार होना चाहते हैं और अगले कुछ वर्षों में आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाना चाहते हैं।
ई-कॉमर्स को लेकर आप काफी उत्साहित दिख रहे हैं और इस श्रेणी से राजस्व योगदान को मौजूदा 4 फीसदी से बढ़ाकर 2030 तक 25 फीसदी करने करना चाहते हैं। इसे आप किस प्रकार हासिल करेंगे?
बाजार में दो कारोबारी मॉडल उभरेंगे- उत्पाद आधारित मॉडल और खुदरा श्रेणी। ई-कॉमर्स आज एफएमसीजी कारोबार का एक अभिन्न हिस्सा है। हम काफी उत्साहित हैं क्योंकि ई-कॉमर्स हमें मौजूदा पोर्टफोलियो को बढ़ाने और नए डायरेक्ट-टु-कंज्यूमर ब्रांड लॉन्च करने का अवसर प्रदान करता है। ई-कॉमर्स में हम सालाना आधार पर 100 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं। उसे बढ़ावा देने के लिए हम नए उत्पाद और ब्रांड को लॉन्च करते हुए रणनीतिक साझेदारों को आकर्षित करेंगे। अगले दो साल के दौरान आप हमारे कई नए उत्पादों को बाजार में देखेंगे और उनमें से कई को जल्द ही लॉन्च किया जाएगा।
बढ़ती इनपुट लागत और कंटेनर संकट के कारण आप किस प्रकार का दबाव झेल रहे हैं?
हमने दो से तीन क्षेत्रों में लागत में वृद्धि का असर देखा है। उसमें से एक है ईंधन की कीमत में वृद्धि जिससे लॉजिस्टिक लागत बढ़ती है। अन्य क्षेत्रों में आयातित कच्चे माल एवं कंटेनर श्रेणी में मूल्य वृद्धि है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ मार्गों में निर्यात कंटेनर के लिए 200 फीसदी तक वृद्धि दिख रही है जिससे लागत काफी बढ़ जाती है। कच्चे माल के आयात के लिए हमारी लागत पर 5 से 7 फीसदी का प्रभाव दिख रहा है।
लागत वृद्धि का कितना बोझ उपभोक्ताओं के कंधों पर डालने की योजना है?
हम एक ऐसे परिदृश्य में काम कर रहे हैं जहां हमारे कारोबार का लगभग 45 फीसदी टर्नओवर सैशे कारोबार से आ रहा है। यहां कीमतें कमोबेश इस तरीके से निर्धारित की होती हैं कि हम उपभोक्ता के कंधों पर बोझ नहीं डाल सकते। हालांकि हम अपनी कुछ लागत बचाने के लिए मूल्य इंजीनियरिंग पर गौर करेंगे।