देश की दिग्गज सीमेंट कंपनी एसीसी वैकल्पिक ईंधन व कच्चे माल का इस्तेमाल करने और कचरा प्रबंधन को संगठित कारोबार की तरह विकसित करने की योजना बना रही है।
होल्सिम से मिली सहायता से कंपनी इस परियोजना पर तेजी से काम कर रही है। कंपनी इस क्षेत्र में रिटर्न की चिंता किए बगैर नीतिगत निवेश कर रही है।
इस प्रक्रिया से कंपनी को रिटर्न मिलने में थोड़ा अधिक समय लगेगा लेकिन कंपनी को इससे मुनाफा मार्जिन बढ़ने की पूरी उम्मीद है। कंपनी के प्रबंध निदेशक सुमित बनर्जी से इस बारे में बातचीत की चंदन किशोर कांत ने। मुख्य अंश:
एसीसी के वैकल्पिक ईंधन और कच्चे माल (एएफआर) के साथ कचरा प्रबंधन में खास क्या है?
विकसित देशों की तरह भारत में अभी नुकसानदायक कचरे का प्रबंधन करेन के लिए बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं। इस बारे में काम करने वाला पूरा तंत्र बेकार हो चुका है। होल्सिम के साथ काम करने से कंपनी को इस बारे में कुछ करने का मौका मिला है।
इसके लिए हमने एएफआर को गैर परंपरागत कचरे के कारोबार के तौर पर विकसित कर रहे हैं। इससे हमारी ईंधन की लागत तो कम होती ही है, कार्बन-डाई-ऑक्साइड की उत्सर्जन मात्रा में भी कमी आती है। यह भारतीय सीमेंट उद्योग के लिए बिल्कुल नई बात है।
क्या सीमेंट उद्योग को एएफआर में संभावनाएं नजर आ रही हैं?
एसीसी के लिए और पूरे सीमेंट उद्योग के लिए इस क्षेत्र में बहुत संभावनाएं हैं। अगर उद्योग 20 करोड़ टन क्षमता वाले किसी संयंत्र में लगने वाले ईंधन का 5-10 फीसदी भी एएफआर का इस्तेमाल करती है तो भी एएफआर के इस्तेमाल से 1-2 करोड़ टन सयीमेंट का उत्पादन होगा।
इस तरह के ईंधन का इस्तेमाल करने से कंपनी के परंपरागत ईंधन की खपत में कितनी कमी आई है?
फिलहाल तो ऐसा करने से परंपरागत ईंधन के इस्तेमाल में 5 फीसदी की कमी आई है। लेकिन यह आंकड़ा टन कि हिसाब से नहीं है। अभी तो हम पेंट्स, ऑटोमोबाइल, टैक्सटाइल, इस्पात संयंत्र, एफएमसीजी, रिफाइनरी और पेट्रोकैमिकल क्षेत्रों के कचरे का इस्तेमाल कर रहे हैं।
हाल ही में हमने अपनी काईमोर इकाई में प्लास्टिक का इस्तेमाल भी शुरू किया है। जल्द ही हम अपने गागल संयंत्र में भी कुछ ऐसा ही करने की योजना बना रहे हैं। अपने 12 संयंत्रों में से हमने एएफआर के इस्तेमाल के लिए 8 संयंत्रों का चुनाव कर लिया है। दरअसल इस क्षेत्र में लंबी अवधि के निवेश की दरकार होती है। इसीलिए हम रिटर्न के बारे में सोचे बगैर ही इस कारोबार में निवेश कर रहे हैं।
इसके इस्तेमाल से कंपनी के मुनाफा मार्जिन पर क्या असर पड़ेगा?
हमने अगले तीन साल में इस कारोबार से लगभग 100 करोड़ रुपये के मुनाफे का लक्ष्य रखा है।
इसका मतलब है कि कंपनी की कोयले की खपत में कमी आएगी?
कोयले का विकल्प ढूंढना रणनीतिक लिहाज से बहुत जरूरी है। लेकिन एएफआर कारोबार से हम इसकी खपत में बहुत ज्यादा कमी नहीं ला पाएंगे। अगर हम अपनी पूरी क्षमता के साथ भी इस कारोबार पर ध्यान दे तो हम कंपनी की कोयले की कुल खपत में 5-10 फीसदी की कमी ही कर पाएंगे।
जैट्रोफा की खेती में क्या विकास हुआ है?
हमारा लक्ष्य साल 2010 तक जैट्रोफा के 50 लाख पौधे लगाने का था। अभी तक हम लगभग 20 लाख पौधे लगा चुके हैं। हमारी योजना इनस डीजल का उत्पादन करने की नहीं है। बल्कि हम इनका इस्तेमाल सीधे तौर पर ईंधन के रूप में करेंगे। लेकिन अब हमें लग रहा है कि सुबबूल बेहतर विकल्प है। इस पेड़ को कम पानी की जरूरत होती है।