वाहन सूचकांक को बाजार में गिरावट का तगड़ा झटका लगा है और उसने पिछले महीने सभी क्षेत्रीय सूचकांकों के बीच सबसे अधिक गिरावट दर्ज की। सोमवार को भी वह सबसे अधिक गिरावट (4 फीसदी से अधिक) दर्ज करने वाला सूचकांक रहा जबकि
अधिकतर वाहन कंपनियों के शेयरों में 4 से 6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
पिछले महीने बीएसई वाहन सूचकांक में करीब 16 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जो बेंचमार्क सूचकांक बीएसई सेंसेक्स में दर्ज गिरावट के मुकाबले लगभग दोगुनी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण जिंस कीमतों में जबरदस्त तेजी और मार्जिन पर उसके प्रभाव के अलावा स्वामित्व लागत में वृद्धि, कमजोर मात्रात्मक बिक्री और आपूर्ति में कमी जैसे कारकों ने वाहन शेयरों को प्रभावित किया।
इसके अलावा वित्त वर्ष 2023 से वाहन बीमा प्रीमियम में वृद्धि के लिए सरकार के मसौदा प्रस्ताव से भी धारणा प्रभावित हुई। पिछले दो वर्षों के दौरान थर्ड पार्टी मोटर बीमा प्रीमियम में बढ़ोतरी नहीं हुई है। यदि मसौदा प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है तो विशिष्ट क्षेत्रों में बीमा लागत करीब 20 फीसदी बढ़ सकती है।
दोपहिया बाजार में 350 सीसी और इससे अधिक क्षमता वाली श्रेणी सबसे अधिक प्रभावित हुई है जहां प्रीमियम में 21 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। रॉयल एनफील्ड (आयशर मोटर) इस श्रेणी में बाजार की अग्रणी कंपनी है। इसके अलावा 150 से 350 सीसी दोपहिया श्रेणी में प्रीमियम करीब 15 फीसदी बढ़ गया है और इससे बजाज ऑटो को सबसे अधिक झटका लग सकता है।
जिंस लागत में भारी वृद्धि होने से मार्जिन पर दबाव बढ़ेगा और ग्राहकों के लिए वाहन चलाने की लागत बढ़ जाएगी। एलारा सिक्योरिटीज ने उजागर किया है कि दिसंबर तिमाही के दौरान स्कूटर के लिए कुल परिचालन मुनाफा मार्जिन में सालाना आधार पर 390 और तिमाहि आधार पर 90 आधार अंकों की गिरावट आई। इसकी मुख्य वजह जिंस कीमतों में तेजी, कंटेनर की लागत में वृद्धि और उत्पादन में कटौती के कारण नकारात्मक परिचालन लीवरेज रही। जिंस बास्केट में तेजी के कारण इन चिंताओं को हवा मिली। हालांकि पिछले महीने इस्पात कीमतों में 12 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई और एल्युमीनियम के दाम 17 फीसदी बढ़ गए।
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के ऋषि वोरा ने कहा है कि एल्युमीनियम और पैलेडियम की हाजिर कीमतों में तीसरी तिमाही के बाद 40 से 55 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। यात्री वाहन बाजार की अग्रणी कंपनी मारुति सुजूकी के औसत विक्रय मूल्य में एल्युमीनियम एवं कीमती धातु का योगदान करीब 10 फीसदी होता है। उन्होंने कहा, ‘कंपनी के लिए कच्चे माल की पूरी बढ़ी हुई लागत ग्राहकों के कंधों पर डालना कठिन होगा क्योंकि इससे मांग में सुधार की रफ्तार सुस्त पड़ सकती है, खासकर प्रवेश स्तर की श्रेणी में।’
यूटिलिटी व्हीकल और हाई एंड दोपहिया वाहनों की मांग प्रवेश स्तर के वाहनों के मुकाबले बेहतर है लेकिन सेमीकंडक्टर की किल्लत एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। आगे स्थिति कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण होने के आसार हैं। मूडीज एनालिटिक्स का कहना है कि यदि आगामी महीनों के दौरान कोई समाधान नहीं हुआ तो चिप किल्लत कहीं बढ़ेगी और ऐसे में उस पर अधिक निर्भर रहने वाला उद्योग प्रभावित होगा। इसका मतलब साफ है कि वाहन कंपनियों के लिए आगे जोखिम बरकरार है।
टाटा मोटर्स, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, आयशर मोटर्स और बजाज ऑटो कहीं अधिक प्रभावित हो सकती हैं। इसके अलावा भारत और यूरोप, चीन एवं अमेरिका जैसे प्रमुख बाजारों में उपकरण विनिर्माताओं को भी तगड़ा झटका लग सकता है।
वाणिज्यिक वाहन बनाने वाली कंपनी अशोक लीलैंड के शेयर में भी इन चिंताओं की झलक मिलती है। पिछले महीने यह सबसे अधिक गिरावट दर्ज करने वाला वाहन शेयर रहा जिसने 27 फीसदी की गिरावट दर्ज की। बाजार वाणिज्यिक वाहन श्रेणी में विभिन्न कारकों पर नजर रखेगा जहां आर्थिक गतिविधियों में तेजी और बेड़ा ऑपरेटरों के लाभप्रदता में सुधार दिख रहा था। जहां तक दोपहिया श्रेणी का सवाल है तो ब्रोकरेज की पसंद बजाज ऑटो, टीवीएस मोटर और हीरो मोटोकॉर्प जैसी निर्यातक कंपनियां हैं।
