बीएस बातचीत
निप्पॉन इंडिया म्युचुअल फंड में फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टमेंट्स के सीआईओ अमित त्रिपाठी ने समी मोडक के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि फेडरल के नीतिगत कदम का जोखिम से जुड़ी परिसंपत्तियों और वैश्विक तरलता पर असर पड़ेगा। त्रिपाठी ने कहा कि अल्पावधि अनिश्चितता की आशंका को देखते हुए यह जरूरी है कि निवेशक अपनी निवेश अवधियों के अनुरूप उत्पादों का चयन करें। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
10 वर्षीय सरकारी प्रतिफल मई से बढ़ा है। क्या आप इसमें और तेजी आने की उम्मीद कर रहे हैं?
मुख्य सीपीआई में अप्रत्याशित वृद्घि इसकी मुख्य वजह थी जिससे बाजारों में अस्थिरता पैदा हुई। तीन मुख्य कारकों ने यह सुनिश्चित यिका कि प्रतिफल तब से चढ़ा है, जिनमें दूसरी लहर के बाद तेज सुधार, सीपीआई में लगातार तेजी और मौद्रिक नीति को सामान्य बनाने की आगामी प्रक्रिया मुख्य रूप से शामिल हैं। मौद्रिक नीति का सामान्यीकरण नजदीक है, जिसके अलावा आरबीआई द्वारा सक्रिय नकदी प्रबंधन से भी अगले 6-12 महीनों के दौरान संक्षित अवधि की दरों को बढ़ावा मिलेगा। जहां लंबी अवधि की दरों में इसकी वजह से कुछ हद तक बदलाव देखा जा सकता है, वहीं मौजूदा प्रतिफल में तेजी को देखते हुए समायोजन की मात्रा कमजोर है। हमें 10 वर्षीय बेंचमार्क का प्रतिफल वित्त वर्ष 2022 के दौरान 6.50 प्रतिशत से नीचे रहने का अनुमान है।
मुद्रास्फीति पर आपका क्या नजरिया है? आरबीआई कब तक दरें बढ़ा सकता है?
जब तक वैश्विक जिंस कीमतों में भारी गिरावट नहीं आती, तब तक मुख्य सीपीआई वित्त वर्ष 2023 में 5 प्रतिशत तक बनी रह सकती है, जिससे मुख्य सीपीआई के लिए 4 प्रतिशत का लक्ष्य मुश्किल बना रहेगा। मौजूदा आरबीआई ढांचे के तहत, सतत विकास राह की दृश्यता किसी तरह के सामान्यीकरण के लिए मुख्य वाहक है, क्योंकि मुख्य मुद्रास्फीति अनुमान 5 प्रतिशत के आसपास बना हुआ है। ऐसे परिवेश में, हमारा मानना है कि आरबीआई सुस्त सामान्यीकरण की राह पर आगे बढ़ सकता है और पहले राह सुनिश्चित कर सकता है और फिर रीपो दर पर ध्यान दे सकता है और अगले 18-26 महीनों में 5-5.50 प्रतिशत के दायरे में दरों पर ध्यान बनाए रख सकता है।
घरेलू बाजारों में अमेरिकी फेडरल के कदम का नीति सामान्यीकरण पर क्या असर पड़ेगा? आप भारतीय और अमेरिकी प्रतिफल के बीच किस तरह का अंतर देख रहे हैं?
अमेरिकी नीति सामान्यीकरण का संबंध सभी जोखिमपूर्ण परिसंपत्तियों और वैश्विक तरलता से भी है। इसके अलावाा घरेलू तौर पर, वित्तीय स्थिति और मुख्य सीपीआई रुझानों भी दर निर्धारण और बाजार प्रतिफल के लिहाज से हमारे बॉन्ड बाजारों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होंगे।
क्या डेट योजनाओं में निवेश का यह सही समय है?
क्या सामान्यीकरण प्रक्रिया अस्थिरता लाएगी। प्रतिफल की राह में उतार-चढ़ाव अनिवार्य है और इससे अंतरिम उतार-चढ़ाव के खिलाफ सुरक्षा हासिल हुई है। मौजूदा समय में, निवेशकों के लिए अपनी निवेश अवधि के साथ तालमेल बिठाकर शेयरों का चयन करना बेहद जरूरी है।
कौन सी योजनाएं/श्रेणियां मौजूदा समय में ज्यादा आकर्षक हैं?
अल्पावधि निवेश अवधि या अपनी होल्डिंग अवधि को लेकर आशंकित रहने वाले निवेशकों के लिए हम अगले 3-6 महीने तक सतर्कता बरतने का सुझाव देना चाहेंगे औा सामान्यीकरण की रफ्तार स्पष्ट होने का इंतजार करेंगे। श्रेणियों के संदर्भ में, निवेशक 6-12 महीनों की निवेश अवधि के साथ अल्ट्रा-शॉर्ट टर्म और लो-ड्यूरेशन फंडों पर विचार कर सकते हैं। तीन साल की अवधि के लिए, अल्पावधि और कॉरपोरेट बॉन्ड फंड अच्छी स्थिति में हैं।
क्या क्रेडिट-रिस्क फंडों में अच्छे अवसर मौजूद हैं?
कॉरेपोरेट और वित्तीय बैलेंस शीट मौजूदा समय में अच्छी स्थिति में हैं। पूरी व्यवस्था में ऋण की स्थिति भी सुधरी है। परिसंपत्ति गुणवत्ता की समस्या काफी हद तक चिह्नित हुई है और उसका समाधान निकाला गया है।