दैनिक हिंदी अखबार दैनिक भास्कर चलाने वाले प्रकाशन कंपनी डी बी कॉर्प को अपने आईपीओ से ऐन पहले अखबार के मालिकाना को लेकर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। अखबार कई बाजारों में उपलब्ध है।
कंपनी के मालिकाना को यह चुनौती दी है दिवंगत द्वारका प्रसाद अग्रवाल के भाई महेश प्रसाद अग्रवाल ने।
फिलहाल द्वारका प्रसाद अग्रवाल के निधन के बाद उनके बेटे रमेश चंद्र अग्रवाल मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में अखबार का प्रकाशन करते हैं जबकि महेश प्रसाद अग्रवाल झांसी में अखबार के प्रकाशन का कामकाज देखते हैं।
महेश प्रसाद और उनके बेटे संजय अग्रवाल ने दावा किया है कि द्वारका प्रसाद अग्रवाल ऐंड ब्रदर्स में उनकी लगभग 30 फीसदी हिस्सेदारी है जो कि दैनिक भास्कर की मालिक है।
संजय अग्रवाल ने कहा, ‘अगर डी बी कॉर्प के पास दैनिक भास्कर टाइटल के ही पूरे अधिकार नहीं हैं, तो कंपनी इस ब्रांड के नाम का सहारा लेते हुए आईपीओ लाकर पैसे कैसे जुटा सकती है?’
दैनिक भास्कर के नाम पर दावा करने वाले संजय अग्रवाल ने सेबी से इस मामले में दखल देने की गुहार लगाई है।
उन्होंने सेबी से आग्रह किया है कि डीबी कॉर्प को अखबार के ब्रांड का इस्तेमाल करके आईपीओ लाने से रोका जाए क्योंकि इस टाइटल के मालिकाना को लेकर स्पष्टता का अभाव है।
हालांकि डी बी कॉर्प के अधिकारियों का दावा है कि अखबार के टाइटल को लेकर कोई विवाद नहीं है। इस मामले में जुलाई 2003 में ही उच्चतम न्यायालय अपना फैसला सुना चुका है।
डी बी कॉर्प के कंपनी सचिव के वेंकटरामन ने भारतीय समाचार पत्र पंजीयक के पत्र की कॉपी ग्वालियर, इन्दौर, झांसी, जबलपुर और भोपाल के जिला अधिकारियों के पास भिजवा दी है।
पंजीयक के पत्र में लिखा है दैनिक भास्कर के टाइटल को अपडेट किया जा चुका है और मालिकाने की स्थिति को 29 जून 1992 से पहले की उसी स्थिति में बहाल किया जा चुका है जब यह पांच जगह पांच अलग कंपनियों के नाम से पंजीकृत किया गया था।
वेंकटरामन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘इस मामले पर स्थिति साफ करने के लिए हम 18 जून 2004 को भारतीय समाचार पत्र पंजीयक के उस पत्र की कॉपी भी भेज रहे हैं जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में जिक्र किया गया है और लिखा गया है कि ‘दैनिक भास्कर’ के पांचों मालिकों ने न्यायालय के फैसले को मान लिया था।’ उनके अनुसार हर मालिक उक्त आदेश को मान रहा है।
हालांकि ‘आईपीओ के रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस में जोखिमों के बारे में दिया गया है कि दैनिक भास्कर पर डी बी कॉर्प के मालिकाना हक को हमारे प्रमोटरों में से एक के कुछ रिश्तेदारों के साथ-साथ कुछ अन्य ने चुनौती दी है।
हालांकि साल 2003 में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद 18 जून 2004 को भारतीय समाचार पत्र पंजीयक के पत्र से दैनिक भास्कर अखबार पर हमारा हक साबित हो गया है।
लेकिन इसके बाद भी हम इस बात का कोई आश्वासन नहीं दे सकते कि भविष्य में ऐसे दावे या अन्य विवाद नहीं उठाए जाएंगे। ऐसे विवाद उठाने से हमारी कंपनी की प्रतिष्ठा और नाम खराब हो रहा है।’
इस प्रॉस्पेक्टस में यह भी कहा गया है, ‘हो सकता है कि भविष्य में दैनिक भास्कर के किसी और राज्य से प्रकाशन पर भी प्रतिबंध लग जाए।’ इसमें लिखा गया है कि ‘फिलहाल हम उत्तर प्रदेश में दैनिक भास्कर का प्रकाशन नहीं कर सकते हैं क्योंकि दूसरी पार्टियां यहां प्रकाशन कर रही हैं।
हम इस बात का भी कोई आश्वासन नहीं दे सकते कि जहां हम इस अखबार का प्रकाशन नहीं करते हैं वहां और कोई भी इस अखबार का प्रकाशन नहीं करेगा। दूसरे पक्षों के साथ हुए समझौते के तहत हम महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में अखबार का प्रकाशन नहीं करेंगे।’
डी बी कॉर्प के प्रबंध निदेशक सुधीर अग्रवाल ने कहा, ‘हमारे खिलाफ ये सभी मामले पुराने हैं और इनका हमने सेबी को पेश आवेदन के रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस में जोखिमों के रुप में जिक्र किया है।’ सुधीर अग्रवाल के छोटे भाई और डी बी कॉर्प के निदेशक गिरीश अग्रवाल ने कहा कि इस मामले में छानबीन किए बगैर तो वारबर्ग ऐंड पिनकस कंपनी में निवेश नहीं करती।
