बाजार में कड़ा मुकाबला है और उपभोक्ताओं के पास किराना दुकानें, हाइपरमार्केट और यहां तक की सुपरबाजारों के बहुत से फॉर्मेट हैं, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए। और सुपरबाजार भी इस बात को जानते हैं।
भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद (आईआईएम-ए) का एक अध्ययन में ‘रोल ऑफ फैमिली इन फॉर्मेट चॉयस’ में कुछ बातें उभर कर सामने आई हैं और उनका समाधान भी दिया बताया गया है। इस अध्ययन में स्टोर को किराने की दुकानें, सुपरबाजार, सुपरसेंटर्स और बड़ी दुकानों में बांटा है। किराने की दुकानों में सभी सामान नहीं होता है, लेकिन कीमतें सबसे अधिक होती हैं।
सुपरबाजारों में किराने की दुकानों के मुकाबले ज्यादा सामान होता है, लेकिन कीमतें कम। सुपरसेंटर्स में एक छत के नीचे कम कीमतों में उत्पाद बेच जाते हैं। बड़ी दुकानें में कम कीमत में और एक छत के नीचे सभी चीजें मिल भी जाती हैं।
आईआईएम-ए के रिटेल एवं मार्केटिंग विशेषज्ञ और संकाय सदस्य पीयूष सिन्हा का कहना है, ‘पहले की तरह नहीं जब ग्राहक रिटेल स्टोर में किसी एक विचार के साथ पहुंचते थे। अब बड़ी मात्रा में ऐसे खरीदार शामिल हो गई हैं, जिन पर उनके परिवार के अन्य सदस्यों की पसंद-नापसंद का भी असर बढ़ गया है।’ उन्होंने चेताया है, ‘ स्टोर फॉर्मेट में जबरदस्त मुकाबला है, बदलावों की कमी के चलते सुपरबाजार हाइपरमार्केट और छोटी किराने की दुकानों से पिछड़ जाएंगे।
हाइपरमार्केट छूट योजनाएं चला सकते हैं और स्थानीय किराने की दुकाने व्यक्तिगत सेवाएं दे सकती हैं, जबकि सुपरबाजार इनमें से कोई सुविधा नहीं दे रही। ऐसे में सुपरबाजार तभी बाजार में बने रह सकते हैं, जब वे हर तरह के उपभोक्ताआ को बेहद चुस्त उपभोक्ता सेवाएं मुहैया कराएंगे।’
अध्ययन के अनुसार उपभोक्ता सस्ता स्टोर या एक छत के नीचे सभी चीजें मुहैया होने को प्राथमिकता नहीं देते। हो सकता है कि सस्ता स्टोर हल्की सेवाएं, प्रदर्शन और वातावरण मुहैया कराए, जिस वजह से मुनाफे में कमी हो जाए और लागत बढ़े।
कई उपभोक्ताओं पर उनके परिवार में सदस्यों की संख्या और उनमें कितने व्यस्क हैं कितने बच्चे हैं, इस बात पर भी स्टोर की पसंद निर्भर करती है। बड़े परिवार में उपभोग का स्तर अधिक होता है और वे बड़ी मात्रा में वस्तुएं या सेवाएं खरीदते हैं, जिसके लिए वे छोटे परिवारों के मुकाबले में जल्दी-जल्दी खरीदारी करने जाते हैं।
अध्ययन में आगे बताया गया है कि किराने की दुकानों और सुपरसेंटर, के मुकाबले छोटी-मोटी जरूरतों के लिए उपभोक्ता नुक्कड़ की दुकानों पर जाते हैं। जिस परिवार में कामकाजी सदस्यों की संख्या ज्यादा होती है वे कम खरीदारी करने निकलते हैं और एक साथ अधिक मात्रा में खरीदारी करते हैं। इससे वे कई वस्तुओं के लिए अलग-अलग दुकानों पर जाने की बजाए एक ही छत के नीचे खरीदारी करें।
आदित्य बिड़ला रिटेल लिमिटेड के ‘मोर’ सुपरबाजार स्टोर के एक अधिकारी का कहना है, ‘ग्राहक पर परिवार के सदस्यों के बढ़ते दबाव के साथ बेहतर रणनीति की आवश्यकता है। इसलिए हमने समाज के विभिन्न वर्गों को सेवाएं मुहैया कराना शुरू कर दिया है और हम अपने सुपरबाजार में हर तरह की खरीदारी पर ध्यान दे रहे हैं।’
पसंद का मामला है
छोटे सामानों के लिए ग्राहक जाते हैं नुक्कड़ की दुकानों पर
ग्राहक पहले पसंद करते हैं फॉर्मेट और फिर उसी फॉर्मेट का कोई भी स्टोर
हाइपर मार्केट में मिलती हैं छूट तो किराने की दुकानों पर मिलती हैं व्यक्तिगत सेवाएं
सुपरमार्केट ग्राहकों को नहीं देते हैं ऐसी कोई भी सुविधा