कितने हैरत की बात है कि सिटी ग्रुप जैसे दुनिया के महारथी निजी बैंक अपनी भारी-भरकम फौज से कमोबेश एक लाख लोगों को बाहर का रास्ता दिखा चुके हैं।
वहीं भारतीय स्टेट बैंक इसके उलट अपनी फौज बढ़ाने की कवायद में जुटा है। वह इसलिए क्योंकि उसे मालूम है कि इन निजी बैंक मंदी के अंधेरे में एक के बाद एक डूबते निजी बैंकों के सितारे 59 फीसदी सरकारी हिस्सेदारी वाले स्टेट बैंक की कुंडली में सुनहरा भविष्य लाने वाले सितारे बन सकते हैं।
बशर्ते वह निजी बैंकों से किनारा कसते निवेशकों को मंदी के खौफ से छुटकारा दिलाकर उन्हें अपनी झोली में टपका सके। और निजी क्षेत्र के दो महारथी बैंक आईसीआईसीआई और एचडीएफसी से वह हिस्सा छीन सके, जो उससे 1994 में बाजार के खुलने के बाद इन दोनों ने झटक लिया था।
हालांकि दोनों महारथियों की लाख कोशिश के बावजूद स्टेट बैंक अभी भी बाजार में शीर्ष पर है लेकिन मंदी अगर इन्हें शिकार नहीं बनाती, तो कभी भी हालात उलट हो सकते थे, इसका डर तो उसे भी सता ही रहा था।
बहरहाल, मंदी को सुनहरा मौका जानकर ही वह सामने खड़े सुनहरे भविष्य को अपनी मुट्ठी में करने के लिए 25 हजार लोगों को अपनी फौज में और शामिल करने जा रहा है। बैंक के चेयरमैन ओ. पी. भट्ट ने मुंबई में एक साक्षात्कार में बैंक की रणनीति के बारे में खुलकर बताया।
देश के कुल जमा का 16.11 फीसदी और कर्ज का 16 फीसदी हिस्सा अपनी झोली में रखने वाले इस बैंक के सामने अब शायद कोई चुनौती नहीं है।
25,000 – नौकरियां देगा एसबीआई
मंदी के महासंग्राम की तलवार
मंदी का फायदा उठाकर निजी बैंकों द्वारा छीने गए बड़े बाजार हिस्से को वापस लेने की तैयारी
इसके लिए नए कर्मचारियों के साथ-साथ एक साल में 2000 नई शाखाएं खोलने का इरादा
आईसीआईसीआई और एचडीएफसी ने छीना था स्टेट बैंक से 0.8 फीसदी हिस्सा