अंतरराष्ट्रीय उड़ानें संचालित करने वाली भारतीय विमानन कंपनियों पर मंदी का कोहरा गहराता जा रहा है।
माना जा रहा है कि इस मंदी का ज्यादा असर विदेशी कंपनियों के बजाय भारतीय कंपनियों पर पड़ेगा। इससे कंपनियां अपने द्विपक्षीय अधिकारों को पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाएंगी, बाजार के ज्यादातर हिस्से पर विदेशी कंपनियां काबिज हो जाएंगी और उनकी कमाई में सेंध लग जाएगी।
हाल में हुई दो घटनाएं इसकी ओर इशारा भी करती हैं। खाड़ी क्षेत्र की विमानन कंपनी गल्फ एमिरेट्स ने हाल ही में अपनी साप्ताहिक उड़ानों में इजाफे का ऐलान किया। कंपनी 132 के बजाय हर हफ्ते अब 163 उड़ानें संचालित करेगी।
जाहिर है भारतीय कंपनी एयर इंडिया पर इसका असर पड़ेगा। इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया एक्सप्रेस के साथ इस कंपनी की दुबई के लिए हफ्ते में कुल मिलाकर 150 से ज्यादा उड़ानें नहीं हैं। इस ऐलान से पहले भारत और दुबई के बीच एयर इंडिया ही सबसे ज्यादा उड़ानें संचालित करती थी।
इसी तरह जेट एयरवेज ने भी महंगाई और मंदी से परेशान होकर सर्दी के दिनों में अपनी 19 फीसद उड़ानें कम कर लीं। कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘अक्टूबर से हमारी शीतकालीन समय सारणी शुरू होती है। हम इसमें अपनी क्षमता में 19 फीसद की कटौती कर रहे हैं। मस्कट जैसी जगहों पर हम उड़ानें चालू करने वाले थे, लेकिन अब उन्हें भी टाला जा रहा है।’
सितंबर 2008 को समाप्त हुई दूसरी तिमाही के लिए जेट एयरवेज को अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर कर अदायगी से पहले 290 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, जबकि कंपनी को कर अदायगी से पहले 580 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
जहां जेट ने अपने दिल्ली-हाँग काँग उड़ानों की योजना को रोका हुआ है, वहीं हाँग काँग विमानन कंपनी कैथे पेसिफिक ने द्विपक्षीय अधिकारों को बढ़ाने के मौके का पहले फायदा उठाते हुए इस मार्ग पर इस साल की शुरुआत में 8 उड़ानों की संख्या को बढ़ाकर मौजूदा समय में 24 कर लिया है।
ब्रिटिश एयरवेज और दूसरी कंपनियां भी इसका उदाहरण हैं। कंपनी ने पहले हैदराबाद से लंदन के लिए एक दैनिक उड़ान और बेंगलुरु तथा लंदन के बीच हफ्ते में पांच उड़ानें शुरू की थीं। दो दिन पहले ही स्कैंडीनेवियन एयरलाइंस ने भी भारत और कोपनहेगन के बीच हफ्ते में तीन उड़ानें चालू की हैं।