बीएस बातचीत
इस्पात की कीमतों में वैश्विक स्तर पर गिरावट आई है खासकर चीन में कीमतें अधिक घटी हैं। टाटा स्टील के कार्यकारी निदेशक एवं मुख्य वित्तीय अधिकारी कौशिक चटर्जी ने ईशिता आयान दत्त से बातचीत में विस्तार से बताया कि किस प्रकार फंडामेंटल्स में कोई बदलाव नहीं हुआ है और यूरोप एक मजबूत चरण में है जहां कंपनी की विनिर्माण इकाइयां मौजूद हैं। पेश हैं मुख्य अंश:
अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस्पात की कीमतों में गिरावट आने से घरेलू बाजार में धारणा प्रभावित हुई है। क्या अब इस्पात की कीमतों में तेजी की बुलबुला फूट चुका है?
फंडामेंटल्स में कोई बदलाव नहीं हुआ है। बुनियादी ढांचे के निर्माण से अमेरिका और यूरोप में मांग को रफ्तार मिल रही है। प्लेट जैसे कुछ उत्पादों में तैयार इस्पात बनाम कच्चे माल की कीमतें रिकॉर्ड 1,000 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच चुकी हैं। इसके अलावा चीन एवं जापान जैसे देशों में पर्यावरण नीतियों के कारण क्षमता को युक्तिसंगत बनाए जाने से आपूर्ति में कुछ व्यवधान हुआ है। उनकी नजर निर्यात बाजार पर है। ये ढांचागत बदलाव हैं और कुल मिलाकर परिदृश्य समान है। भारत में त्योहारी सीजन के दौरान वाहन क्षेत्र की मांग उम्मीद से काफी कम था। लेकिन उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों के दौरान उसमें तेजी आएगी। खुदरा में तेजी दिखने लगी है। दक्षिण भारत में बाढ़ के कारण भी निर्माण गतिविधियां प्रभावित हुई हैं जबकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपायों से निर्माण गतिविधियों पर असर पड़ा है। हालांकि ये घटना विशेष से संबंधित बदलाव है और उसके निपटते ही मांग वापस आने लगेगी।
वित्त वर्ष 2022 के लिए ऋण बोझ घटाने की क्या योजना है? मौजूदा इस्पात चक्र में कितना ऋण बोझ घटा है?
हम पूरी कोशिश करेंगे कि चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में हमने जो प्रदर्शन (11,424 करोड़ रुपये) किया है उसे दोहराया जा सके। पिछले 18 महीनों के दौरान सितंबर तक हमने 38,000 करोड़ रुपये का ऋण बोझ हल्का किया है।
टाटा स्टील यूरोप ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। आगे का परिदृश्य कैसा रहेगा?
इस साल परिदृश्य दमदार रहने के आसार हैं और स्प्रेड्स कई साल की ऊंचाई पर हैं। हालांकि सेमीकंडक्टर किल्लत के कारण यूरोप की अपनी चुनौतियां हैं लेकिन हमारी नजर वैकल्पिक श्रेणियों पर है। बुनियादी ढांचा और निर्माण जैसे क्षेत्रों की मांग में स्थिरता दिख रही है। यूरोपीय इस्पात उद्योग की क्षमता उपयोगिता फिलहाल काफी अधिक है और जबरदस्त मांग के कारण स्प्रेड्स कई साल की ऊंचाइयों पर हैं। ढांचागत तौर पर यह एक दमदार चरण है और यूरोप शेष दुनिया के मुकाबले तेजी से कार्बन उत्सर्जन को कम करेगा। इसलिए धातुओं की मांग में तेजी बरकरार रहेगी। परिचालन प्रदर्शन के मद्देनजर एबिटा के मोर्चे पर टाटा स्टील यूरोप के लिए यह एक बेहतरीन साल होगा।
क्या सीओपी26 के कारण भारतीय उद्योग जगत के ईएसजी पहल को रफ्तार मिलेगी? टाटा स्टील का क्या लक्ष्य है?
हम यूरोप और भारत दोनों जगह कार्बन उत्सर्जन को कम करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। यूरोप आगे है क्योंकि विनियमन की रफ्तार कहीं अधिक है और हम स्थायित्व एवं प्रतिस्पर्धात्मकता को बरकरार रखते हुए कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की कोशिश कर रहे हैं। यही राह अगले दशक के लिए होगी। भारत में हरेक निवेश के लिए हम कार्बन उत्सर्जन पर करीबी नजर रख रहे हैं।
टाटा स्टील बीएसएल (पूर्व में भूषण स्टील) और टाटा स्टील के विलय अब प्रभावी है। लागत में कैसी बचत की उम्मीद की जा रही है?
हम पिछले कुछ समय से वर्चुअल एकीकरण के लिए काम कर रहे हैं। मुझे लगता है कि आपूर्ति शृंखला से लेकर कच्चे माल एवं वितरण तक और संगठन को सरल बनाए जाने जैसे विभिन्न मोर्चों पर लागत में 1,000 से 1,500 करोड़ रुपये की बचत होनी चाहिए। पिछले तीन साल के दौरान हमने लागत के मोर्चे पर कई पहल किए हैं।