जिंस कीमतों में गिरावट से कंपनियों पर बुरा असर पड़ रहा है। कई कंपनियों के पास कच्चे माल के अंबार लगे हुए हैं।
कई मामलों में तो अंतिम उत्पादों के लिए इस्तेमाल में लाए गए कच्चे माल की उच्च कीमतों पर खरीदारी की गई थी। लेकिन उसके बाद जिंस कीमतें धरती पर आ गई हैं। इसका ज्यादा प्रतिकूल असर तेल रिफाइनरी कंपनियों पर पड़ा है। कच्चे तेल की कीमतें 147 डॉलर प्रति बैरल से घट कर 62 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई हैं।
रिलायंस इंडस्ट्रीज और एस्सार ऑयल जैसी रिफाइनरी फर्मं पेट्रोलियम उत्पादों की सस्ते दामों पर बिक्री करने को बाध्य हो रही हैं। ये कंपनियां अपने उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा निर्यात करती हैं। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में गिरावट ने कई सहायक इकाइयों पर असर डाला है।
एक प्रमुख पेंट निर्माता ने यह स्वीकार किया है कि कंपनी को पेट्रोकेमिकल के कच्चे पदार्थों को लेकर मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इन पदार्थों की कीमतों में 30-50 फीसदी की गिरावट आ गई है। कुछ कंपनियों ने इस गिरावट को देखते हुए कई ठोस कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।
इंडो रामा के ओपी लोहिया बताते हैं, ‘हम सचेत हो गए हैं और मांग में 10-15 फीसदी की गिरावट आ जाने के कारण हमने पिछली तिमाही में उत्पादन में कटौती शुरू कर दी है।’ पेट्रोकेमिकल पदार्थों की कीमतों में 50 फीसदी तक की कमी आई है।
जिंस की कीमतों में आई गिरावट से एल्युमिनियम और इस्पात उद्योग भी प्रभावित हुए बगैर नहीं रहे हैं। इस्पात कंपनियों के पास सामान्य की तुलना में तीन गुना माल पड़ा हुआ है।
लेकिन पहले ऊंची कीमतों पर कच्चे माल की खरीद कर चुकी कंपनियों को माल ढुलाई लागत में भी इजाफा का सामना करना पड़ रहा है।
यह माल ढुलाई 500 रुपये प्रति टन के आसपास है। भारत में कई इस्पात निर्माताओं, जिनकी यहां अपनी खदानें नहीं हैं, को इस ढुलाई खर्च की मार से जूझना पड़ रहा है। स्टेनलेस स्टील बनाने के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले क्रोम अयस्क की कीमतों में भी गिरावट आई है। यह अयस्क फेरोक्रोम से निकाला जाता है।
क्रोम अयस्क की बिक्री करने वाले उड़ीसा मिनरल्स कॉरपोरेशन (ओएमसी) ने पिछली तिमाही में अयस्क की कीमत में 40 फीसदी तक की कटौती की, लेकिन फिनिश्ड उत्पादों की कीमतों में 50-60 फीसदी तक की गिरावट आई।
जिंदल स्टेनलेस के निदेशक (रणनीति एवं कारोबार विकास) अरविंद पारेख ने कहा, ‘तब से फेरोक्रोम की कीमतों में 10-15 फीसदी की और गिरावट आई है। ये कीमतें हर तिमाही में तय की जाती हैं। हमारे पास सामानों और कच्चे माल का अंबार लगा हुआ है जो हमें बर्बाद कर रहा है।’
एल्युमिनियम क्षेत्र को भी इसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। वेदांत एल्युमिनियम के मुख्य कार्यकारी (एल्युमिनियम कारोबार) प्रमोद सूरी ने कहा, ‘पिछले कुछ महीनों की तुलना में अक्टूबर की बिक्री दो-तिहाई रही। सामान्य तौर पर 8-10 दिन के बजाय हमारे पास 15-30 दिनों का सामान पड़ा हुआ है।’
जेएसडब्ल्यू स्टील के निदेशक (वित्त) सेशागिरि राव ने कहा कि इस्पात उद्योग अक्सर 10 लाख टन इस्पात या सात दिनों के भंडार के स्तर पर बना रहता है, लेकिन मौजूदा समय में यह बढ़ कर तीन सप्ताह के भंडार में तब्दील हो गया है। कुछ छोटी कंपनियां तो तकरीबन एक महीने का स्टॉक रखे हुए हैं।
उत्तम गाल्वा स्टील्स के निदेशक (कमर्शियल) अंकित मिगलानी ने कहा, ‘फिलहाल वहां भ्रम बना हुआ है। बहुत जल्द ही कच्चे माल की मात्रा में कमी आएगी, क्योंकि उत्पादक अपने उत्पादन में कटौती कर रहे हैं।’
एस्सेल माइनिंग ऐंड इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी रवि कास्तिया ने कहा, ‘पूरे लौह अयस्क उद्योग में 3.5 करोड़ टन के सामानों का ढेर लगा हुआ है। आमतौर पर यह तकरीबन 3 करोड़ टन होता है।’