बीएस बातचीत
वैश्विक स्तर पर कीमतों में गिरावट के कारण दिसंबर में फ्लैट व लॉन्ग प्रॉडक्ट्स की कीमतें घटी हैं। जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक और मुख्य वित्त अधिकारी (समूह) शेषगिरि राव ने ईशिता आयान दत्त को दिए साक्षात्कार में कहा कि तेजी के दौरान भारतीय स्टील की कीमतें अंतरराष्ट्रीय कीमतों के मुकाबले कम थी, ऐसे में इसमें वैश्विक बाजार की तरह गिरावट नहीं होगी। बातचीत के मुख्य अंश…
देसी बाजार में स्टील की कीमतें माह के शुरू में 2,000 रुपये प्रति टन से ज्यादा घटी और अंतरराष्ट्रीय कीमतें भी रिकॉर्ड स्तर से नीचे आई। क्या कीमतें सर्वोच्च स्तर पर पहुंच
गई थी?
कच्चे माल की कीमतों में नरमी से स्टील के दाम घट रहे हैं क्योंंकि लौह अयस्क 230 डॉलर प्रति टन से घटकर करीब 100 डॉलर पर आ गया है। चीन की तरफ से अमेरिका, कनाडा और मंगोलिया से आयातित कोकिंग कोल 600 डॉलर के आसपास पहुंच गया था लेकिन अब घटकर 400 डॉलर प्रति टन पर आ गया है। इन दोनों चीजों ने चीन में स्टील की कीमतों पर असर डाला है। चीन के प्रॉपर्टी मार्केट में नरमी ने भी वहां मांग पर भारी असर डाला है। इसके परिणामस्वरूप चीन में कीमतें घटकर 800 डॉलर प्रति टन रह गई है। इस लिहाज से एशियाई कीमतें भी घटी हैं, जो उसी दायरे में थीं। अमेरिका व यूरोप में भी कीमतें घटी हैं। लेकिन अमेरिका, यूरोप और चीन में निश्चित तौर पर अंतर है। इसका मतलब यह हुआ कि एशिया के मुकाबले यूरोपीय कीमतें उच्च स्तर पर है और इसी तरह अमेरिका की कीमतें यूरोप से ज्यादा है। लेकिन चीन के अलावा बाकी दुनिया में अंतर्निहित मांग ठीक है। भारत को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। जब चीन में कीमतें 1,100 डॉलर के आसपास थी तो भारतीय स्टील की कीमतें 850 डॉलर प्रति टन के दायरे में थी। यह हमेशा से ही 20 फीसदी छूट पर रहा है। ऐसे में जब वैश्विक कीमतें घटीं तो भारत में गिरावट आई, लेकिन उतनी नहीं जितनी विगत मेंं देखने को मिली थी।
क्या देश में मौजूदा कीमतें चीन से ज्यादा है?
भारत में 800-810 डॉलर प्रति टन का भाव है और चीन से आयातित माल की लागत 914 डॉलर प्रति टन बैठती है। ऐसे में भारतीय कीमतें अभी भी कम है। लेकिन चीन की देसी कीमतों के मुकाबले भारत की कीमतें ज्यादा हैं।
इस महीने लॉन्ग प्रॉडक्ट्स की कीमतें कितनी कम हुई हैं?
लॉन्ग प्रॉडक्ट्स की कीमतें भी 2,000-2,500 रुपये प्रति टन के दायरे में घटी हैं। फ्लैट व लॉन्ग प्रॉडक्ट्स की कीमतों में हमेशा ही अंतर रहा है और लॉन्ग प्रॉडक्ट्स के प्राथमिक व द्वितीयक उत्पादकों की कीमतों में भी विभेद है।
क्या देसी मांग अनुमान के मुताबिक नहीं बढ़ी?
अक्टूबर व नवंबर में हुई असमय बारिश और दिसंबर में देश के कुछ इलाकों में इसके जारी रहने से मांग पर असर पड़ा। अगस्त से भारत में मांग पिछले वर्षों के मुकाबले थोड़ी कम देखने को मिली है। अगस्त में 8.5 लाख का उपभोग हुआ, जो पिछले साल के मुकाबले 8 फीसदी कम है। लेकिन हमारा मानना है कि दिसंबर से थोड़ा सुधार होगा, जिसे सरकारी खर्च और खुदरा मांग में तेजी से सहारा मिलेगा। लोग उम्मीद कर रहे थे कि वैश्विक बाजार के मुकाबले देसी कीमतें घटेंगी। लेकिन जब वैश्विक कीमतें बढ़ीं तब देसी कीमतों में उस हद तक इजाफा नहीं हुआ। ऐसे में गिरावट भी वैश्विक बाजार की तरह नहीं होगी।
क्या लौह अयस्क व कोकिंग कोल में नरमी का असर मौजूदा तिमाही में प्रतिबिंबित होगा?
हमने हमेशा ही कोकिंग कोल की 45-60 दिन की इन्वेंट्री रखी है। ऐसे में कम लागत पर अभी हो रही खरीद का उपभोग फरवरी के दूसरे हिस्से में होगा। लौह अयस्क के लिए यह अंतराल कम है और सामान्य तौर पर यह प्रतिबिंबित होगा।
क्या आप नीलाचल इस्पात के लिए बोली लगा रहे हैं?
काफी काम हो चुका है। ऐसे में यह कभी भी बोली के लिए सामने आ सकता है। हम इसे परख रहे हैं और जल्द इस पर फैसला लेंगे।