भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा डिफरेंशियल वोटिंग राइट (डीवीआर) पर दिए गए ताजा फैसले से पूरे स्टार्टअप समुदाय में उत्साह पैदा हुआ है।
हालांकि कई स्टार्टअप को अपनी सूचीबद्घता योजनाओं पर आगे बढऩे से पहले अभी भी इंतजार करो और देखों की रणनीति अपनानी होगी।
सेबी ने कहा है कि प्रवर्तकों/संस्थापकों (जिनकी नेटवर्थ 1,000 करोड़ रुपये की हो) अब वोटिंग अधिकार पा सकते हैं। कई संस्थापकों और निवेशकों ने बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कहा कि इस निर्णय के साथ अब भारत खासकर अमेरिका जैसे अन्य कई वैश्विक बाजारों के समान आ गया है।
हालांकि स्टार्टअप तंत्र की कई कंपनियों का यह भी कहा है कि यह भारत में सूचीबद्घता चाहने वाले टेक स्टार्टअप के लिए बड़ी राहत है, लेकिन यह देखने की जरूरत होगी कि क्या इससे वैश्विक सूचीबद्घता को इच्छुक कंपनियों की संख्या में
कमी आएगी।
हाल में यूनिकॉर्न बनी एडटेक फर्म वेदांतु के मुख्य कार्याधिकारी एवं सह-संस्थापक वामसी कृष्णा ने कहा, ‘भारतीय स्टार्टअप के लिए यह बेहद दिलचस्प समय है। मैं यह देखकर बेहद उत्साहित हूं कि जोमैटो, फ्रेशवक्र्स और कई अन्य कंपनियां सूचीबद्घता को लेकर उत्साहित हैं। खासकर भारत में इन आईपीओ की सफलता देखना बेहद उत्साहजनक है।’
वेदांतु वर्ष 2024 तक आईपीओ लाने की योजना बना रही है। लेकिन कृष्णा का कहना है कि कंपनी के लिए यह समझने के लिए पर्याप्त समय है कि ये कंपनियां कैसा प्रदर्शन कर रही हैं और इन नियमों की दिशा में क्या बदलाव हो रहे हैं।
कृष्णा ने कहा, ‘चूंकि वेदांतु एक भारतीय ब्रांड है और हम मुख्य तौर पर यहां परिचालन करते हैं, इसलिए यदि सब कुछ लगातार ठीक-ठाक रहा तो मेरी प्राथमिकता भारत में सूचीबद्घता होगी।’
