देश के 22 से 24 अरब डॉलर के देसी दवा बाजार में अभी तक ज्यादातर दवाएं ऑफलाइन यानी बाजार में खुले मेडिकल स्टोर्स के जरिये होती है। मगर ऑनलाइन फार्मेसी के उतरने से इस क्षेत्र में बड़ा बदलाव शुरू हो गया है।
खुद ही देख लीजिए। राजस्थान की एक डिजिटल स्वास्थ्य स्टार्टअप- दवा दोस्त किराना दुकानों और गांवों के स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) के जरिये ऑर्डर लेती है और अपने नेटवर्क से जुड़ी दवा की दुकानों के जरिये दवाएं पहुंचवा देती है।
इसी तरह की हेल्थ-टेक स्टार्टअप बिडानो का प्लेटफॉर्म है, जो सामान्य मेडिकल स्टोर्स के एग्रीगेटर का काम करता है। बिडानो रिटेल फार्मेसी के लिए आपूर्त श्रृंखला भी संभालती है, जो स्टॉकिस्ट से लेकर केमिस्ट तक जाती है। हैदराबाद की स्टार्टअप मेडलीमेड दवा की दुकानों का डिजिटलीकरण कर रही है और उन्हें टेलीमेडिसिन कियॉस्क भी मुहैया करा रही है। ऑनलाइन और ऑफलाइन फार्मेसी प्लेटफॉर्म दवा दोस्त के सीईओ अमित चौधरी ने कहा, ‘यह बाजार तेजी से बदल रहा है क्योंकि ऑफलाइन दवा विक्रेता यानी मेडिकल स्टोर खुद को आधुनिक बना रहे हैं, मूल्य वर्द्धित सेवाएं दे रहे हैं और ऑर्डर आने के बाद कम से कम समय में दवाएं पहुंचवा रहे हैं।’
सिंगापुर ऐंजल नेटवर्क के निवेश वाली दवा दोस्त अपना किराना नेवटर्क बढ़ा रही है। पिछले साल इसके नेटवर्क में 500 किराना स्टोर थे, जो दवाओं के ऑर्डर ले रहे थे। अब उनकी संख्या बढ़कर 2,500 के पार पहुंच गई है। चौधरी बताते हैं, ‘हम अपने तकनीकी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर किराना स्टोरों से ऑर्डर लेते हैं, जिसके बाद हमारे मेडिकल स्टोर ऑर्डर के मुताबिक दवा पहुंचा देते हैं।’ चौधरी के मुताबिक वे अपने ग्राहकों के बिल्कुल पास पहुंचना चाहते थे।
चौधरी ने अब राजस्थान में स्वयं-सहायता समूहों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया है और इसके लिए राजस्थान सरकार से भी बात कर रहे हैं। स्वयं-सहायता समूहों की ग्रामीण इलाकों में व्यापक पहुंच है। इस तरह उन इलाकों में भी दवाएं आसानी से भेजी जा सकती हैं, जहां मेडिकल स्टोर कम हैं। दवा दोस्त हर महीने तीन करोड़ लोगों तक पहुंचती है, जिसे वह वर्ष 2022 के आखिर तक हर महीने 10 करोड़ पर पहुंचाना चाहती है।
पुणे की बिडानो अब तक 50 लाख डॉलर जुटा चुकी है। यह रकम सिलिकन वैली के ऐंजल निवेशकों आदि के अलावा फर्स्ट चेक, विंडरोज कैपिटल जैस सूक्ष्म वीसी फंडों से जुटाई गई है। बिडानो ने नवंबर 2016 में स्थानीय मेडिकल स्टोर्स के लिए बिज़नेस टू कंज्यूमर (बी2सी) फार्मेसी एग्रीगेटर के रूप में शुरुआत की थी। जल्द ही उसे महसूस हुआ कि ऑर्डर मिलने के दिन ही दवा पहुंचाने के लिए उसे आपूर्ति श्रृंखला पर काम करना पड़ेगा। बिडानो के सह-संस्थापक और सीईओ तल्हा शेख ने बताया कहा कि उन्होंने 2018 में बी2सी उद्यम रोक दिया और दवा आपूर्ति श्रृंखला में मौजूद कमियां दूर करने लगे। शेख ने कहा, ‘आम तौर पर स्टॉकिस्ट को थोक विक्रेता या वितरक तक दवाएं पहुंचाने में 24 घंटे का समय लगता है। इसके बाद वितरक को खुदरा विक्रेता के पास दवा भेजने में 6 से 12 घंटे लग जाते हैं। छोटे शहरों में कभी-कभी खुदरा विक्रेता को ऑर्डर देने के बाद दो से तीन दिन में दवा की डिलिवरी मिल पाती है।’
हैदराबाद की मेडलीमेड भी केमिस्टों के साथ काम कर रही है और उनके उत्पादों का डिजिटलीकरण कर रही है। एथेना ग्लोबल टेक्नोलॉजीज और मेडलीमेड के प्रबंध निदेशक एम सतीश ने कहा, ‘हम रिटेल फार्मेसी को उचित कीमत पर दवाएं खरीदने में मदद दे रहे हैं और अपने प्लेटफॉर्म के जरिये ई-फार्मेसी का विकल्प भी दे रहे हैं।’
