खनन कंपनियों और चीनी स्टील मिलों के बीच चालू सत्र के लिए लौह अयस्क की बेंचमार्क कीमतों को लेकर बातचीत चल रही है। नया सत्र इसी माह से शुरू होने वाला है।
हालांकि इस बीच कुछ और बदलाव भी देखने को मिल रहा है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में खनिज पदार्थों का कारोबार हाजिर बाजार कीमतों और स्वैप कॉन्ट्रैक्ट के मिला-जुले रुख पर निर्भर करेगा, यानी बेंचमार्क कीमतों का इस पर खास असर नहीं पड़ेगा।
गौरतलब है कि वर्ष 2000 तक लौह-अयस्क का समुद्री कारोबार में हाजिर बाजार कीमतों की हिस्सेदारी मुश्किल से 15 फीसदी रही है। हालांकि पिछले साल इसमें तेजी देखी गई और दुनियाभर में लौह-अयस्क का 40 फीसदी कारोबार हाजिर बाजार कीमतों पर किया गया।
खास बात यह कि स्टील निर्माताओं पर मंदी का भी असर पड़ा, क्योंकि इससे मांग काफी घट गई। खासकर, वाहन उद्योग और विनिर्माण क्षेत्रों में स्टील के सभी उत्पादों की मांग में गिरावट देखी गई। इसके चलते स्टील निर्माताओं को अगस्त में स्टील के लॉन्ग और फ्लैट, दोनों उत्पादों की कीमतों में कटौती भी करनी पड़ी।
स्टील की कीमतें किस कदर कम हुई इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जुलाई के उच्च स्तर से स्टील की कीमतें गिरकर लगभग आधी रह गई है। दूसरी ओर, दुनियाभर में कुछ स्टील उत्पादकों ने हाजिर बाजार कीमतों पर भारी पैमाने पर लौह-अयस्क की खरीदारी करने में जुट गए।
दरअसल, उनका मानना है कि हाजिर बाजार मूल्य में स्टील की वास्तविक बाजार मूल्य का पता चलता है। यानी इसमें मांग और आपूर्ति को देखते हुए कीमतों में उतार-चढ़ाव आता रहता है। इसमें कोई शक नहीं कि इस साल भी हाजिर बाजार कीमतों पर ही ज्यादातर लौह-अयस्क की खरीदारी होगी।
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि तमाम खनन कंपनियों के पास लौह-अयस्क का पर्याप्त भंडार है और साल के अंत तक इस स्थिति में खास सुधार होता नजर नहीं आ रहा है। चीन के स्टील उत्पादक भी दिसंबर तक तय बेंचमार्क कीमतों पर लौह-अयस्क की खरीदारी में रुचि नहीं ले सकते हैं, क्योंकि यूरोप और अन्य देशों में इसकी मांग घटने के आसार हैं।
ऐसे में खनन मालिकों के पास हालात से समझौता करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। यह कोई छिपी हुई बात भी नहीं है कि प्रमुख खनन कंपनी बीएचपी बिल्टन भी लौह-अयस्क की बिक्री हाजिर बाजार कीमतों पर कर रही है, जो 2008-09 के लिए तय बेंचमार्क कीमतों से करीब 35 फीसदी कम है।
चीन के स्टील उत्पादकों का कुछ समूह इस बात पर विचार कर रहा है कि हाजिर बाजार कीमतों पर लौह-अयस्क की खरीदारी से उसे फायदा हो सकता है, क्योंकि इसकी कीमतों में आने वाले समय में कुछ कमी आ सकती है।
उल्लेखनीय है कि चीन ने इस साल पहली तिमाही में 1.3 करोड़ टन लौह अयस्क का आयात किया, जबकि वित्त वर्ष 2008 की पहली तिमाही में 44 करोड़ टन लौह-अयस्क का आयात किया गया था। लौह-अयस्क की हाजिर बाजार कीमतों में आ रही गिरावट और चीन की सरकार की ओर से नवंबर में करीब 58.6 करोड़ डॉलर के राहत पैकेज देने की अफवाह से भी लौह-अयस्क के बड़े आयातकों को बल मिला है।
चीन ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि लौह-अयस्क के आयात बढ़ने से एक अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ है, क्योंकि लौह-अयस्क की हाजिर बाजार कीमतें फरवरी में 60 डॉलर प्रतिटन से घटकर 20 डॉलर प्रतिटन पर पहुंच गई है। चिंता का एक कारण यह भी है कि बंदरगाहों पर लौह-अयस्क का स्टॉक बढ़कर 7 करोड़ टन तक पहुंच गया है।
दूसरी ओर, ब्राजील के सीवीआरडी ने बेंचमार्क कीमतों से खुद को अलग रखते हुए न केवल हाजिर कीमतों पर लौह-अयस्क की बिक्री कर रही है, बलिक बेंचमार्क दर तय होने तक पिछले साल की कीमतों के मुकाबले 20 फीसदी कम दर पर लौह-अयस्क उपलब्ध करा रही है।
बहुत से लोगों का मानना है कि आने वाले समय में दुनिया के प्रमुख लौह-अयस्क उत्पादक भी इस बात से सहमत होंगे कि हाजिर बाजार मूल्य और स्वैप कॉन्ट्रैक्ट कीमत उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
एक साल पहले यूरोप के दो प्रमुख बैंकों ने लौह-अयस्क स्वैप कारोबार के लिए ऑफ एक्सचेंज मार्केट प्लेटफॉर्म मुहैया कराया था। यह प्लेटफॉर्म धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है। यही वजह है कि हाल ही में सिंगापुर स्टॉक एक्सचेंज ने भी ओवर-द-कांउटर स्वैप कॉन्ट्रैक्ट शुरू किया है।
कुल मिलाकार कहा जाए, तो लौह-अयस्क बेंचमार्क दर अपने सुनहरे दिन देख चुका है। कुछ साल पहले जब खान मालिक और चीनी स्टील उत्पादक बेंचमार्क कीमत तय करने के लिए मिले थे, तो जापानियों को इससे बाहर तक कर दिया गया था। अब खान मालिकों को दर तय करने के लिए स्टील उत्पादकों की मान-मनौव्वल करनी पड़ रही है।
