पिछले दो महीने सात अप्रिय घटनाओं के आलोक में स्पाइसजेट लिमिटेड की उड़ानें रद्द करने की मांग वाली जनहित याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी। अदालत ने पाया कि विमानन अधिनियम अपने आप में ही इस मसले की जांच करने के लिए पर्याप्त है।
न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति एस प्रसाद के पीठ ने कहा, इस मसले के समाधान के लिए विमानन अधिनियम में मजबूत व्यवस्था है। विमानन कंपनी को इस जनहित याचिका के आधार पर परिचालन रोकने के लिए नहीं कहा जा सकता।
यह याचिका वकील राहुल भारद्वाज ने दाखिल की थी। उन्होंने स्पाइसजेट की उड़ानें रोकने के लिए विमानन मंत्रालय, डीजीसीए व अन्य को फास्ट ट्रैक बॉडी के गठन का निर्देश देने की मांग की थी, जो तब तक उड़ानों पर रोक लगाए रखता जब तक कि सभी सुरक्षा मानकों का अनुपालन नहीं होता।
मई में तीन, जून में दो और जुलाई में दो घटनाओं का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया कि विमानन कंपनी के कमजोर प्रबंधन के कारण लोगों की जान खतरे में थी। याचिका में वेतन का भुगतान न किए जाने के मसले को भी रेखांकित किया है।
इन विंदुओं को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा, विमानन अधिनियम में सुरक्षा, उड़ान, पंजीकरण आदि पर नियम हैं और ऐसे मसलों पर ध्यान देने के लिए डीजीसीए सक्षम है। अदालत ने कहा, डीजीसीए कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है। वास्तव में यह निकाय कार्रवाई के मामले में तत्पर रहा है। कुछ उड़ानों को लेकर कारण बताओ नोटिस पहले की जारी किए गए हैं। पिछले साल डीजीसीए के ऑडिट में खुलासा हुआ था कि विमानन कंपनी नकदी संकट से जूझ रही है और इस वजह से उसके रखरखाव की प्रक्रिया पर चिंता जताई गई थी।
19 जून के बाद से उड़ानों में तकनीकी दिक्कत की आठ घटनाओं के बाद इस साल 6 जुलाई को स्पाइसजेट को कारण बताओ नोटिस डीजीसीए ने जारी किया था। विमानन नियामक ने कहा, बजट एयरलाइंस सुरक्षा व भरोसेमंद विमानन सेवा स्थापित करने में नाकाम रही है।
