बीएस बातचीत
नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के आवंटन के लिए 2011 में शुरू सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) को अपने आगामी वर्ष व्यस्तता भरे रहने के आसार नजर आ रहे हैं। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के तहत आने वाली इस सरकारी एजेंसी ने सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं की निविदा जारी करना शुरू किया था मगर अब यह अपना दायरा हाइब्रिड, राउंड दी क्लॉक, बैटरी भंडारण, हाइड्रोजन और फीडर सोलराइजेशन तक बढ़ा रही है। एसईसीआई के चेयरमैन जतींद्र नाथ स्वेन ने श्रेया जय के साथ भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में वृद्धि की संभावनाओं, चुनौतियों और योजनाओं के बारे में बातचीत की। बातचीत के संपादित अंश:
भारत वर्ष 2030 तक 450 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य बना रहा है। क्या आप यह बता सकते हैं कि अभी तक कितना लक्ष्य पूरा हुआ है?
हम यह लक्ष्य हासिल करने के लिए सही रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। कोविड-19 और उसके बाद पैदा अड़चनों से निविदाओं में सुस्ती नहीं आई, लेकिन बिजली खरीद समझौते (पीपीए) होने कम हो गए। लेकिन अब उनमें फिर से बढ़ोतरी हो रही है। हमने जो पवन और हाइब्रिड बिजली परियोजनाएं मुहैया कराई हैं, उनके कमोबेश करार हैं। 0.4 गीगावॉट की आरटीसी (चौबीस घंटे बिजली) निविदा के लिए 75 फीसदी करार हैं और 1.2 गीगावॉट की पीक बिजली निविदा के लिए 50 फीसदी करार हैं। सौर में 6.2 गीगावॉट आवंटित की गई हैं, जिनमें से 3 गीगावॉट विनिर्माण संबद्ध है। हम पूरी आवंटित क्षमता के लिए खरीदारों के साथ करार और बिजली खरीद समझौते (पीएसए) करने में सक्षम होंगे। हमने चालू वित्त वर्ष में 15 गीगावॉट की पवन, सौर और हाइब्रिड परियोजनाएं आवंटित करने की योजना बनाई है।
450 गीगावॉट के लिए स्रोत के अनुसार क्या योजना है और क्या इसके लिए पर्याप्त मांग है?
450 गीगावॉट में 280-300 सौर और 140-150 गीगावॉट पवन ऊर्जा है। पंप जल विद्युत इसका हिस्सा है, लेकिन बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं नहीं। बिजली मंत्रालय ने डिस्कॉम को 25 साल से ज्यादा पुराने ताप विद्युत पीपीए से बाहर निकलने की मंजूरी दी है। इससे नवीकरणीय ऊर्जा की खरीद बढ़ेगी। ऊर्जा भंडारण के साथ नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में नई क्षमता बढ़ोतरी ताप विद्युत पीपीए की जगह ले पाएगी। मांग भी बढ़ रही है। अगर हम मांग में कम से कम 4 फीसदी वृद्धि भी मानकर चलते हैं तो हर साल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में 25 गीगावॉट का इजाफा होगा।
राज्यों के पीपीए और पीएसए की संख्या में गिरावट आ रही है। अब क्या स्थिति है?
कोविड के दौरान बिजली की मांग घट गई थी। इससे राज्य प्रभावित हुए थे, इसलिए हमने पीपीए करने पर बहुत ज्यादा जोर नहीं दिया। यह राज्यों के स्तर पर अनिच्छुकता नहीं है। अब पीएसए किए जा रहे हैं। हम आगामी कुछ सप्ताह में 1 गीगावॉट सौर के लिए पीएसए करेंगे। इसमें हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य रुचि दिखा रहे हैं।
बहुत सी परियोजनाओं को पारेषण संपर्क हासिल करने, भूमि अधिग्रहण में देरी और अब पारिस्थितिकी चिंताओं का सामना करना पड़ रहा है।
66.5 गीगावॉट पारेषण संपर्क के लिए योजना तैयार है। जब लंबी अवधि की मांग (एलटीए) के लिए आवेदन किया जाएगा, तब पारेषण बुनियादी ढांचा तैयार होगा। इसलिए नवीकरणीय ऊर्जा की वृद्धि में पारेषण कोई बाधा नहीं नहीं होगी। शायद ही ऐसे कोई मामले हों, जिनमें डेवलपर पारेषण को लेकर स्थितियां साफ नहीं होने की वजह से बाहर निकलना चाहते हों। इस समय हमारी निविदाओं में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पर्यावरण असर आकलन करने की कोई बाध्यता नहीं है क्योंकि इन्हें हरित परियोजनाओं के समान माना जा रहा है। ज्यादातर परियोजनाएं लीज भूमि पर बन रही हैं और भूस्वामियों को इन लीज से कृषि, विशेष रूप से एक फसल देने वाली भूमि की तुलना मेंं ज्यादा आमदनी मिल रही है।
नए हरित क्षेत्रों को लेकर आपकी क्या योजनाएं हैं?
हरित हाइड्रोजन में हम योजनाओं को अंतिम रूप दिए जाने के लिए इंतजार कर रहे हैं। तमिलनाडु और कुछ हद तक गुजरात में अपतट पवन में अच्छी संभावनाएं हैं, लेकिन इनकी लागत स्थलीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं से दोगुनी है। हमें मछुआरों और अन्य भागीदारों को भी भरोसे में लेने की जरूरत होती है। कुसुम में हम कृषि फीडरों के सोलराइजेशन की परियोजनाओं को क्रियान्वित करेंगे। सौर विनिर्माण में पीएलआई योजना आई है, इसलिए शायद हम फिलहाल कोई निविदा जारी नहीं करें। पम्पड हाइड्रो परियोजनाओं में हम कुल मांग आधारित निविदाएं जारी कर सकते हैं।
आपके अनुमान से सौर और पवन में कीमतों में हलचल कैसी रहेगी?
पवन ऊर्जा को लेकर हमारा अनुमान है कि अगर कोई नवोन्मेषी तकनीक नहीं उभरी तो दरें इसी स्तर पर बनी रहेंगी। हालांकि सौर ऊर्जा में हम धीरे-धीरे कमी की उम्मीद कर सकते हैं। हम आगामी वर्षों के दौरान सौर दरों के उचित और लागत प्रतिस्पर्धी होने की उम्मीद कर सकते है और यह ऊर्जा क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन घटाने की अगुआई करेगा।