सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज के अधिग्रहण की दौड़ से आईबीएम के हटने के संकेत मिलते ही मामले की वजह को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया है।
इसके लिए कई चीजों को जिम्मेदार बताया जा रहा है, लेकिन सबसे मजबूत वजह अमेरिका में सत्यम पर दर्ज मुकदमों को बताया जा रहा है। विश्लेषकों के मुताबिक, सत्यम जैसे ही आईबीएम की झोली में जाती वैसे ही अमेरिका में सत्यम पर दर्ज सारे मामले इस कंपनी की झोली में उपहारस्वरूप आ जाते।
समझा जा रहा है कि कानूनी पचड़े से बचने के लिए ही आईबीएम ने सौदे से अपने हाथ वापस खींच लिए। गौरतलब है कि आईबीएम ने कभी भी सत्यम को खरीदने की दौड़ में शामिल होने की न तो कभी पुष्टि की, न ही कभी खारिज किया।
हालांकि जानकारों की नजर में यह सौदा यदि आईबीएम के पास जाता तो न केवल सत्यम के कर्मचारियों को बल्कि आईबीएम को भी खूब फायदा मिलता। दरअसल सत्यम की उत्पादन लागत काफी कम है। इस सौदे के बाद सत्यम और आईबीएम की सेवाओं का शतप्रतिशत एकीकरण हो जाता।
न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में इसी फरवरी में जमा अपनी वार्षिक रपट में इसने सत्यम, विप्रो और इन्फोसिस को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी बताया था। राजू ने भी कहा था कि आईबीएम जैसी कंपनी से उसे जबरन अधिग्रहण का भय है। बता दें कि घोटाले के उजागर होने के बाद सत्यम को बचाए जाने की पुरजोर कवायद चल रही है। इसी के तहत कंपनी के नए मालिकान की तलाश हो रही है।
