हालांकि प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री यह दावा कर रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक आर्थिक मंदी का मुकाबला करने में पूरी तरह सक्षम है,
लेकिन लघु एवं मझोले उद्योगों (एसएमई), खासकर हैंड टूल और खेल उपकरण निर्यातकों ने आर्थिक मंदी की तपिश झेलनी शुरू कर दी है। इन निर्यातकों को अपने उत्पादों के लिए बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय खरीदार तलाशने में मुश्किल आ रही है।
इन निर्यातकों को सिर्फ नए ऑर्डर हासिल करने में ही दिक्कत नहीं हो रही है बल्कि रुपये की कीमत में गिरावट की वजह से पुराने ऑर्डरों को भी पूरा करने के लिए वित्तीय अवरोधों का सामना करना पड़ रहा है।
इस उद्योग से जुड़े जानकारों का कहना है कि वैश्विक मंदी की वजह से मौजूदा वर्ष में छोटे उद्योगों के निर्यात में 20 से 30 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है।
हैंड-टूल निर्यात 2005-06 में 909.31 करोड़ रुपये था जो वर्ष 2006-07 में घट कर 828.44 करोड़ रुपये रह गया था और फरवरी 2008 में यह और घट कर 692.13 करोड़ रुपये रह गया।
अधिकारियों ने दावा किया है कि वैश्विक मंदी ने देश में एसएमई क्षेत्र पर अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है और यह क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। जहां बडे उद्योग घराने उत्पादन में कटौती पहले ही कर चुके हैं वहीं इस क्षेत्र की संबद्ध सहायक इकाइयां भी मंदी का असर महसूस कर रही हैं।
हैंड टूल्स की प्रमुख निर्यातक ओमसंस इंटरनेशनल के मुख्य कार्याधिकारी विपन महाजन कहते हैं, ‘पर्याप्त बैकअप रखने वाली बड़ी कंपनियां इस मंदी से बचने में सफल रह सकती हैं, लेकिन हमारे जैसे छोटे उद्यमियों को कारोबार में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है।’
महाजन ने कहा कि वाहन उद्योग में मंदी ने फॉर्जिंग जैसे सहायक उद्योगों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। महाजन इंजीनियरिंग एक्सपोट्र्स प्रोमोशन काउंसिल (ईईपीसी) के सदस्य भी हैं और वे फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोट्र्स ऑर्गनाइजेशंस से भी जुड़े हुए हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसा अन्य उदाहरण साइकिल उद्योग का है। रिपोर्टों के अनुसार अक्टूबर में साइकिल उद्योग को 175 करोड़ रुपये की चपत लगी है।
ईईपीसी के मुताबिक इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्यात में इस साल लगभग 30 फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। महाजन ने कहा, ‘जालंधर में खेल उद्योग अपने उत्पादन में पहले ही 50 फीसदी की कटौती कर चुका है।’ इस मामले में बीमा क्षेत्र की स्थिति और बदतर है।
बीमा क्षेत्र ने निर्यात ऋण बीमा के प्रीमियम में 25 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी करने की घोषणा की है। बीमा कंपनियों ने नुकसान से बचने के लिए प्री-शिपमेंट स्कीमों को सीमित कर दिया है, क्योंकि मौजूदा आर्थिक संकट की वजह से अमेरिका और यूरोप के लिए ऑर्डर रद्द किए जा रहे हैं।
शहर के एक और निर्यातक अनिल चङ्ढा कहते हैं कि पिछले दो महीनों में कारोबार में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है। उन्होंने कहा, ‘स्थिति बेहद दयनीय है। यदि कुछ ठोस उपायों पर अमल नहीं किया जाता है तो छोटे उद्यमी उस खतरनाक रास्ते पर चलने के लिए बाध्य हो सकते हैं जो रास्ता पहले निराश किसानों ने अख्तियार किया था।’
विक्टर टूल्स के प्रबंध भागीदार सुखदेव राज ने कहा, ‘लगभग सभी निर्यातकों ने भविष्य में बढ़ोत्तरी की उम्मीद से ऊंची कीमतों पर कच्चे माल का भंडार कर रखा है, लेकिन अब वे एक बड़ी गिरावट के गवाह बन गए हैं। क्रॉटन स्टील की कीमतों में गिरावट आई है।
हमने एक महीने पहले इसे 50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खरीदा था जो अब घट कर 40 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई है। कीमतों में वैश्विक मंदी के कारण खरीदार पिछली तिथियों में दिए गए ऑर्डरों में भी डिस्काउंट की मांग कर रहे हैं।’
अमेरिकी डॉलर की कीमत में आई तेजी ने भी निर्यातकों का दुख बढ़ा दिया है। सुखदेव राज ने कहा, ‘खरीदार मौजूदा डॉलर दरों के तहत नई दरों की मांग कर रहे हैं जिससे कारण वैश्विक स्तर पर खरीदार का अभाव पैदा हो गया है।’
विनिमय दर में अस्थिरता के कारण भी खेल निर्यात को लेकर निराशा पैदा हो गई है जो इनके नुकसान का प्रमुख कारण है। एक निर्यातक रघुनाथ राणा ने कहा, ‘हमारा कारोबार अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मंदी से काफी हद तक प्रभावित हुआ है। आस्ट्रेलियाई डॉलर में जहां 20 फीसदी की गिरावट आई है वहीं पौंड में 15 फीसदी और यूरो की कीमत में 10 फीसदी की गिरावट आई है।
इन सभी कारकों ने खेल उद्योग को काफी हद तक प्रभावित किया है। लोग हाथ में आए ऑर्डरों को भी पूरा करने में दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।’