छोटे और मझोले आकार की इकाइयों (एसएमई) के लिए स्टॉक एक्सचेंज बनाने की बात वक्त-वक्त पर उठती रही है लेकिन इस बाबत अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है।
शेयर बाजार की नियामक संस्था भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने इस मामले में एक सुझाव पत्र जारी किया और इस विषय पर जितने भी सुझाव आए उनको अंतिम रूप दिया जा रहा है। हालांकि, अभी इस पूरी प्रक्रिया में कुछ वक्त लग सकता है। और जब यह प्लेटफॉर्म अस्तित्व में आएगा तभी कंपनियां इसके जरिये पैसा उगाह सकती हैं।
इस मामले में सबसे बड़ा मुद्दा निवेशकों का ऐसी कंपनियों को लेकर हिचकिचाहट को बताया जा रहा है।देश के सकल घरेलू उत्पाद में छोटी और मझोली इकाइयों का 20 फीसदी योगदान है। और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में इन इकाइयों की पूंजी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।
जो लोग कर्ज नहीं लेना चाहते और उनको उद्यम पूंजी भी नहीं मिल पाती, उनके लिए स्टॉक एक्सचेंज की जरूरत समझी जा रही है जहां से वे पूंजी जुटा सकें। दिल्ली और अहमदाबाद जैसे देश के कुछ स्टॉक एक्सचेंजों ने एसएमई के लिए एक स्टॉक एक्सचेंज स्थापित करने में रुचि दिखाई है।
इसके अलावा नैशनल स्टॉक एक्सचेंज और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के साथ-साथ फाइनैंशियल टेक्नोलॉजीज (मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज की प्रवर्तक) ने भी सेबी के समक्ष एसएमई के लिए एक विशेष एक्सचेंज बनाने की इच्छा जता चुकी है।पिछले साल सेबी ने निश्चय किया था कि एसएमई के लिए केवल एक विशेष एक्सचेंज होना चाहिए।
इस नियामक संस्था ने मई में एक सुझाव पत्र जारी किया था जिसमें इसने एसएमई एक्सचेंज को लेकर अपना प्रस्तावित मॉडल भी पेश किया था। पेपर में कहा गया था कि आईपीओ के वक्त कम से कम निवेश की सीमा 5 लाख रुपये होनी चाहिए जिससे केवल मजबूत और अच्छी जानकारी रखने वाले निवेशक ही निवेश कर सकें।
साथ ही इसका प्रस्ताव भी किया गया था कि एसएमई एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने के लिए कंपनी की हैसियत 25 करोड़ रुपये की तो होनी ही चाहिए।सेबी ने कहा कि केवल विशेषज्ञ मचर्ेंट बैंकरों को ही इसके लिए लाइसेंस दिया जाना चाहिए। और लिस्टिंग के बाद उन्हें ही मार्केट मेकिंग का काम भी करना चाहिए।
सेबी के अनुसार इस तरह के इश्यू के लिए अंडरराइटिंग को अनिवार्य कर देना चाहिए। इश्यू केवल इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के जरिये आना चाहिए। इससे कागज, मुद्रण और प्रोसेसिंग का खर्च भी कम होगा।
इसके अलावा सेबी ने जारीकर्ता की बचत को ध्यान में रखते हुए इन कंपनियों को परिणामों की घोषणा, वार्षिक रिपोर्ट भेजने के मामले में कुछ छूट देने का भी सुझाव दिया है। केपीएमजी में पेशेवर सेवाओं के कार्यकारी निदेशक संजय अग्रवाल कहते हैं, ‘नियंत्रण मुख्य मुद्दा नहीं है,असल मुद्दा निवेशक हैं। कुछ स्टॉक्स में हमेशा जोखिम बना रहेगा और यही असल समस्या की वजह है। इसके अलावा संबंधित स्टॉक एक्सचेंज में सही विपणन भी खास मुद्दा है।’
वैसे सेबी ने एक्सचेंज के लिए फ्रेमवर्क और उसको चलाने का खाका तो खींच लिया लेकिन इस तरह के प्रस्तावित एक्सचेंज में क्रियान्वयन की समस्या आ सकती है। केवल नियंत्रक के दबाव के भरोसे ही यह कारगर नहीं साबित हो सकता। इस एक्सचेंज में पारदर्शिता सुनिश्चित होनी चाहिए, सही विपणन होना चाहिए और प्रवर्तकों के बारे में विस्तृत जानकारी होनी चाहिए। अगर विपणन की बात करें तो लंदन का एआईएम इसका सबसे बढ़िया नमूना है।
यह एक्सचेंज दुनिया भर में छोटी कंपनियों का प्रिय बन गया है। देश के कुछ क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंज (जिनमें कोई खास कारोबार नहीं होता) कह रहे हैं कि अब वे एसएमई एक्सचेंज शुरू करने की सोच रहे हैं। कुछ वक्त पहले क्षेत्रीय एक्सचेंजों का प्रवर्तकों ने दुरुपयोग किया था और ये प्रवर्तक पैसा उगाह कर वहां से निकल लिए। इसका परिणाम यही हुआ कि निवेशकों को नुकसान हुआ।