कच्चे माल की कीमतों में हुई अप्रत्याशित बढ़ोतरी, वेतनों में वृध्दि, महंगाई के दहाई में आने और ब्याज दरों में हुई बढ़ोतरी से कर्नाटक के छोटे एवं मझोले उद्योगों (एसएमई) पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।
इसके अतिरिक्त, चीन से आने वाले सस्ते सामान और एसएमई के लिए सुरक्षित उत्पादों की सूची में से कुछेक को हटा दिए जाने के कारण संकट और बढ़ा है। एसएमई कर्नाटक में कृषि क्षेत्र के बाद लोगों को सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध कराता है।
पिछले छह महीने में कच्चे माल जैसे माइल्ड स्टील, कागज, इंक, तांबा, एल्युमिनियम और सीसे की कीमतों में वृध्दि हुई है। न्यूनतम लाभ सुनिश्चित करने के लिए छोटे एवं मझोले उद्योगों को अपने सामानों की सूची को कम करना पड़ रहा है साथ ही उत्पादन में कटौती और कम बजट का सहारा भी लेना पड़ रहा है।
उदाहरण के लिए, तांबा की कीमत 51 प्रतिशत बढ़ कर 425 रुपये प्रति किलो हो गया है, एल्युमिनियम की कीमतों में 85 प्रतिशत का इजाफा हुआ है और सीसे के मूल्य में तीन गुनी बढ़ोतरी हुई है। छोटे एवं मझोले उद्योगों के उत्पादन लागत में कच्चे माल की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत होती है और 30 फीसदी हिस्सेदारी वेतन, प्रभारों एवं करों की होती है। इससे मार्जिन (लाभ) काफी कम हो जाता है।
वर्तमान में मार्जिन घट कर लगभग शून्य हो गया है। छह महीने पहले मार्जिन लगभग 10 प्रतिशत का था। अगर, इस प्रकार का संकट बना रहता है तो एसएमई इकाईयां को घाटा उठाना पड़ेगा। कर्नाटक स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (कासिया) के प्रेसिडेंट अरविंद एन बुर्जि ने कहा, ‘अगर केंद्र सरकार कच्चे मालों जैसे स्टील और एल्युमिनियम की बढ़ती कीमतों का नियंत्रित नहीं कर पाती है और स्टील उत्पादक संघ पर लगाम नहीं लगाती है तो ऐसे कठिन परिस्थिति में छोटे एवं मझोले उद्योगों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।’
उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘वे दिन लद चुके हैं जब कोई इकाई बीमार होते हुए भी कुछ वर्षों तक अस्तित्व में रहा करती थी। आज, बैंक हमें गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में रखेंगे और तीन महीने में कर्ज वसूली के उपाय करेंगे।’ कासिया ने आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु के संबंधित एसोसिएशन से इस मुद्दे पर विचार करने के लिए संपर्क साधा है।
बुर्जि ने कहा, ‘संबंधित एसोसिएशन की हाल ही में बैठक हुई है और इस मुद्दे पर बातचीत की गई है। हमलोगों ने प्रधान मंत्री, वाणिज्य मंत्री और इस समस्या से संबध्द मंत्रालयों को लिखा है और उनसे इस मामले में तत्काल दखल देने की गुजारिश की है।’
कासिया के महासचिव प्रकाश एन रायकर ने कहा, ‘हमलोगों को करार के शर्तों और डिलीवरी की समय सीमा को पूरा करना है वह भी वित्त वर्ष के आरंभ में तय हुई कीमतों पर। उत्पादन लागतों में हो रही बढ़ोतरी से विवश होकर हमें उसी अनुपात में शुल्कों में वृध्दि करनी पड़ रही है। हमारे ग्राहक इस मामले पर बातचीत नहीं करना चाहते हैं क्योंकि उनके पास कम लागत पर चीन से आयातित सामान मंगवाने का विकल्प है।’
यद्यपि, भारतीय छोटे एवं मझोले उद्योगों के उत्पादों की विश्व भर में सराहना की जाती है लेकिन कर्नाटक की इकाईयां निर्यात में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने में सक्षम नहीं रहे हैं। अधिकांश इकाईयां, खास तौर विद्युतीय उत्पाद जैसे केबल संयोजक, स्विच गीयर और बस बार आदि बनाने वाली, बंद होने के कगार पर हैं।