कोविड महामारी और लॉकडाउन की वजह से 2020-21 में देश की नॉमिनल अर्थव्यवस्था में 3 फीसदी की कमी आई है, जिससे सरकार का कर संग्रह भी प्रभावित हुआ। व्यक्तिगत आयकर राजस्व में 2 फीसदी की कमी आई मगर निगमित कर राजस्व 18 फीसदी से भी ज्यादा लुढ़क गया।
इस आंकड़े से तो यही लगता है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, बजाज फाइनैंस और एचडीएफसी बैंक जैसी ज्यादा निगमित कर अदा करने वाली बड़ी कंपनियों पर नरमी का असर पड़ा होगा और उन्होंने पिछले वित्त वर्ष में कम कर चुकाया होगा। लेकिन हकीकत कुछ और है। आंकड़े बताते हैं कि सूचीबद्घ कंपनियों की तुलना में प्राइवेट लिमिटेड और छोटी गैर-कॉरपोरेट फर्मों (जो कंपनी मामलों के मंत्रालय में पंजीकृत नहीं होती हैं) पर महामारी की ज्यादा मार पड़ी है।
कुल मिलाकर निगमित कर राजस्व 2019-20 के 5.57 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े से करीब 1 लाख करोड़ रुपये घटकर वित्त वर्ष 2021 में 4.57 लाख करोड़ रुपये ही रहा। यह आकड़ा पिछले पांच वित्त वर्षों में सबसे कम था। मगर सूचीबद्घ कंपनियों द्वारा अदा किया गया कर वित्त वर्ष 20 के मुकाबले करीब 35,000 करोड़ रुपये बढ़ गया। निगमित कर का बड़ा हिस्सा इन्हीं सूचीबद्घ कंपनियों से आता है। बाकी कर प्राइवेट लिमिटेड, सीमित दायित्व साझेदारी (एलएलपी) और एक व्यक्ति वाली कंपनियों से आता है।
दोनों आंकड़ों को एक साथ देखने से पता चलता है कि प्राइवेट कंपनियों, एलएलपी और एमएसएमई द्वारा कर भुगतान में सही मायने में करीब 1.35 लाख करोड़ रुपये की कमी आई है। हालांकि पिछले कुछ साल से इसमें कमी देखी जा रही थी मगर यह पहला मौका है, जब सूचीबद्घ कंपनियों का कर बढ़ा है और बाकी कंपनियों का कर इतना अधिक घटा है। संक्षेप में कहें तो कुल कर संग्रह में भले ही कमी आई है लेकिन सूचीबद्घ कंपनियों ने सरकार को ज्यादा कर अदा किया है। तो क्या बड़ी कंपनियों का बेहतर प्रदर्शन छोटी गैर-सूचीबद्घ इकाइयों और एमएसएमई की कीमत पर हुआ है? विशेषज्ञों को यही लगता है।
भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन ने कहा, ‘कई गैर-कॉरपोरेट या छोटी कंपनियों पर बडी मार पड़ी है। उनकी मांग बड़ी कंपनियों के पास चली गईं। कंपनियों के नतीजे भी यह दर्शाते हैं।’ उन्होंने कहा कि जब बैंक कर्ज देने से परहेज कर रहे हैं तो सूचीबद्घ कंपनियों ने बाजार में सस्ते कर्ज का फायदा उठा लिया है। उन्हें कम लागत पर काफी पूंजी मिल गई है, लेकिन गैर-सूचीबद्घ कंपनियों के पास यह विकल्प नहीं होता है। सेन ने कहा, ‘जो कंपनियां पूंजी जुटा सकती थीं, उन्हीं के पास मांग चली गई।’ गैर-सूचीबद्घ इकाइयों के सालाना कारोबार के आंकड़ों से भी इसकी पुष्टि हो सकती है। कंपनी मामलों के मंत्रालय ने ये आंकड़े जारी नहीं किए हैं। दूसरी ओर वित्त वर्ष 2021 में सूचीबद्घ कंपनियों का कारोबार सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ा है।
