तकरीबन 1000 छोटी भारतीय कंपनियों के दफ्तर बने हैं अमेरिका की सिलिकॉन वैली में
सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों के राष्ट्रीय संगठन नैसकॉम की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो साल में छोटे शहरों से सॉफ्टवेयर निर्यात में केवल 5 फीसदी का इजाफा हुआ है।
और अभी तक यह आंकड़ा बढ़कर केवल 15 से 18 फीसदी तक पहुंच पाया है। 2010 तक यह आंकड़ा बढ़कर 25 से 30 फीसदी तक पहुंच जाएगा। दरअसल छोटे शहरों में मौजूद छोटे और मझोले आकार की सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों की वजह से यह संभव हो पा रहा है।
इमपेचुअस टेक्नोलॉजीज का ही उदाहरण लें, यह एक आउटसोर्सस्ड प्रोडक्ट इंजीनयरिंग सेवा कंपनी है। प्रवीण कांकरिया ने 1991 में इमपेचुअस की शुरुआत की थी। और उनकी कंपनी ने समाचार पत्र उद्योग के लिए एक ‘न्यूज सर्वर’ नाम का सॉफ्टवेयर बनाया।
उनके इस सॉफ्टवेयर के जरिये प्रकाशकों को बहुत सहूलियत हो गई। उनके इस सॉफ्टवेयर को 200 से भी अधिक प्रकाशकों ने खरीदा। आज की तारीख में एक हजार से भी ज्यादा कंपनियों के दफ्तर सिलिकॉन वैली में हैं।
इमपेचुअस का राजस्व एक साल में 50 फीसदी से भी ज्यादा की दर से बढ़ा है। अपनी श्रेणी में यह एक मजबूत कंपनी बन गई है। इसके अलावा सकसॉफ्ट लिमिटेड, आईबीएस सॉफ्टवेयर सर्विसेज, साइबेज सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड और न्यू जेन सॉफ्टवेयर जैसे कुछ नाम हैं जो छोटी कंपनियों से बड़ी कंपनियों में तब्दील हो गई हैं।
यदि सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियां विदेशों में अपना डंका बजा सकती हैं तो छोटे और मझोले आकार की कंपनियां भी किसी मामले में उनसे पीछे नहीं हैं। ये कंपनियां पहले तो देसी आउटसोर्सिंग बाजार पर कब्जा जमा रही हैं और साथ-साथ ही साथ देश की सीमाओं के बाहर भी अपने पंख फैला रही हैं।
इमपेचुअस के वाइस प्रेसीडेंट (इंजीनियरिंग) राजीव गुप्ता कहते हैं, ‘देश की छोटे और मझोले आकार की आईटी कंपनियां अमेरिका, जापान, जर्मनी और ब्रिटेन के जैसे बाजारों के अलावा दूसरे बाजारों में भी अपनी पैठ बनाने में जुटी हुई हैं। कई कंपनियां लैटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिमी एशिया, थाइलैंड और मोरक्को जैसे बाजारों का रुख कर रही हैं। ‘
ये कंपनियां इनोवेशन, उत्पादन में विविधता और ग्राहक सेवा के मामले में बड़ी कंपनियों जैसा काम कर रही हैं। इनोवेशन के अलावा ये कंपनियां अपना दायरा फैलाने के काम में लगी हैं और अपना प्रोसेस और अपने गठजोड़ों को मजबूत करने में लगी हैं। किसी भी नये उत्पाद या सेवा को सही स्वरूप देने के लिए समय पर सूचनाएं बहुत आवश्यक हैं।
ये सूचनाएं मौजूदा योजनाओं, बढ़िया होती संगठनात्मक प्रक्रिया और समस्याओं के हल में भी अच्छी खासी सहायक होती हैं।गुप्ता कहते हैं, ‘एसएमई की वृद्धि के सामने कीमत, गुणवत्ता, डिलीवरी और मानव संसाधन जैसे मोर्चों पर बहुत सारी चुनौतियां हैं। घरेलू के साथ विदेशी बाजार में कारोबार बढ़ाने के लिए रणनीतियों को ज्यादा कारगर बनाना होगा।’
न्यूजेन सॉफ्टवेयर के प्रबंध निदेशक दिवाकर निगम कहते हैं, ‘सीमित संसाधन इन कंपनियों के विकास में अड़ंगा डालते हैं। जब भी कोई बड़ा ऑर्डर मिलता है तब कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। मसलन कभी वेंडर की समस्या तो कभी कोई दूसरी परेशानी सामने आ जाती है। अगर ऑर्डर पूरा नहीं हो पाता तो कंपनी से भरोसा उठ जाता है और आगे कारोबार में दिक्कत आती है।’
न्यूजेन ने दिल्ली में 1992 से कारोबार करना शुरू किया था। उस वक्त कंपनी के पास बस 20 कर्मचारी थे। न्यूजेन ने डॉक्यूमेंट मैनेजमेंट और बीपीओ के लिए इनोवेटिव उत्पाद विकसित करने के मकसद के साथ काम करना शुरू किया था।
मौजूदा दौर में इस कंपनी की भारतीय बीपीओ बाजार में 40 फीसदी हिस्सेदारी है और आज यह इस श्रेणी की अगुआ कंपनी है। ये कंपनियां पहले देसी बाजार को पूरी तरह से समझ रही हैं और फिर विदेशी बाजार का रुख कर रही हैं। इन कंपनियों को उन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देने की जरुरत है जिसमें ये पहले से ही बढ़िया कर रही हैं और दूसरी कंपनियों को मात दे सकती हैं।