दुनिया में सबसे ज्यादा टीके बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) को कोविशील्ड की तकरीबन 20 करोड़ खुराक नष्ट करनी पड़ सकती हैं, क्योंकि इन खुराकों के इस्तेमाल की मियाद सितंबर के आसपास खत्म हो रही है।
पुणे की इस टीका विनिर्माता ने दिसंबर से अपने कार्यस्थल पर उत्पादन रोक दिया था, क्योंकि पहले ही 25 करोड़ तैयार खुराक का स्टॉक बना लिया गया था और इसके पास कच्चे रूप में करीब 20 करोड़ से 25 करोड़ खुराक थीं।
इसके बाद से कंपनी ने अपना कुछ स्टॉक निर्यात और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आपूर्ति प्रतिबद्धताओं के जरिये तथा भारत में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में निपटा दिया है। सूत्र ने इस बात का खुलासा किया है कि कंपनी के पास अब भी कोविशील्ड की तैयार फॉर्मूलेशन की 20 करोड़ खुराक हैं, पुणे में एस्ट्राजेनेका टीका स्टॉक के रूप में पड़ा हुआ है। सूत्र ने कहा कि कुछ स्टॉक का निपटान कर दिया गया है, लेकिन अब भी करीब 20 करोड़ तैयार खुराक बिना इस्तेमाल के हैं।
इस टीके के इस्तेमाल की अवधि (शेल्फ लाइफ) नौ महीने है और इस तरह दिसंबर में विनिर्मित स्टॉक की मियाद सितंबर या उसके आसपास समाप्त होने वाली है। इसलिए अगले दो महीने की अवधि में टीका विनिर्माताओं के पास स्टॉक नष्ट करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होगा। इस्तेमाल की इतनी कम अवधि वाले टीके के लिए घरेलू या निर्यात बाजार में खरीदार खोजना मुश्किल होता है। सीरम इंस्टीट्यूट ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पिछले मई माह में कहा था कि कोविशील्ड सहित कोई भी टीका, जो अपनी समाप्ति तिथि पार कर चुका है, उसे नहीं लगाया जाना चाहिए। वैश्विक एजेंसी ने कहा था कि हालांकि किसी भी टीकाकरण कार्यक्रम के लिहाज से टीकों का त्याग करना बहुत खेदजनक होता है, लेकिन डब्ल्यूएचओ इस बात की अनुशंसा करता है कि समाप्त हो चुकी इन खुराक को वितरण श्रृंखला से हटा दिया जाना चाहिए और सुरक्षित रूप से निपटान किया जाना चाहिए। किसी टीके की इस्तेमाल की अवधि यह बात दर्शाती है कि भंडारण के दिए गए तापमान पर वह टीका कितने समय तक अपनी क्षमता और स्थिरता बनाए रखता है और इसके अनुसार इसका असर कायम रहता है। शेल्फ लाइफ का इस्तेमाल टीका उत्पाद के प्रत्येक बैच की समाप्ति तिथि निर्धारित करने के लिए किया जाता है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि समाप्ति तिथि टीके की सुरक्षा को प्रभावित नहीं करती हैं, बल्कि टीके द्वारा दी जाने वाली क्षमता या सुरक्षा की मात्रा से संबंधित होता है।
केंद्र सरकार को (मार्च 2021 के आसपास) 150 रुपये प्रति खुराक पर बेचते समय भी कंपनी कुछ मुनाफा अर्जित कर रही थी। हालांकि इसने कभी भी अपनी इकाई की उत्पादन लागत का खुलासा नहीं किया है, लेकिन वैक्सीन उद्योग के दिग्गजों को लगता है कि यह प्रति खुराक 70-90 रुपये से अधिक नहीं होगी। एक निजी टीका फर्म के एक वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा कि सीरम इंस्टीट्यूट का जो स्तर और सबसे बड़ी टीका विनिर्माता के तौर पर इसका आपूर्ति श्रृंखला पर जो नियंत्रण है, उसके मद्देनजर उत्पादन की लागत बहुत अधिक नहीं है। अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन माना जा सकता है कि यह प्रति खुराक तकरीबन 70-90 रुपये के दायरे में होगा। उत्पादन की लागत को एसआईआई की ओर से स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं किया जा सका। बढ़ते मामलों के बीच देश में बूस्टर टीकों की मांग बढ़ने से अब निजी अस्पतालों की ओर से कुछ मांग आ सकती है। हालांकि अस्पताल उद्योग के सूत्रों का दावा है कि मांग के पूर्वानुमान से वे अभी बड़ी मात्रा में ऑर्डर नहीं दे रहे हैं। मुंबई के पूर्वी उपनगर में स्थित एक मध्य आकार वाले अस्पताल के प्रशासक ने कहा कि हमने पहले बड़ी मात्रा में ऑर्डर दिया था और तब हमारे पास बड़ा स्टॉक पड़ा था। फिर कीमतों में कटौती की गई और विनिर्माताओं ने हमें मुफ्त अतिरिक्त खुराकों के जरिये इस मूल्य अंतर के लिए मुआवजा दिया था। इसलिए अब ऑर्डर करने की कोई जल्दी नहीं है।
