कंपनियों के लिए तेल व गैस की खोज आसान करने के लिए केंद्र सरकार कई कदमों पर विचार कर रही है, जिससे 2030 तक 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अन्वेषण का लक्ष्य हासिल किया जा सके। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘आवेदन की प्रक्रिया आसान करने के लिए हम पहले से स्वीकृत ब्लॉकों की मंजूरियों, स्वप्रमाणन को लेकर प्रतिबद्ध हैं। इनमें से कई मसलों पर काम चल रहा है, लेकिन हमारी नजर लगातार मंजूरी प्रक्रिया पर बनी हुई है और इसमें आगे और तेजी लाई जाएगी।’
उन्होंने कहा कि पिछले साल इसके लिए हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय की ओर से ऊर्जा प्रगति पोर्टल पेश किया गया था, इसे भी अद्यतन किया जा रहा है।
तेल व गैस ब्लॉकों के कॉन्ट्रैक्टर और ऑपरेटरों को अन्वेषण व उत्पादन प्रक्रिया शुरू करने के लिए निश्चित रूप से केंद्र व राज्य सरकारों के प्राधिकारियों से वैधानिक मंजूरियां लेनी होंगी। इन मंजूरियों व हरी झंडी में पेट्रोलियम खनन पट्टा, पेट्रोलियम माइनिंग लीज, पर्यावरण संबंधी मंजूरियां जैसे पर्यावरण, वन और वन्य जीव संबंधी मंजूरी आदि शामिल है।
इसके अलावा रक्षा मंत्रालय सहित अन्य विभागों जैसे प्रदूषण नियंत्रण संबंधी मंजूरी लेनी होती है। इस तरह की मंजूरियों व अनुमोदन में देरी होने से अन्वेषण व उत्पादन परियोजनाओं की प्रगति प्रभावित होती है और वक्त बढ़ जाता है। सरकार ने पहले ही 22 प्रक्रियाओं को चिह्नित किया है, जहां स्वप्रमाणन के आधार पर कॉन्ट्रैक्टरों से दस्तावेज स्वीकार किए जाते हैं और इसके लिए किसी मंजूरी की जरूरत नहीं होती। अधिकारियों ने कहा कि इस तरह की प्रक्रियाओं का स्वप्रमाणन ढांचे के तहत विस्तार किया जाएगा।
वैश्विक रूप से जानी मानी और स्वीकार्य विवाद निपटान प्रणाली और प्ले बेस्ड एक्सप्लोरेशन की सुविधा भी दी गई है, जिससे एक्सॉनमोबिल और शेल व बीपी जैसी वैश्विक कंपनियों को आकर्षित किया जा सके। सरकार ने अपतटीय गैस ब्लॉकों के लिए कम रॉयल्टी रखी है, जिससे घरेलू उत्पादन बढ़ाया जा सके। तेल व गैस अन्वेषण को आसान बनाने के पीछे सरकार का मकसद घरेलू उत्पादन की क्षमता तेजी से बढ़ाना है, क्योंकि बाहर से आपूर्ति का हिस्सा बढ़ा हुआ है। बीपी एनर्जी आउटलुक में अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक वैश्विक ऊर्जा की मांग में भारत की हिस्सेदारी मौजूदा 6 प्रतिशत से बढ़कर 12 प्रतिशत हो जाएगी। बहरहाल 2021 तक वैश्विक तेल व गैस उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी महज 0.7 प्रतिशत थी।
अधिकारियों ने कहा कि मंत्रालय इस समय अन्वेषण के तहत क्षेत्र बढ़ाने को उच्च प्राथमिकता दे रहा है। इस साल की शुरुआत तक 5 साल पहले की तुलना में यह क्षेत्र दोगुना बढ़कर 2,07,692 वर्ग किलोमीटर हो गया है। भारत इस समय तेल की अपनी कुल जरूरतों का 85 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस की जरूरतों का 50 प्रतिशत आयात से पूरी करता है, क्योंकि घरेलू उत्पादन अपर्याप्त है।
