भारतीय शिपयार्ड उद्योग में बैंकों को करीब 44,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इस क्षेत्र की तीन बड़ी कंपनियों में से एबीजी शिपयार्ड ने अदायगी में सबसे अधिक चूक की है। बैंकरों ने कहा कि एबीजी शिपयार्ड में बैंकों का 23,000 करोड़ रुपये बकाया था। रिलायंस नेवल ऐंड इंजीनियरिंग (पूर्व में पिपावाव शिपयार्ड) में बैंकों को करीब 12,500 करोड़ रुपये और भारती शिपयार्ड में 8,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
एक बैंकिंग सूत्र ने कहा, ‘ऋण पुनर्गठन की एक शृंखला के बावजूद ये कंपनियां मुनाफे की राह पर लौटने में विफल रहीं। बाद में बैंकों ने ऋण की वसूली के लिए ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता के तहत कार्रवाई सहित कई कदम उठाए लेकिन बकाये की वसूली नहीं हो पाई।’
एबीजी शिपयार्ड को परिसमापन के लिए भेज दिया गया लेकिन रिलायंस नेवल ऐंड इंजीनियरिंग की बिक्री प्रक्रिया अभी भी मुंबई की कंपनी हैजल मर्केंटाइल के साथ चल रही है। साल 2019 में भारती शिपयार्ड के परिसमापन के लिए एक सार्वजनिक सूचना जारी की गई थी। बैंकों को रिलायंस नेवल डिफेंस से बहुत अधिक वसूली
उम्मीद नहीं है। उसे अब तक दो बोलियां हासिल हुई हैं जिनमें एक जिंदल स्टील की प्रवर्तक कंपनी से है।
शिपयार्ड उद्योग के एक अन्य सूत्र ने कहा, ‘निजी शिपयार्ड उद्योग में कई समस्याएं हैं जैसे सरकार/ नौसेना, तटरक्षक बल और ओएनजीसी से पर्याप्त ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। इनमें से कई कंपनियों ने अपनी क्षमता में विस्तार किया है। सरकार से ऑर्डर की रफ्तार बढऩे पर क्षमता विस्तार में निवेश तो कर लिया गया लेकिन ऑर्डर न मिलने पर बैंकों का ऋण गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) में तब्दील हो गया।’
इसके अलावा आर्थिक मंदी, वैश्विक व्यापार में गिरावट और नकदी संकट ने समस्या को कहीं अधिक बदतर कर दिया जिससे निजी शिपयार्ड कंपनियों का प्रदर्शन प्रभावित हुआ। इन सब अनसुलझे मुद्दों के कारण निजी क्षेत्र के मौजूदा ऑर्डर बुक का निष्पादन में अब भी अनिश्चितता बरकरार है। ग्राहक ऑर्डर रद्द कर रहे हैं और उसके बजाय सार्वजनिक उपक्रमों का चयन कर रहे हैं। इस उद्योग में सरकारी स्वामित्व वाले शिपयार्ड का वर्चस्व है जिसे भारतीय रक्षा क्षेत्र से अधिकांश ऑर्डर प्राप्त होते हैं।
एबीजी शिपयार्ड के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कंपनी में रकम की धोखाधड़ी के आरोपों की जांच कर रहे हैं। लेनदारों ने कहा है कि एक फोरेंसिक ऑडिट से पता चला कि प्रवर्तक कथित तौर पर रकम हो हस्तांतरित कर रहे थे। उसके बाद इस खाते को धोखाधड़ी की श्रेणी में डाल दिया गया।