रिलायंस कैपिटल (आरसीएल) पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की सख्ती के पीछे कई कारक हैं, जो लंबे समय से बने हुए थे।
केंद्रीय बैंक की जांच में यह भी पाया गया कि चूक के अलावा, कंपनी की देनदारियां तय सीमा से तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ गई थीं। तय मानक के संदर्भ में उसकी पूंजी घटकर नियामकीय सीमा के करीब एक-तिहाई रह गई थी। इस घटनाक्रम से अवगत लोगों के अनुसार, ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि कंपनी नेटवर्थ के संदर्भ में दबाव में थी।
आरसीएल अक्टूबर 2019 से अपनी स्थानीय ऋण देयताओं को पूरा करने में विफल रही थी। 31 मार्च 2021 तक ऋणदाताओं और डिबेंचर धारकों का उस पर कुल बकाया 20,103 करोड़ रुपये था।
आरबीआई ने अपनी अनौपचारिक परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा के तहत कंपनी पर लगातार नजर बनाए रखी और नियमित रूप से निरीक्षण किए।
सूत्रों का कहना है कि 31 मार्च 2020 तक की वित्तीय स्थिति से संबंधित निरीक्षणों से पता चला कि आरसीएल नेटवर्थ-रिस्क वेटेड ऐसेट्स के संदर्भ में न्यूनतम नियामकीय पूंजी अनुपात पूरा नहीं कर पा रही थी।
सूत्रों से पता चला है कि आरसीएल का नियामकीय पूंजी अनुपात 10.75 प्रतिशत पर पाया गया था, जो 30 प्रतिशत की न्यूनतम शर्त के मुकाबले काफी कम है। उसकी बाहरी देनदारियां 8.42 गुना पर आकी गई थीं, जबकि अधिकतम निर्धारित सीमा 2.5 गुना है। इस साल लेखा वित्तीय परिणामों के अनुसार 31 मार्च, 2021 तक स्थिति और बदतर हो गई और नेटवर्थ 7,610 करोड़ रुपये पर रही, और 45 प्रतिशत का खराब पूंजी अनुपात दर्ज किया गया।
सूत्रों का कहना है कि आरबीआई ने पिछले निरीक्षणों के दौरान, आरसीएल प्रबंधन के साथ कई बार बातचीत की। यह बातचीत पत्रों तथा बैठकों, दोनों के माध्यम से हुई थी और इनमें कई नियामकीय तथा निगरानी संबंधित चिंताओं को उठाया गया था। इनमें आईआरएसीपी मानकों के गैर-अनुपालन से संबंधित समस्याएं भी शामिल थीं। ये मानक यह तय करते हैं कि परिसंपत्ति वर्गीकरण और प्रावधान के संबंध में रिपोर्ट कैसे तैयार की जाए। यह भी पाया गया कि कंपनी ने ऐसे लोगों को कर्ज दिया जिनकी नेटवर्थ कमजोर थी या उनकी ऋण चुकाने की क्षमता पर्याप्त नहीं थी और कॉरपोरेट प्रशासनिक प्रणलियां भी कमजोर थीं। इन समस्याओं पर आरबीआई की चेतावनियों के बावजूद निदेशक मंडलों द्वारा सही तरीके से ध्यान नहीं दिया गया था। (साथ में देव चटर्जी)
