प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस सप्ताह के शुरू में रघुराम राजन को अपना मानद आर्थिक सलाहकार चुना है।
यह महज एक संयोग हो सकता है कि उन्हें ऐसे समय में चुना गया है जब जी-20 समूह की बैठक में दो सप्ताह से भी कम का वक्त रह गया है। इस बैठक में भारत को भी भाग लेना है। इसमें वैश्विक वित्तीय संकट और इससे निपटने के तौर-तरीकों पर चर्चा होगी।
यह सवाल उठने लगा है कि क्या भोपाल में जन्मे 45 साल के राजन वैश्विक सम्मेलन में भारत सरकार का नजरिया स्पष्ट करने में एक मददगार की भूमिका निभाएंगे? इसके अलावा देश में कुछ ही महीनों में आम चुनाव भी होने हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि ऐसे वक्त में प्रधानमंत्री ने राजन को क्यों नियुक्त किया है? इन रहस्यों से सही समय पर पर्दा उठेगा।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन का अध्ययन करने के बाद राजन ने मैसाच्युसेट्स इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी से पीएचडी की। सितंबर 2003 में 40 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के इकनॉमिक काउंसलर और शोध निदेशक (मुख्य अर्थशास्त्री) की जिम्मेदारी संभाली।
वह इस पद पर सबसे कम उम्र में नियुक्त होने की उपलब्धि भी हासिल कर चुके हैं। 2007 के शुरू में राजन शिकागो विश्वविद्यालय के ग्रैजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस पहुंचे जहां उन्होंने फाइनैंस के एरिक जे ग्लीचर डिस्टिंगविश्ड सर्विस प्रोफेसर की भूमिका निभाई।
2003 में राजन को 40 साल से कम उम्र के किसी अर्थशास्त्री के वित्तीय क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अमेरिकन फाइनैंस एसोसिएशन की ओर से पहले फिशर ब्लैक पुरस्कार से नवाजा गया। उनकी बहुपठित पुस्तक ‘सेविंग कैपिटलिज्म फ्रॉम द कैपिटलिस्ट’ 2004 में प्रकाशित हुई। जी-20 बैठक में भारत का पक्ष रखने के लिए वह बिल्कुल सही व्यक्ति हैं।
राजन ने हाल ही में देश में वित्तीय क्षेत्र में सुधारों पर एक समिति की अध्यक्षता की। उस दौरान उन्होंने वित्तीय क्षेत्र के नियामकों के लिए हर पांच साल में विशेष जिम्मेदारी तय करने का सुझाव दिया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि नियामकों को इस दिशा में हुई प्रगति को स्पष्ट करने के लिए संसद की स्थायी समिति को रिपोर्ट भेजनी चाहिए।
रिपोर्ट में कई अन्य सुझाव भी दिए गए जिनमें यह भी कहा गया था कि भारतीय रिजर्व बैंक का एक प्रमुख उद्देश्य ‘कम मुद्रास्फीति’ होना चाहिए। सलाहकार के तौर पर नियुक्त होने के बाद बिजनेस स्टैंडर्ड ने मौजूदा आर्थिक माहौल पर राजन के नजरिये और उनके संभावित एजेंडे पर बातचीत की।
सितंबर, 2006 में उन्होंने त्रैमासिक पत्रिका ‘फाइनैंस ऐंड डेवलपमेंट’ के लिए एक लेख लिखा था, जिसमें कहा गया था, ‘भविष्य में भारत के विकास के बारे में विशेष चिंताओं को प्रतिबिम्बित किए जाने के बजाय उभरते बाजारों के विश्वव्यापी पुनर्निर्धारण का आईना दिख रहा है।’
‘मौजूदा माहौल में देखें तो आगे के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी दम नजर आता है, जो लंबे समय तक बरकरार रहेगा। मुझे लगता है यह भारत के लिए अहम होगा।’ राजन के इन शब्दों से दो साल बाद आज दूरदर्शिता का बोध होता है। राजन की सलाह पर मौजूदा सरकार अपने शासनकाल के बचे सीमित समय में कितना कुछ कर पाएगी, इस बारे में पक्का नहीं कहा जा सकता।