बिजली वितरण क्षेत्र में विभिन्न सुधारों पर जोर दे रही केंद्र सरकार ने विद्युत विधेयक, 2020 के मसौदे में शामिल कई प्रस्तावों को वापस लेने का फैसला किया है। विधेयक में बिजली सब्सिडी को किसी भी तरह से खत्म करने का अब कोई प्रावधान नहीं होगा।
इसका मतलब यह हुआ कि एलपीजी वितरण की तरह बिजली में भी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) लाने का केंद्र का संकल्प पूरा नहीं होगा। विधेयक में किए गए हालिया बदलाव में डीबीटी के प्रस्ताव को वापस ले लिया गया है। केंद्र सरकार ने पिछले साल जारी पहले मसौदे में सब्सिडी शब्द हटाने का प्रस्ताव किया था और बिजली क्षेत्र में डीबीटी का प्रस्ताव शामिल
किया था।
कई राज्यों ने भी सब्सिडी वाली बिजली दरों को खत्म करने के कदम का विरोध किया था। कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसान संगठनों ने भी इस पर आपत्ति जताई थी। लगभग सभी राज्य कृषि क्षेत्र के उपभोक्ताओं को बिजली बिलों में सब्सिडी देते हैं और कई राज्य चुनिंदा उपभोक्ता वर्ग को सब्सिडी देते हैं। दिल्ली में बिजली की निश्चित खपत तक सब्सिडी दी जाती है।
केंद्रीय बिजली मंत्री आर के सिंह ने आज कहा कि प्रस्तावित विधेयक के मसौदे में किसानों से संबंधित कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा, ‘विद्युत संशोधन विधेयक में किसानों से संबंधित कोई प्रावधान नहीं है। अभी सरकार विधेयक की समीक्षा कर रही है।’ सिंह ने कहा कि विधेयक के मसौदे को अप्रैल 2020 को सार्वजनिक किया गया था, लेकिन इसे अभी तक मंत्रिमंडल की मंजूरी नहीं मिली है। मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद इसे संसद में पेश किया जाएगा। अभी विधेयक परिचर्चा पत्र के स्तर पर है।
इस साल फरवरी में केंद्र ने विधेयक में संशोधन कर बिजली वितरण लाइसेंस की अवधारणा को खत्म कर दिया और जरूरी नियामकीय मंजूरी के बाद कोई भी कंपनी किसी भी क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति के लिए स्वतंत्र होगी। इसमें एक ही क्षेत्र में दो या उससे अधिक वितरण कंपनियों को आपूर्ति के लिए पंजीकृत करने की अनुमति देने का प्रावधान है। हालांकि यह प्रावधान ताजा संशोधन के बाद भी मौजूद है।
दो या अधिक पक्षों के बीच बिजली की खरीद, बिक्री और पारेषण के अनुबंध से संबंधित किसी भी मसले के समाधान के लिए व्यापक निकाय बनाने का प्रस्ताव भी हटा दिया गया है। विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण को मिश्रित प्रतिक्रिया मिली थी, लेकिन कई विशेषज्ञों का कहना था कि इसका कार्य और भूमिका राज्य एवं केंद्र के मौजूदा विद्युत नियामक आयोग और विद्युत अपील पंचाट के काम में हस्तक्षेप करते हैं।
केंद्र ने स्पष्ट किया है कि राज्य आरईसी की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकारों के हाथों में होगा। इसे लेकर केंद्र और गैर-भाजपा शासित राज्यों के बीच विवाद हो रहा था। राज्य और केंद्रीय ईआरसी के चेयरमैन और सदस्यों को नियुक्त करने के लिए एकल चयन समिति के प्रस्ताव को भी हटा दिया गया है।
