मंदी की वजह से एक तरफ जहां लगभग सारे उद्योगों की हालत पस्त है, तो वहीं देश का दवा उद्योग नई बुलंदियों को छू रहा है।
इस साल जनवरी में इस उद्योग की विकास की रफ्तार 14.4 फीसदी रही है। अगर जनवरी, 2009 को खत्म हुए साल के आधार पर देखें तो इन 12 महीनों में इस उद्योग की विकास की रफ्तार 9.9 फीसदी की रही है। इस दौरान देसी दवा कंपनियों ने 34,487.17 करोड़ रुपये की मोटी-ताजी कमाई की है।
अगर पिछले साल नवंबर के महीने में देसी दवा कंपनियों के लिए तरक्की की रफ्तार सिर्फ 6.8 फीसदी रही थी, तो यह दिसंबर में बढ़कर 13.2 फीसदी हो गई। वहीं, जनवरी, 2009 में तो यह दो कदम और आगे बढ़कर 14.4 फीसदी के आंकड़े को छू गया।
ब्रोकिंग फर्म प्रभुदास लीलाधर में लाइफ साइंसेज रिसर्च के प्रमुख रंजीत कपाडिया का कहना है, ‘इस के पीछे बड़ी वजह दवा बिक्री में मौसम की वजह से उतार-चढ़ाव आना है। आमतौर पर नवंबर से जनवरी के दौरान सर्दी-जुकाम और सांस की तकलीफ से जुड़ी दवाओं की बिक्री काफी ज्यादा होती है। साथ ही, इस दौरान एंटी-बॉयोटिक्स की बिक्री में भी इजाफा आ जाता है।’
आंकड़ों की मानें तो जनवरी में एंटी-इंफेक्टिव दवाओं की बिक्री में 11.6 फीसदी का इजाफा हुआ है। साथ ही, गाइनोकॉलिजी सेगमेंट की दवाओं की बिक्री 15.9 फीसदी बढ़ी। इसके अलावा, विटामिन और मिनरल्स और सांस की तकलीफ से जुड़ी बीमारियों की दवाओं की बिक्री में भी 13.1 फीसदी और 12.1 फीसदी का इजाफा हुआ।
दुनिया की बाकी जेनरिक दवा कंपनियों के मुकाबले भारतीय कंपनियों का प्रदर्शन भी इस दौरान काफी अच्छा रहा है। सितंबर, 2008 को खत्म हुए साल में उनके विकास की रफ्तार 3.6 फीसदी रह चुकी थी। सितंबर, 2007 में उनकी विकास की रफ्तार 11.4 फीसदी हुआ करती थी।
जनवरी के आंकड़ों की मानें तो घरेलू बाजार में 844 दवाओं को बेचने वाली कंपनी सिपला ने 14.6 की विकास दर के साथ अपनी नंबर एक की कुर्सी बचाए रखी। पिछले 12 महीनों में सिपला का घरेलू कारोबार 13.4 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा है। साथ ही इसकी कमाई भी 1,839 करोड़ रुपये हो चुकी है। आज घरेलू कारोबार के 5.34 फीसदी हिस्से पर इसका कब्जा है।
इसके बाद नंबर आता है देश की सबसे बड़ी दवा कंपनी रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज का, जो घरेलू बाजार में 536 दवाओं को बेचती है। जनवरी में इसने 7.2 फीसदी की रफ्तार से तरक्की की। पिछले एक साल में कंपनी ने कमाई के मामले में 11.5 फीसदी का विकास किया। इस वजह से बाजार के 5.03 फीसदी हिस्से पर इसका कब्जा हुआ।
वैसे, घरेलू बाजार में 2008 में रैनबैक्सी की कमाई में सिर्फ सात फीसदी का इजाफा हुआ है। पिछले साल कंपनी को घरेलू बाजार से 1,485 करोड़ रुपये की कमाई हुई। 2007 में कंपनी को 1,393 करोड़ की कमाई हुई थी।
ओआरजी-आईएमएस के इन आंकड़ों के मुताबिक घरेलू बाजार में टॉप टेन कंपनियों के रैंकिंग और बाजार में हिस्सेदार में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। ग्लैक्सोस्मिथलाइन तीसरे नंबर पर रही।
इसके बाद पीरामल हेल्थकेयर, जायडस कैडिला, सन फार्मा, एल्केम लैबोरेट्रीज, ल्युपिन लैब्स और मैनकाइंड फार्मा आए। वैसे, पीरामल हेल्थकेयर (30.3 फीसदी), एल्केम लैब (21.6 फीसदी), मैनकाइंड (26.5 फीसदी) जैसी कंपनियों ने जनवरी में बिक्री में अच्छा-खासा इजाफा किया है।
