नोवार्तिस, रोश और फाइजर जैसे वैश्विक दवा कंपनियों ने तीन साल से भी कम के समय में 392 दवा पेटेंट हासिल किए हैं।
देश में दवाओं के लिए उत्पाद पेटेंट प्रणाली की अनुमति के लिए भारतीय पेटेंट कानूनों में बदलाव के तीन साल से भी कम वक्त में ये पेटेंट दिए गए हैं। जहां स्विस कंपनी हॉफमान ला रोश ने 34 पेटेंट हासिल किए वहीं नोवार्टिस एजी और फाइजर इंक. क्रमश: 25 और 24 पेटेंट के साथ रोश से पीछे रही हैं।
इन दवाओं का इस्तेमाल कैंसर, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों के इलाज में किया जाता है। मौजूदा कानूनों के मुताबिक कोई भी दवा कंपनी पेटेंट की अवधि समाप्त होने के बाद इन दवाओं के सस्ते वर्सन का निर्माण या बिक्री नहीं कर सकती।
इंडियन मेडिकल पार्लियामेंटेरियंस फोरम के संयोजक आर. सेंथिल की ओर से उठाए गए एक सवाल की प्रतिक्रिया में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा लोक सभा में पेश आंकड़े में यह खुलासा किया गया है कि भारत ने 1 जनवरी, 2005 और 31 अगस्त, 2007 के बीच 460 पेटेंट दिए। इनमें से सिर्फ 68 पेटेंट भारतीय दवा कंपनियों से संबद्ध हैं।
आंकड़े में यह भी दिखाया गया है कि 460 पेटेंट में से 436 पेटेंट 2007 के पहले 8 महीनों के दौरान दिए गए। मंत्रालय के इस खुलासे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सिविल सोसायटी समूह अर्फोडेबल मेडिसिन्स ऐंड ट्रीटमेंट केम्पेन के आनंद ग्रोवर ने कहा है कि यह पता लगाया जाना चाहिए कि क्या इन पेटेंट आवेदनों की समीक्षा के दौरान मूल कानून और प्रक्रियाओं का पालन किया गया था या नहीं।
उन्होंने कहा, ‘भारतीय पेटेंट कानून अमेरिका की तुलना में ज्यादा कड़े हैं। यहां मामूली बदलाव वाले उत्पादों को नहीं बल्कि केवल नए संशोधनों को ही यहां पेटेंट दिया जा सकता है। आप अमेरिका में नए इनोवेशन की वास्तविक संख्या पर नजर दौड़ाएं तो यह तकरीबन 250 होगी।’
उन्होंने कहा, ‘मंत्रालय का यह आंकड़ा एक साल से ज्यादा पुराना है। भारतीय पेटेंट कार्यालयों ने अब तक दवाओं के लिए 1,000 से अधिक उत्पादों को पेटेंट की मंजूरी दी है। हमें इन पेटेंट मंजूरियों को सही तरीके से देखने की जरूरत है।’