चीन से कच्चे माल की आपूर्ति शृंखला में रह-रहकर होने वाली रुकावट की वजह से भारतीय फार्मा उद्योग ने ज्यादा स्टॉक के साथ अपनी तैयार कर ली है। उद्योग के सूत्रों ने कहा कि यहां तक कि छोटे दवा विनिर्माता भी अब प्रमुख कच्चे माल का एक महीने का बफर स्टॉक रख रहे हैं।
घरेलू कंपनियों ने कहा कि शंघाई सहित चीन के विभिन्न प्रांतों में लॉकडाउन की वजह से खेपों में दो सप्ताह से लेकर एक महीने तक की देरी होने के आसार हैं। ये खेप भारतीय दवा उद्योग के लिए महत्त्वपूर्ण होती हैं, जो अपना 70 प्रतिशत कच्चा माल चीन से आयात करता है। एंटीबायोटिक्स, विटामिन (फर्मेंटेशन वाली थोक दवा) जैसे कुछ उत्पादों का तो कुल आवश्यकता का 90 प्रतिशत तक आयात किया जाता है।
स्थानीय उद्योग को जो बात ज्यादा पीड़ा पहुंचा रही है, वह है थोक दवाओं, प्रमुख शुरुआती सामग्री (केएसएम), सॉल्वेंट और एक्सीपिंट के दामों में लगातार होने वाला उतार-चढ़ाव। भारती दवा विनिर्माता संघ (आईडीएमए)-गुजरात राज्य बोर्ड के पूर्व चेयरमैन और यश मेडिकेयर के मालिक चिराग दोशी ने आरोप लगाया कि चीन पिछले दो साल से इन प्रमुख कच्चे माल के दामों में हेरफेर कर रहा है और इससे काम करने में गंभीर दिक्कतें पेश आ रही हैं।
दोशी ने बताया कि चीनी आपूर्तिकर्ता आम तौर पर जब भी मौका देखते हैं, तो थोक दवाओं और अन्य कच्चे माल के दामों में बढ़ोतरी कर देते हैं और एक बार जब फॉर्मूलेशन विनिर्माता भारत में स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं का रुख कर लते हैं, तो अचानक दाम गिरा देते हैं और बाजार को अपने उत्पादों से पाट देते हैं। उदाहरण के लिए वैश्विक महामारी के दौरान हम यह बात एंटी-फंगल दवाओं, स्टेरॉयड के साथ भी देख चुके हैं, जिनकी काफी मांग थी। स्टेरॉयड के दाम 50,000-60,000 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर करीब 1.2 लाख रुपये प्रति किलोग्राम हो गए थे। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार थोक एंटी-फंगल दवाओं के मामले में दाम 1,500-1,800 रुपये प्रति किलोगाम से बढ़कर 50,000 रुपये प्रति किलोग्राम हो गए।
विनिर्माताओं ने भारतीय थोक दवा विनिर्माताओं से आपूर्ति शुरू कर दी, जो उस वक्त 5,000 रुपये प्रति किलोग्राम (एंटी-फंगल के मामले में) की दर पर उपलब्ध थे। दोशी ने कहा कि तब चीन ने अचानक ही अपने दाम गिरा दिए और बाजार में बाढ़ ला दी तथा दाम गिरकर दोबारा 1,800 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर
आ गए। स्थानीय उद्योग को लगता है कि जब से भारत थोक-दवाओं के संबंध में आत्मनिर्भर बनने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, तब से चीनी विनिर्माताओं और आपूर्तिकर्ताओं ने दामों में हेर-फेर करने की ऐसी रणनीति अपनाई है।
गुजरात स्थित मुख्यालय वाली एक दवा फर्म के मुख्य वित्त अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि चीन का थोक दवा उद्योग गाहे-बगाहे ऐसा करता आ रहा है। उन्होंने कहा कि हम 90 के दशक में भी ऐसा देख चुके हैं। अब उन्होंने फिर से ऐसी ही रणनीति अपना ली है। वास्तव में यह आत्मनिर्भरता के किसी भी प्रयास को विफल कर देती है।
इसलिए भारतीय उद्योग ने कुछ महीनों के लिए बफर स्टॉक रखना शुरू कर दिया है। बीडीआर फार्मास्युटिकल के सीएफओ धीर शाह ने कहा कि कुल मिलाकर उद्योग तीन से चार महीने का बफर स्टॉक रख रहा है और यहां तक कि अधिकाशं छोटी कंपनियों के पास भी एक महीने का स्टॉक है।
