ऐक्सिस बैंक की नई सीईओ बनी शिखा शर्मा की वित्त जगत में काफी धाक है। तमाम नोक-झोंक के बाद इस पद नियुक्त होने के बावजूद उनकी साख पहले की ही तरह बरकरार है।
आईआईएम, अहमदाबाद के 1980 बैच की प्रबंधन स्नातक शिखा सुंदर साड़ियों और रोमांटिक उपन्यास की शौकीन हैं। वह एक गैर-पेशेवर शास्त्रीय गायिका भी हैं। शिखा की कई और विशेषताएं भी हैं, मसलन काम के बोझ तले वह शायद ही कभी दबी दिखाई देती हैं। इस वजह से हो सकता है कोई उनकी कड़ी मेहनत को नजरअंदाज कर दे।
वह जिस आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल की पिछले 8 सालों से अगुआई कर रही थीं, वह जीवन बीमा के जबरदस्त प्रतिस्पद्र्धा वाले कारोबार की एक प्रमुख निजी कंपनी है। इसे शिखा की काबिलियत का ही सबूत मानेंगे कि ऐक्सिस बैंक के अध्यक्ष पी. जे. नायक की असहमति के बावजूद बोर्ड के 8 में से 7 सदस्यों ने शिखा का समर्थन किया।
इस तरह नायक की असहमति के बावजूद शिखा शर्मा एक्सिस बैंक के सीईओ और प्रबंध निदेशक बन गईं। विश्लेषकों के मुताबिक, नायक के विरोध की दो वजहें रही होंगी-पहला, यह कि शिखा आईसीआईसीआई बैंक के प्रमुख और के. वी. कामत के उत्तराधिकारी की होड़ में चंदा कोछड़ से मात खा चुकी हैं और दूसरा, नायक शायद एक्सिस बैंक के लिए कोई बाहरी सीईओ नहीं चाहते थे।
लेकिन उनके आलोचकों का भी मानना है कि आईसीआईसीआई बैंक प्रमुख पद की होड़ में पिछड़ने को शिखा की अयोग्यता मानना अनुचित होगा। यह ठीक है कि वह आईसीआईसीआई की प्रमुख नहीं बन सकीं पर इससे यह साबित नहीं हो गया कि शिखा शर्मा में एक्सिस बैंक की प्रमुख बनने लायक काबिलियत नहीं है!
आईसीआईसीआई समूह में 28 साल व्यतीत करने वाली शिखा को ही बैंक के पर्सनल फाइनैंस कारोबार की नींव डालने का श्रेय दिया जाता है। गौरतलब है कि उन्हें अगस्त 1998 में आईसीआईसीआई पर्सनल फाइनैंस सर्विसेज का प्रबंध निदेशक बनाया गया था। आईसीआईसीआई यदि आज रिटेल दिग्गज है तो इसका ज्यादातर श्रेय शिखा को दिया जाना चाहिए।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ”हमें तो रिटेल की स्पेलिंग भी नहीं पता थी। यह सन 2000 में आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल की हुई स्थापना से ही शिखा बतौर प्रमुख इसका शिखा ही थीं, जिसने समूह के रिटेल कारोबार को सफल बनाया।” कामकाज देख रही हैं। उनके काम की गुणवत्ता और गति ने कइयों को उनका कायल बनाया है।
