अधिग्रहण और विलय (एम ऐंड ए) की राह पर चल रही कंपनियों को ऋण की कमी के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में अधिग्रहणों के लिए कोष जुटाने के लिए कंपनियों ने निजी इक्विटी निवेशकों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है।
पारंपरिक रूप से खरीदार निजी इक्विटी निवेशकों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं। उदाहरण के लिए, पिछले साल टाटा मोटर्स यूरोपीय लक्जरी ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर (जेएलआर) को खरीदने के लिए वन इक्विटी पार्टनर्स, टीपीजी और रिपलवुड होल्डिंग्स एलएलसी के साथ प्रतिस्पर्धा की। कंपनी ने इस सौदे के लिए 12,900 करोड़ रुपये का ऋण लिया था।
अधिग्रहण सौदों पर कंपनियों को परामर्श मुहैया कराने वाले यूरोपीय निवेश बैंक की भारतीय इकाई एन एम रॉशचाइल्ड ऐंड संस (इंडिया) के प्रबंध निदेशक संजय भंडारकर ने बताया, ‘काफी समय के बाद पूंजी बाजार से इक्विटी जुटाने की प्रक्रिया तेज हुई है जिससे विदेशों में अधिग्रहण का सिलसिला बढ़ा है।’
टाटा मोटर्स ने तीन राइट्स इश्यू के जरिये 6364 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई थी। शेयर बाजार के कमजोर पड़ जाने के कारण बाद में 2949 करोड़ रुपये के एक इश्यू को टाल दिया गया था। पूंजी बाजार से कोष जुटाने में विफलता कंपनियों को अंतर्राष्ट्रीय ऋणदाताओं से ब्रिज लोन जुटाने में मुश्किल पैदा कर रही है।
टाटा ने जेएलआर का अधिग्रहण करने के लिए कुछ समूह निवेश को बेचने की योजना बनाई है। भंडारकर ने कहा, ‘अधिकांश कंपनियां विलय एवं अधिग्रहण के लिए निजी इक्विटी फंडों की भागीदारी तलाशेंगी।’