भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एकमुश्त ऋण पुनर्गठन योजना को अपनाने वाली ज्यादा कंपनियां शायद न मिल पाएं। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अनुमान जताया है कि रेटिंग की जाने वाली 3,523 कंपनियों में से लगभग एक प्रतिशत कंपनियों ने ही इस बात के संकेत दिए हैं कि वे केंद्रीय बैंक की इस योजना के लिए आवेदन करेंगी, जबकि बाकी 99 प्रतिशत कंपनियों द्वारा इसका चुनाव करने की संभावना नहीं है।
कामत समिति की रिपोर्ट के बावजूद ऐसा हुआ है, जबकि क्रिसिल द्वारा रेटिंग की जाने वाली तकरीबन दो-तिहाई कंपनियां इस योजना की पात्र हैं। इससे इस बात के संकेत मिलते हैं कि कोविड के कारण इस कंपनियों पर कुछ दबाव है। रेटिंग एजेंसी ने इसका यह तर्क दिया है कि पिछले दो महीने के दौरान आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि के अनुरूप कारोबारी धारणा में सुधार हो रहा है और शायद अगले वित्त वर्ष में तीव्र सुधार की उम्मीद से इन कंपनियों ने इस ऋण पुनर्गठन योजना से बाहर निकालने का विकल्प चुना हो।
इसके अलावा क्रिसिल की रेटेड कंपनियों में से लगभग 44 प्रतिशत कंपनियों का तीन-चौथाई से अधिक ऋण अल्पकालिक कार्यशील पूंजी की सुविधा के रूप में है। इसलिए अगर ये कंपनियां केंद्रीय बैंक की इस ऋया पुनर्गठन योजना का विकल्प चुनती हैं, तो इन कंपनियों को काफी कम सुविधा मिलेगी, क्योंकि इस योजना में दीर्घ अवधि वाले ऋण के मूलधन को स्थगित करने की जरूरत होती है। इस तरह इन कंपनियों के लिए कोविड-19 पैकेज के तहत आरबीआई के अतिरिक्त कार्यशील पूंजी वित्तपोषण को चुनना ज्यादा बेहतर होगा। रेटिंग एजेंसी ने यह भी कहा है विश्लेषण में शामिल 968 कंपनियों ने कोविड-19 की वजह से दबाव झेलने वाली कंपनियों के लिए राहत के तौर पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पेश किए जाने वाले मॉरेटोरियम का विकल्प चुना है। और इनमें से लगभग 98 प्रतिशत कंपनियां ऋण पुनर्गठन योजना का विकल्प चुनने की इच्छुक नहीं हैं।
