महज एक दिन ने अंतर ला दिया था। इस साल जनवरी में संजय चंद्रा निजी इक्विटी कंपनियों से 1 अरब डॉलर जुटाने के सिलसिले में बात पूरी करने के बाद वापस भारत लौटे थे।
एक ऐसी घोषणा के वास्ते प्रेस को तैयार रखा जा रहा था जो भारत की दूसरी सबसे बड़ी रियल एस्टेट डेवलपर यूनिटेक के लिए बहुत ही अहम होती। इसके बाद किस्मत का खेल शुरू हो गया।
लगातार दो दिन- 21 जनवरी और 22 जनवरी- को भारतीय शेयर बाजार औंधे मुंह गिर पड़े। निवेशकों और कर्ज लेने वालों, के लिए चीजें बिलकुल बदल गईं। मूल्यांकन में गिरावट आ गई। संजय चंद्रा को बाजार स्थिर होने तक कोष जुटाने का सौदा स्थगित करना पड़ा।
उस समय से लगभग 10 महीने हो चुके हैं। भारतीय शेयर बाजार बद से बदतर स्थिति में पहुंच चुके हैं। अन्य रियल एस्टेट कंपनियों की तरह यूनिटेक भी अपनी बाजार पूंजी 90 फीसदी तक गंवा चुकी है। पिछले सप्ताह इस कंपनी की शेयर कीमत में उस वक्त और अधिक गिरावट आ गई जब यह अफवाह सामने आई कि भुगतान के मोर्चे पर कंपनी विफल रही है।
रियल एस्टेट की बिक्री में गिरावट आ गई है और अपनी मौजूदा परियोजनाओं को पूरा करने के लिए डेवलपरों को पैसा जुटाने में मुश्किल आ रही है। कई लोगों का मानना है कि संजय चंद्रा दूरसंचार सेवाएं मुहैया कराने के लिए राष्ट्रव्यापी लाइसेंस हासिल करने में स्मार्ट रहे।
उन्होंने पिछले कुछ महीने का समय फंड में मदद और वायरलेस सब्सिडरी चलाने के लिए एक रणनीतिक भागीदार की तलाश में बिताया। शुरू में संजय चंद्रा केवल 26 फीसदी या विदेशी भागीदार के लिए अधिकतम 49 फीसदी के ऑफर के लिए इच्छुक थे। इसकी कीमत 4 अरब डॉलर की रेंज में थी।
उन्होंने दूरसंचार उद्योग के दिग्गजों की एक स्मार्ट टीम बनाने में फुर्ती दिखाई। वह इस बात के लिए उत्सुक थे कि संचालन की बागडोर प्रोफेशनलों के हाथों में रहे। जुलाई के तीसरे सप्ताह तक नई दिल्ली के इम्पीरियल होटल में बातचीत तेज हो गई।
एतिसालात (जिसने स्वान टेलीकॉम के साथ करार किया है) जैसी कंपनियों के साथ कुछ समय के लिए बातचीत चली, लेकिन मूल्यांकन और प्रबंधन नियंत्रण के मुद्दों पर गतिरोध पैदा हो गया। संजय चंद्रा को भरोसा था कि यह सौदा उनके पक्ष में होगा। बातचीत से एक छोटा ब्रेक लेते हुए संजय चंद्रा उठ कर होटल की लॉबी की ओर चल दिए।
जैसे ही वह बिजनेस स्टैंडर्ड के पत्रकारों से बातचीत करने बैठे, उन्हें एक फोन आया। फोन करने वाला व्यक्ति एक निवेश बैंकर था जो कह रहा था कि उन्हें बातचीत की मेज पर वापस आने की जरूरत है। वह इसके लिए सहमत हो गए।
इस सप्ताह के शुरू में संजय चंद्रा ने निर्णायक रूप से नॉर्वे की टेलीनोर के साथ उस सौदे को पूरा कर लिया जो वायरलेस सब्सिडियरी में 60 फीसदी हिस्सेदारी और प्रबंधन नियंत्रण देने से संबद्ध था। मूल्यांकन (तकरीबन 11,630 करोड़ रुपये) उनकी पूर्व की अपेक्षा की तुलना में काफी कम था।
आलोचकों का कहना है कि यह यूनिटेक द्वारा लाइसेंस प्राप्त करने के लिए खर्च किए गए 1800-2000 करोड़ रुपये से कई गुना ज्यादा है। आलोचकों का कहना है कि चंद्रा को भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि वह ऐसा सौदा करने में कामयाब रहे जिससे वह अपने कर्ज को कम कर सकते हैं और नाजुक समय में अपनी इक्विटी बनाए रख सकते हैं।
यह स्पष्ट है कि संजय चंद्रा ने अपनी उस प्रमुख कंपनी को संकट की स्थिति से बचा लिया है जिसे उनके पिता रमेश चंद्रा ने कई वर्षों की कड़ी मेहनत से खड़ा किया था।