भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) छोटी और मझोली इकाइयों को धन उपलब्ध कराने के वैकल्पिक माध्यमों को खड़ा करने की कोशिशें कर रहा है।
सेबी की योजना है कि छोटे-छोटे एक्सचेंजों को स्थापित किया जाए और इसके जरिए छोटी और मझोली इकाइयों की आर्थिक जरूरतें पूरी की जाए।
बहरहाल इन एक्सचेंजों के लिए दिशा-निर्देश और नियम-कायदे तैयार किए जा रहे हैं। उम्मीद है कि इसकी स्थापना की घोषणा दिसंबर के मध्य में की जाएगी।
सेबी के पूर्णकालिक सदस्य टी सी नायर ने चंडीगढ़ में एसोचैम के कार्यक्रम में बताया कि छोटी और मझोली इकाइयों के लिए उनका संस्थान साल के अंत तक देश में एक अलग स्टॉक एक्सचेंज गठित करने जा रहा है।
यह ठीक उसी तर्ज पर स्थापित होगा, जिस तरह लंदन का ‘अल्टरनेट इनवेस्टमेंट मार्केट’ (एआईएम) है। इसके बाद इस संस्था का कारोबार अलग हो जाएगा और तब ये स्टॉक मार्केट से भी धन जुटा सकते हैं।
मालूम हो कि अब तक ये छोटी और मझोली इकाइयां कर्ज और प्राइवेट इक्विटी के जरिए ही धन इकट्ठा करती थी।
नायर ने बताया कि शुरुआत में कंपनियों को तीन से चार लाइसेंस मुहैया कराए जाएंगे। ये लाइसेंस उन कंपनियों को ही दिए जाएंगे जिनकी कुल आय 100 करोड़ रुपये होगी।
उनके मुताबिक, शुरुआती समय में प्रस्तावित स्टॉक एक्सचेंज में कारपोरट संस्थानों की हिस्सेदारी होगी, जिसका बाद में निगमीकरण कर दिया जाएगा।
इन एक्सचेंजों को प्रतिभूति अनुबंध विनियमन, 2006 (मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों में सार्वजनिक अंशधारिता बनाए रखने और बढ़ाने के तौर-तरीके) के तहत स्थापित किया जा रहा है। इस कानून के तहत शुरू होने के 1 से 2 साल की अवधि में एक्सचेंज का निगमीकरण करना होता है।
छोटी और मंझोली इकाइयों के लिए अलग एक्सचेंजों की जरूरत के बारे में नायर ने बताया कि वैश्विक आर्थिक संकट से देश के छोटे और मंझोले उद्यमों पर गहरा संकट मंडराने का खतरा है।
चूंकि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में इन उद्यमों की हिस्सेदारी 47 फीसदी की है और 8 फीसदी की सालाना विकास दर बनाए रखना बहुत बड़ी चुनौती है।
ऐसे में छोटी और मंझोली इकाइयों के निर्यात लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जल्द से जल्द एक प्रणाली विकसित किए जाने की आवश्यकता है। इससे इन्हें आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जा सकती है, जिससे ये अपनी प्रौद्योगिकी का नवीकरण कर सकते हैं।