विमानन ईंधन (एटीएफ) कीमतों में जबरदस्त कमी आने के बाद भारतीय विमानन कंपनियां इसका कुछ फायदा अपने ग्राहकों को पहुंचा सकती हैं।
विमानन कंपनियां किरायों में मामूली कटौती कर सकती हैं और वह भी उनके मुनाफे पर ज्यादा बोझ डाले बिना। जब किरायों में जबरदस्त इजाफा किया गया उसी दौरान विमानन कंपनियों ने अपने कार्यबल और वितरण में खर्चों पर लगाम लगाने के चलते काफी कटौती की थी।
पिछले चार महीनों में एटीएफ कीमतें लगभग 45 प्रतिशत घटकर सितंबर, 2007 के स्तर पर वापस आ रही हैं, लेकिन इसी समान अवधि के मुकाबले किराये 100 प्रतिशत से भी अधिक बढ़ गई है।
विमानों के कुल परिचालन खर्च में 50 प्रतिशत एटीएफ पर खर्च किया जाता है, जिसके साथ अब विमानन कंपनियां अपने खर्च को सस्ते हुए एटीएफ के कारण लगभग 20 प्रतिशत तक कम कर सकती है। या फिर वे न नफा न नुकसान वाले परिचालन के बेहद करीब पहुंच चुकी हैं।
इसलिए कंपनियां अधिक किरायों और यात्रियों की कम संख्या बनाए रखने के बजाए, किरायों को कम कर सकती हैं और अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए विमान में यात्रियों की संख्या को बढ़ा सकती हैं।
अपनी पहली छमाही के नतीजों के अनुसार किंगफिशर ने इस साल सितंबर तक 6 महीनों में प्रति यात्री औसत कीमत को 55 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। दूसरी तिमाही के आंकड़ों से पता चलता है कि जेट का प्रति टिकट औसत किराया 30 सितंबर को समाप्त तिमाही में 33 प्रतिशत तक बढ़ चुका है।
और खर्च में कमी सिर्फ एटीएफ के मामले में ही नहीं की गई है। हालांकि सरकार ने पहले ही एटीएफ पर जो विमानन कंपनियों का लगभग आधे खर्च के बराबर है पर कई फायदे दिए हुए हैं, इसके अलावा बचे हुए अपने आधे खर्च पर भी कंपनियों की पैनी नजर है।
विमानन कंपनियों ने अपने कर्मियों की संख्या में कटौती की है, खासतौर पर विदेशी कर्मियों की, पर्यटन एजेंटों की कमिशन खत्म कर कंपनियों ने वितरण लागत में भी कटौती की है।?इसके अलावा तमाम विमानन कंपनियों ने ग्राउंड हैंडलिंग, इंजीनियरिंग और देख-रेख में एक-दूसरे के साथ हाथ मिलाकर इस खर्च को भी बांट लिया है।
किंगफिशर पहले ही अपने 650 कर्मचारियों की छंटनी कर चुकी है, जिसके साथ उसके कर्मी की संख्या 104 से घटकर 94 कर्मी प्रति विमान रह गई है और इसके अलावा विमानन कंपनी ने पिछले 6 महीने अप्रैल से सितंबर तक अपने कार्यबल में कोई इजाफा नहीं किया है।
इसके अलावा किंगफिशर एयरपोर्ट शुल्क में 50 प्रतिशत कटौती पर भी नजर लगाए बैठी है, लेकिन इसके लिए सरकारी मंजूरी मिलना अभी बाकी है। मंजूरी मिलने के बाद कंपनी की कुल बचत 55 करोड़ से 60 करोड़ रुपये हो जाएगी।
जहां महंगी सेवाओं वाली विमानन कंपनियों में यात्रियों की संख्या सितंबर और अक्टूबर में लगभग पहले जितना ही बना रहा, जबकि सस्ती विमानन कंपनियों में यात्रियों की संख्या 10 से 11 प्रतिशत बढ़ गई।
सितंबर में महंगी विमानन कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी जहां 57 प्रतिशत थी, वहीं पिछले महीने अक्टूबर में उसनकी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत हो गई। लेकिन विशेषज्ञों का दूसरा गुट यह भी कहता है कि इसके बावजूद विमानन कंपनियों की कमाई और खर्च के बीच बहुत बड़ा अंतर बरकरार है।