एक दिलचस्प घटनाक्रम में कॉफी डे इंटरप्राइजेज (सीडीईएल) के संस्थापक चेयरमैन वी जी सिद्धार्थ की मौत के कारणों की जांच करने वाले दल ने इक्विटी निवेशकों और कर अधिकारियों को शक के दायरे से बरी कर दिया। इस जांच दल का गठन सीडीईएल ने ही किया था, जिसका नेतृत्व सीबीआई के सेवानिवृत्त डीआईजी अशोक कुमार मल्होत्रा कर रहे थे। जांच दल ने पाया कि सिद्धार्थ की निजी कंपनी मैसूर अमलगमेटेड कॉफी इस्टेट्स (एमएसीईएल) पर सीडीईएल का 2,693 करोड़ रुपये बकाया था। कंपनी के पिछले वित्तीय बहीखाते में इस रकम का जिक्र नहीं है।
जांच में पाया गया कि एमएसीईएल पर सीडीईएल की विभिन्न सहायक इकाइयों का 31 जुलाई, 2019 तक 3,535 करोड़ रुपये बकाया था और कंपनी के बहीखाते में मार्च 2019 के अंत में बकाया के तौर पर केवल 842 करोड़ रुपये का जिक्र किया गया था। इस तरह, सीडीईएल के खाते में शेष 2,600 करोड़ रुपये का कहीं भी जिक्र नहीं था।
कंपनी ने स्टॉक एक्सचेंज को भेजी सूचना में कहा, ‘हमने पाया कि 2,600 करोड़ रुपये का रकम का इस्तेमाल पीई निवेशकों से शेयर खरीदने, कर्ज एवं ब्याज का भुगतान करने और कुछ निजी निवेशों के लिए किया गया होगा। यह तमाम बातें जांच के दायरे से बाहर हैं।’
जांच रिपोर्ट में सिद्धार्थ के उस बयान को सही ठहराया गया था कि वह एक मुनाफा देने वाला उद्यम तैयार में विफल रहे थे। रिपोर्ट में कहा गया कि नकदी की कमी, पीई कंपनियों और बैंकों की तरफ से लगातार रकम लौटाने की मांग ने काफी डे के संस्थापक के दिलो-दिमाग पर गहरी चोट पहुंचाई होगी। रिपोर्ट में कहा गया, ‘हमारा मानना है कि विभिन्न संवादों, मेल के आदान-प्रदान और प्रबंधन स्तर के शीर्ष लोगों एवं अन्य अधिकारियों के साथ बातचीत इस बात की ओर इशारा नहीं करती है कि सिद्धार्थ की टीम एवं वरिष्ठ प्रबंधन को लेनदेन के तरीकों के बार में कोई जानकारी थी।’
आत्महत्या करने से पहले सिद्धार्थ द्वारा कथित तौर पर लिखे पत्र में भी यह कहा गया था कि प्रबंधन और परिवार के सदस्य भी उनके व्यक्तिगत लेनदेन के बारे में नहीं जानते थे। इस बीच, सीडीईएल के निदेशक मंडल ने एमएसीईएल से बकाया रकम की वसूली पर सुझाव देने के लिए शुक्रवार को सीडीईएल के चेयरमैन को उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवाविृत्त न्यायाधीश को नियुक्त करने का अधिकार दे दिया।
कॉफी डे की संचालक सीडीईएल ने कहा कि उस पर कर्ज बोझ कम होकर 3,200 करोड़ रुपये रह गया है, जो मार्च 2019 के अंत में 7,200 करोड़ रुपये था।
