उन कई भारतीय कंपनियों के प्रवर्तकों को आईबीसी से किसी तरह की राहत नहीं मिलेगी जिन पर उनके पेशेवर प्रबंधकों द्वारा धोखाधड़ी और कंपनी के पैसे का गबन करने का आरोप है। अब आईबीसी के तहत ऋणदाता उनकी व्यक्तिगत गारंटी का इस्तेमाल करेंगे।
भारत सरकार के एक वरिष्ठï अधिकारी ने कहा, ‘जहां पर्सनल गारंटी को अनुबंध नियम के तहत लाया गया है, वहीं पूर्व कर्मचारियों के खिलाफ कानूनी मामला आपराधिक कानून के तहत आएगा।’
अधिकारी ने कहा कि कंपनी द्वारा बैंक ऋणों का भुगतान अनुबंध कानून के तहत देयता है और अन्य (पेशेवरों द्वारा धोखाधड़ी) एक आपराधिक मामला है। अधिकारी ने कहा, ‘ये दो मामले अलग अलग पक्षों के खिलाफ हैं। कंपनी ने ऋण लिया और प्रवर्तक ने गारंटी दी। ये कंपनी के कर्मचारियों के खिलाफ प्रवर्तक द्वारा दायर एफआईआर में शामिल पक्षों से अलग पार्टियां हैं। कानून अलग अलग हैं।’
ट्रैवल फर्म कॉक्स ऐंड किंग्स के पेशेवर प्रबंधकों को कोष की हेराफेरी के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है और बैंकों ने आईबीसी कानून का सहारा लेकर अपने बकाया वसूलने की योजना बनाई है। प्रवर्तकों की व्यक्तिगत गारंटी भी इन मामलों में जब्त होने की आशंका है। लेकिन कुछ प्रवर्तकों का कहना है कि चूंकि वे दैनिक तौर पर परिचालन नहीं कर रहे थे, इसलिए उनकी गारंटी जब्त नहीं की जानी चाहिए।
कॉरपोरेट वकीलों का कहना है कि यह मामला आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाया जाएगा, जिसने गुरुवार को पूरे देश की विभिन्न उच्च अदालतों में लंबित याचिकाओं की सुनवाई का निर्णय लिया। मुंबई स्थित एक कॉरपोरेट वकील ने कहा, ‘जहां कुछ प्रवर्तकों (जो नॉन-एक्जीक्यूटिव पदों पर थे) के पास वास्तविक मामले हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें स्वयं उनके कर्मचारियों द्वारा धोखा दिया गया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय को यह तय करना होगा कि उनकी व्यक्तिगत गारंटी को जब्त किया जाए या नहीं। सभी के लिए समान फॉर्मूला इसमें कारगर साबित नहीं हो सकता है।’
इस साल अगस्त के अंत से ऋणदाता पुराने बैंक डिफॉल्ट मामलों में व्यक्तिगत गारंटी जब्त करने पर जोर दे रहे हैं। यह सिलसिला जुलाई में सर्वोच्च न्यायालय के रुख की वजह से शुरू हुआ और तब न्यायालय ने वित्त मंत्रालय से सभी बैंक चूक मामलों में व्यक्तिगत गारंटी जब्त करने को कहा था। सर्वोच्च न्यायालय उस याचिका की सुनवाई कर रहा था जिसमें आरोप था कि बैंकों ने व्यक्तिगत गारंटी के बावजूद डिफॉल्टरों के खिलाफ कदम नहीं उठाया।
इसके बाद वित्त मंत्रालय ने 26 अगस्त को सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों के प्रमुखों को एक पत्र भेजा था जिसमें कहा गया कि पिछले साल दिसंबर में प्रभावी हुए इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकग्रप्सी (एप्लीकेशन टु एडज्यूकेटिंग अथॉरिटी फॉर इनसॉल्वेंसी रिजोल्यूशन प्रोसेस फॉर पर्सनल गारंटर्स टु कॉरपोरेट डेब्क्र्स) रूल्स, 2019 ऋणदाताओं को आईबीसी, 2016 के तहत राष्टï्रीय कंपनी विधि पंचाट (एनसीएलटी) में डिफॉल्टरों के पर्सनल गारंटरों के खिलाफ दिवालिया आवेदन करने में सक्षम बनाता है।
इसमें कहा गया था, ‘इस संबंध में बैंक उन मामलों की निगरानी के लिए एक व्यवस्था लागू करने पर विचार कर सकते हैं जिनमें कॉरपोरेट देनदारों के लिए पर्सनल गारंटरों के खिलाफ एनसीएलटी के सक्षम व्यक्तिगत दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत हो सकती है।’
