केंद्र सरकार ने केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) के संबंध में एक नई नीति जारी की है। इसमें कहा गया है कि मंत्रिमंडल या आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति से मंजूरी मिलने के सात महीने के भीतर समापन हो जाएगा। गैर-सामरिक क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर यह लागू होता है। सामरिक क्षेत्रों में परमाणु ऊर्जा और रक्षा जैसे खंड शामिल हैं।
13 दिसंबर के एक नोट में कहा गया है कि उपरोक्त सामरिक क्षेत्र में सीपीएसई की केवल न्यूनतम मौजूदगी बनाए रखी जानी है।
सार्वजनिक उद्यमों के सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि समापन या परिसमापन के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्ष 2016-17 (वित्त वर्ष 17) में यह संख्या दो थी, जो वर्ष 2019-20 (वित्त वर्ष 20) में बढ़कर 14 हो गई। इसलिए कुल सीपीएसई की हिस्सेदारी के रूप में परिचालनगत सीपीएसई में गिरावट नजर आना कोई हैरानी की बात नहीं है। वित्त वर्ष 2017 तक लगभग 77 प्रतिशत सीपीएसई परिचालन में थीं। ये वे कंपनियां हैं, जो कुछ परिचालनगत आय दर्ज कर रही हैं। वित्त वर्ष 2020 तक ऐसे सीपीएसई का अनुपात घटकर 69.9 प्रतिशत रह गया है। बारीकी से देखने पर पता चलता है कि निरपेक्ष संख्या में कुछ बदलाव हुआ है। वास्तव में यह संख्या वित्त वर्ष 17 की 255 से बढ़कर वित्त वर्ष 2020 में 256 हो गई है। यह वृद्धि परिचालनगत सीपीएसई की संख्या में गिरावट से नहीं, बल्कि वजूद में रहने वाली सीपीएसई की कुल संख्या से प्रेरित है। वर्ष 1951 में केवल पांच सीपीएसई थे। वर्ष 2011-12 तक यह बढ़कर 260 और वित्त वर्ष 17 तक बढ़कर 331 हो गए थे। वित्त 17 और वित्त वर्ष 20 के बीच के चार वर्षों के दौरान कुल संख्या में 35 और जुड़ गए। इसका मतलब है कि इस अवधि में औसतन हर महीने एक नया सीपीएसई जोड़ा गया। इससे वित्त वर्ष 20 तक सीपीएसई की संख्या बढ़कर 366 तक पहुंच गई।
कुल संख्या में नए सीपीएसई की हिस्सेदारी बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2017 में संख्या के हिसाब से इनकी हिस्सेदारी 22.4 प्रतिशत रही। वित्त वर्ष 2020 तक यह संख्या बढ़कर 26.2 प्रतिशत हो चुकी है। निर्माणाधीन सीपीएसई की बढ़ती संख्या का परिणाम यह है कि नए सीपीएसई का गठन निष्क्रिय सीपीएसई से आगे निकल रहा है।
