मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस के अनुसार, ऊर्जा पारेषण से संबंधित ऋण जोखिम से निपटने के संदर्भ में राष्ट्रीय तेल कंपनियां (एनओसी) अपने निजी समकक्षों के मुकाबले कम तैयार हैं, हालांकि उन्हें कुछ हद तक प्रतिस्पर्धी बढ़त हासिल है।
एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊर्जा पारेषण से दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों के लिए ऋण जोखिम अलग अलग है, लेकिन तेल आयातक देशों (जहां खपत लगातार बढ़ेगी) में एनओसी तेल निर्यातक देशों के मुकाबले कार्बन पारेषण के कम जोखिम से जुड़ी हुई हैं। हालांकि भारत इस श्रेणी में आता है, लेकिन एनओसी का अपस्ट्रीम और विपणन खंडों पर दबदबा है और सरकार के अप्रत्यक्ष कर राजस्व का 20 प्रतिशत इन्हीं उत्पादों के विपणन से आता है। एक कॉरपोरेट फाइनैंस समूह की विश्लेषक श्वेता पटौदिया ने कहा, ‘भारत में ईंधन ढुलाई के लिए खुदरा बिक्री कीमतें इन अप्रत्यक्ष करों की वजह से काफी ज्यादा हैं, जो अन्य देशों में कार्बन टैक्स के लिए एक विकल्प के तौर पर काम करता है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार ने अपनी एनओसी से बड़ा शेयरधारक भुगतान भी किया है जिससे उसके लिए कम कार्बन वाले विकल्पों में बड़े निवेश के लिए कम अतिरिक्त नकदी रह गई है। पटौदिया का कहना है, ‘भारत में अक्षय ऊर्जा के निवेश में भारी इजाफा हुआ है और यह एनओसी के बजाय सरकार के स्वामित्व वाली और निजी कंपनियों द्वारा किया गया है।’
रिपोर्ट के अनुसार, देश तेल एवं गैस की अपनी खपत लगातार बढऩे की उम्मीद कर रहा है जिसे देखते हुए सरकार द्वारा अपने एनओसी के बिजनेस मॉडल में बड़ा बदलाव लाए जाने की संभावना नहीं है।
बीएए3 निगेटिव रेटिंग वाला भारत कच्चे तेल (वैश्विक खपत का करीब 5 प्रतिशत) का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और यह आयात पर काफी हद तक निर्भर है। भारत का ऊर्जा रणनीति का लक्ष्य अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाकर और ऊर्जा दक्षता सुधारकर आयात घटाना है। हालांकि भारत की जीवाश्म ईंधन की खपत लगातार बढ़ेगी (कोयला समेत) और उसे कम से कम वर्ष 2040 तक तेल एवं गैस का आयात करना पड़ेगा।
मूडीज के विश्लेषक हुइ तिंग सिम का कहना है कि एनओसी ने दुनिया के ऊर्जा बाजारों में अहम योगदान दिया है और वैश्विक तेल एवं गैस उत्पादन तथा रिजर्व के संदर्भ में निजी क्षेत्र (अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियों) में अपने प्रतिस्पर्धियों को मात दी है।
